जस्टिस वर्मा की कुर्सी खतरे में! महाभियोग लाने की तैयारी में केंद्र सरकार, संसद में छिड़ेगी सियासी जंग
जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ कैश कांड के बाद केंद्र सरकार महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी में है. आंतरिक जांच, आगजनी में जले नोट, और सीजेआई की गोपनीय रिपोर्ट ने पूरे मामले को संवैधानिक संकट में बदल दिया है. उपराष्ट्रपति धनखड़ भी सवाल उठा चुके हैं. क्या यह भारत की न्यायपालिका की पारदर्शिता की सबसे कठिन परीक्षा है?

जस्टिस यशवंत वर्मा पर लगे गंभीर भ्रष्टाचार के आरोप अब केवल एक कानूनी संकट नहीं बल्कि एक संवैधानिक टकराव का रूप ले चुके हैं. केंद्र सरकार अब मानसून सत्र में उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की योजना में है और इस मुद्दे पर विपक्ष को साधने की कोशिशें तेज़ हो चुकी हैं. यह महज़ एक जज की भूमिका पर सवाल नहीं, बल्कि न्यायपालिका और सरकार के बीच अधिकारों की खींचतान का संकेत है.
बीते शुक्रवार से ही केंद्र सरकार विपक्षी दलों से लगातार बातचीत में लगी है. सूत्रों का कहना है कि सरकार को दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत मिलने की उम्मीद है. दिलचस्प यह है कि विपक्ष खुलकर इसका विरोध भी नहीं कर रहा, जो संकेत देता है कि यह प्रस्ताव व्यापक समर्थन के साथ पेश किया जा सकता है.
संसद से पहले शुरू हुआ न्यायिक मूल्यांकन
महाभियोग प्रस्ताव के लिए संवैधानिक प्रक्रिया बेहद स्पष्ट है. कम से कम 100 सांसद लोकसभा और 50 राज्यसभा में प्रस्ताव लाते हैं. फिर तीन सदस्यीय जांच समिति का गठन होता है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के जज की अगुवाई होती है. समिति की रिपोर्ट दोषी ठहराए जाने पर दोनों सदनों में प्रस्ताव पास करवाकर राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है.
क्या फिर दोहराएगा इतिहास खुद को?
2011 में जस्टिस सौमित्र सेन पर लाया गया महाभियोग प्रस्ताव लोकसभा में पेश होने से पहले ही उनके इस्तीफे से निष्क्रिय हो गया था. जस्टिस वर्मा ने पहले ही इस्तीफे से इनकार कर दिया है, जिससे यह प्रक्रिया इस बार पूरा रास्ता तय कर सकती है. यह केवल एक कानूनी प्रक्रिया नहीं, बल्कि भारतीय न्याय प्रणाली की पारदर्शिता की परीक्षा है.
सीजेआई की चुप रिपोर्ट और राष्ट्रपति की भूमिका
गृह मंत्री अमित शाह और कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से हालिया मुलाकात को इस महाभियोग प्रस्ताव से जोड़ा जा रहा है. सूत्रों के अनुसार, सीजेआई द्वारा भेजी गई रिपोर्ट में जस्टिस वर्मा के खिलाफ सिफारिश की गई है, जो उनके इस्तीफा न देने के कारण और भी गंभीर हो जाती है.
500 के जले नोटों से उठा न्यायिक विश्वास का सवाल
14 मार्च की रात जस्टिस वर्मा के लुटियंस स्थित घर में लगी आग ने पूरे मामले को एक नया मोड़ दे दिया. 500-500 के जले हुए नोटों की बंडल वाली ख़बरों ने अदालतों की स्वच्छता पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया. इसके बाद उन्हें न्यायिक कार्यों से हटाकर इलाहाबाद हाईकोर्ट भेजा गया, लेकिन विवाद वहीं नहीं थमा.
उपराष्ट्रपति की चेतावनी: क्या अब भी चुप रहेंगे?
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ पहले ही इस मुद्दे को कई बार उठा चुके हैं. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के उस पुराने निर्णय पर भी सवाल उठाया है, जिसमें जजों पर मुकदमा चलाने के लिए अनुमति ज़रूरी बताई गई थी. धनखड़ ने एफआईआर दर्ज करने में हुई देरी और आंतरिक समिति की प्रक्रिया पर भी चिंता जताई.
क्या अब कोई नया मानक तय होगा?
जस्टिस वर्मा प्रकरण एक नई मिसाल बनने की कगार पर है. यदि महाभियोग की प्रक्रिया पूरी होती है, तो यह केवल एक व्यक्ति की जवाबदेही नहीं, बल्कि न्यायपालिका की पारदर्शिता और नैतिकता पर नए मानक तय करेगा. और अगर यह फिर किसी इस्तीफे या राजनीतिक समझौते में तब्दील हुआ, तो न्याय व्यवस्था की जनता में विश्वसनीयता एक और गहरी चोट झेलेगी.