150 साल बाद ‘वंदे मातरम्’ पर क्यों छिड़ा संग्राम? समझिए इसके पीछे की इनसाइड स्टोरी

भारत के राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम्’ की 150वीं वर्षगांठ पर संसद में आज ऐतिहासिक बहस शुरू हो रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोकसभा में चर्चा की शुरुआत करेंगे. इस बहस को बीजेपी और कांग्रेस के बीच वैचारिक संघर्ष के रूप में देखा जा रहा है. बीजेपी का आरोप है कि 1937 में कांग्रेस द्वारा गीत के कई अंतरे हटाने से विभाजन की मानसिकता को बढ़ावा मिला, जबकि कांग्रेस का कहना है कि यह फैसला रवींद्रनाथ टैगोर की सलाह और राष्ट्रीय एकता के लिए लिया गया था. इस बहस में बीजेपी की ओर से राजनाथ सिंह और अमित शाह, जबकि कांग्रेस की ओर से प्रियंका गांधी वाड्रा और गौरव गोगोई शामिल होंगे.;

( Image Source:  ANI )
Edited By :  अच्‍युत कुमार द्विवेदी
Updated On : 8 Dec 2025 11:22 AM IST

Parliament Winter Session 2025, Vande Mataram Debate: संसद में आज भारत के राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम्’ के 150 साल पूरे होने पर एक ऐतिहासिक बहस शुरू होने जा रही है. यह वही गीत है, जो आज़ादी की लड़ाई के दौरान करोड़ों भारतीयों के लिए संघर्ष, चेतना और आत्मबल का प्रतीक रहा, लेकिन 150 वर्ष बाद यह गीत एक बार फिर राजनीतिक और वैचारिक टकराव के केंद्र में आ गया है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज लोकसभा में इस बहस की शुरुआत करेंगे. सरकार की ओर से रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और गृह मंत्री अमित शाह प्रमुख वक्ताओं में होंगे, जबकि कांग्रेस की तरफ से प्रियंका गांधी वाड्रा और गौरव गोगोई मोर्चा संभालेंगे. लोकसभा और राज्यसभा, दोनों में इस विषय पर 10-10 घंटे की बहस तय की गई है. राजनीतिक गलियारों में इसे आने वाले समय की सबसे तीखी वैचारिक टकराव वाली बहस माना जा रहा है.


स्‍टेट मिरर अब WhatsApp पर भी, सब्‍सक्राइब करने के लिए क्लिक करें

क्यों उठी 150 साल बाद यह बहस?

प्रधानमंत्री मोदी ने हाल ही में कांग्रेस पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा था कि 1937 में कांग्रेस ने ‘वंदे मातरम्’ के कई अंतरे हटाकर देश में विभाजन की मानसिकता के बीज बो दिए थे, जिसका असर आगे चलकर देश के बंटवारे तक देखा गया. मूल रूप से यह गीत बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित था, जिसके कई अंतरे थे, लेकिन बाद में केवल पहले दो अंतरों को ही आधिकारिक रूप से अपनाया गया. मोदी के इस बयान के बाद यह मुद्दा एक बार फिर राजनीतिक बहस के केंद्र में आ गया.


कांग्रेस का जवाब: टैगोर की सलाह और नेहरू का तर्क

कांग्रेस ने प्रधानमंत्री के आरोपों को इतिहास से तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया बयान बताया है। पार्टी का कहना है कि महान कवि रवींद्रनाथ टैगोर ने खुद सुझाव दिया था कि केवल पहले दो अंतरों को ही अपनाया जाए, क्योंकि बाकी अंतरे न सिर्फ कठिन थे, बल्कि उस समय मुस्लिम समुदाय के एक वर्ग द्वारा उन पर आपत्ति भी जताई जा रही थी. कांग्रेस का दावा है कि पंडित जवाहरलाल नेहरू ने यह फैसला देश की एकता और समावेशिता बनाए रखने के लिए लिया था, न कि किसी तुष्टिकरण की राजनीति के तहत...


BJP का हमला, “नेहरू की असली सोच देश के सामने आएगी”

BJP प्रवक्ता संबित पात्रा ने दावा किया है कि इस बहस में नेहरू की ‘वास्तविक सोच’ से जुड़े कई ऐतिहासिक दस्तावेज जनता के सामने रखे जाएंगे. बीजेपी का कहना है कि नेहरू को यह आशंका थी कि ‘वंदे मातरम्’ का ‘आनंदमठ’ उपन्यास से जुड़ाव मुस्लिम समुदाय को ‘चिढ़ा’ सकता है, और वह खुद भी इसके कुछ अंशों को समझने में असहज थे.


बंगाल चुनाव और नेताजी का नाम- बीजेपी का बड़ा सियासी दांव

इस बहस का एक बड़ा राजनीतिक आयाम पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव 2026 से भी जुड़ा है। बीजेपी इस बहस के जरिए बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय की विरासत और नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा ‘वंदे मातरम्’ के समर्थन को प्रमुखता से उठाकर खुद को बंगाली अस्मिता का संरक्षक बताने की रणनीति पर चल रही है. इससे पार्टी को उम्मीद है कि वह तृणमूल कांग्रेस (TMC) को सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के सवाल पर घेर सकेगी.


विपक्ष की रणनीति: RSS और स्वतंत्रता संग्राम का मुद्दा

वहीं, कांग्रेस, TMC और समाजवादी पार्टी जैसी विपक्षी पार्टियां इस बहस में RSS की स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका और हिंदुत्व विचारधारा से जुड़े कुछ नेताओं के राष्ट्रीय प्रतीकों पर पुराने बयानों को लेकर सरकार को घेरने की तैयारी में हैं. विपक्ष का आरोप है कि बीजेपी सांस्कृतिक प्रतीकों का राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है ताकि मौजूदा आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों से ध्यान भटकाया जा सके.


ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: मुस्लिम लीग का विरोध

इतिहास में मुस्लिम लीग ने ‘वंदे मातरम्’ का विरोध इसलिए किया था क्योंकि इसमें देवी-देवताओं और हिंदू धार्मिक प्रतीकों के संदर्भ थे. इसी विरोध के चलते कांग्रेस ने पहले दो अंतरों को ही अपनाने का निर्णय लिया था। इस निर्णय को लेकर आज भी कुछ रूढ़िवादी मुस्लिम संगठनों की आपत्ति बनी हुई है.


बीजेपी क्यों दोबारा इस मुद्दे को जिंदा कर रही है?

बीजेपी के लिए ‘वंदे मातरम्’ केवल एक गीत नहीं, बल्कि भारत की सभ्यतागत चेतना और सांस्कृतिक आत्मविश्वास का प्रतीक है. पार्टी का मानना है कि 1937 का फैसला अनावश्यक समझौते और तुष्टिकरण की राजनीति का उदाहरण था, जिसकी कीमत देश को लंबे समय तक चुकानी पड़ी.


कांग्रेस क्यों रक्षात्मक स्थिति में?

कांग्रेस का कहना है कि वंदे मातरम्’ को राष्ट्रीय आंदोलन में सबसे पहले वही लेकर आई, आज़ादी की लड़ाई में इसे जन-जन का नारा बनाया और 1937 का फैसला राष्ट्रीय एकता को बचाने के लिए लिया गया. पार्टी का आरोप है कि बीजेपी इतिहास के चुनिंदा हिस्सों को तोड़-मरोड़ कर पेश कर रही है और इस बहस का इस्तेमाल राजनीतिक लाभ के लिए कर रही है.

राष्ट्रगीत, पहचान और राजनीति के चौराहे पर देश

आज संसद में होने वाली यह बहस महज एक गीत पर चर्चा नहीं है, बल्कि यह भारत की राष्ट्रीय पहचान, सांस्कृतिक चेतना और राजनीतिक दिशा को लेकर दो विचारधाराओं की सीधी टक्कर है.


अब यह देखना होगा कि यह बहस क्या राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने का अवसर बनती है या फिर एक और सियासी रणभूमि बनकर रह जाती है... 150 वर्षों के बाद ‘वंदे मातरम्’ एक बार फिर इतिहास, पहचान और सत्ता की राजनीति के त्रिकोण में खड़ा है.

Similar News