उन्नाव रेप केस: कुलदीप सिंह सेंगर को सुप्रीम कोर्ट से झटका, दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले पर रोक; 4 हफ्ते में देना होगा जवाब

उन्नाव रेप केस में दोषी पूर्व विधायक Kuldeep Singh Sengar को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है. शीर्ष अदालत ने दिल्ली हाई कोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी है, जिसमें सेंगर की सजा निलंबित की गई थी. Central Bureau of Investigation ने इस फैसले को चुनौती देते हुए कहा कि यह नाबालिग पीड़िता से जुड़े गंभीर अपराध और POCSO कानून की अनदेखी है. CJI Surya Kant की अध्यक्षता वाली पीठ ने मामले को गंभीर मानते हुए हाई कोर्ट के आदेश पर स्टे लगाया.;

Edited By :  नवनीत कुमार
Updated On : 29 Dec 2025 12:50 PM IST

उन्नाव रेप केस सिर्फ़ एक आपराधिक मुकदमा नहीं है, यह उस पीड़िता की लड़ाई की कहानी है जिसने सत्ता, डर और सिस्टम तीनों का सामना किया. हर बार जब अदालत में कोई आदेश आता है, तो सवाल कानून से आगे बढ़कर इंसाफ़ पर टिक जाता है: क्या पीड़िता को सचमुच न्याय मिलता दिख रहा है, या फिर मामला कानूनी दांव-पेंच में उलझता जा रहा है?

दिल्ली हाई कोर्ट के एक फैसले ने जब दोषी की सजा निलंबित की, तो सड़क से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक आवाज़ उठी. अब देश की सबसे बड़ी अदालत ने उस फैसले पर रोक लगाकर साफ़ कर दिया है कि यह मामला केवल तकनीकी व्याख्या का नहीं, बल्कि नाबालिग के साथ हुए जघन्य अपराध और सत्ता के दुरुपयोग का है.

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हाई कोर्ट का आदेश और बढ़ता आक्रोश

दिल्ली हाई कोर्ट ने उन्नाव रेप केस में दोषी पूर्व विधायक Kuldeep Singh Sengar की सजा हाल ही में निलंबित कर दी थी. हालांकि सेंगर जेल से बाहर नहीं आया, क्योंकि वह पीड़िता के पिता की हत्या के मामले में पहले से उम्रकैद काट रहा है. फिर भी इस आदेश ने समाज में गहरी नाराज़गी पैदा की.

CBI की चुनौती: ‘यह फैसला गलत है’

Central Bureau of Investigation ने हाई कोर्ट के इस फैसले को सीधे Supreme Court of India में चुनौती दी. CBI का कहना था कि हाई कोर्ट ने कानून की गंभीर धाराओं और अपराध की प्रकृति को नजरअंदाज़ किया है, इसलिए इस आदेश पर तत्काल रोक ज़रूरी है.

सुप्रीम कोर्ट की दखल

CJI Surya Kant की अध्यक्षता वाली पीठ ने CBI की दलीलें सुनने के बाद हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी. यह पीड़िता और उसके परिवार के लिए एक अहम राहत मानी जा रही है, क्योंकि इससे यह संकेत गया कि शीर्ष अदालत इस मामले को बेहद गंभीरता से देख रही है.

नाबालिग के साथ जघन्य अपराध: SG तुषार मेहता

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया कि पीड़िता की उम्र अपराध के वक्त सिर्फ़ 15 साल 10 महीने थी. उन्होंने कहा कि यह न सिर्फ़ IPC की धारा 376 का मामला है, बल्कि POCSO एक्ट की धारा 5 के तहत “गंभीर पेनिट्रेटिव सेक्शुअल असॉल्ट” का स्पष्ट मामला बनता है.

हाईकोर्ट की टिप्पणी पर CBI की आपत्ति

CBI ने हाईकोर्ट की उस टिप्पणी पर कड़ी आपत्ति जताई, जिसमें कहा गया था कि अपराध के समय सेंगर लोक सेवक नहीं थे. SG ने दलील दी कि विधायक या सांसद जैसे जनप्रतिनिधि सार्वजनिक पद पर होते हैं और उन्हें सरकारी कर्मचारी की श्रेणी में माना जाना चाहिए खासकर जब अपराध सत्ता के दुरुपयोग से जुड़ा हो.

अपराध में किसी तरह की नरमी न हो

SG मेहता ने कोर्ट को याद दिलाया कि POCSO कानून इसलिए बनाया गया है ताकि नाबालिगों के खिलाफ अपराधों में किसी तरह की नरमी न हो. अगर अपराध प्रभुत्वशाली स्थिति में बैठे व्यक्ति द्वारा किया गया हो, तो सजा और भी कठोर होनी चाहिए, यह कानून की आत्मा है.

अदालत के बाहर गुस्सा, अंदर बहस

सुप्रीम कोर्ट के बाहर पीड़िता, उसकी मां और सामाजिक कार्यकर्ता धरने पर बैठे रहे. महिलाओं के प्रदर्शन ने यह दिखाया कि यह मामला सिर्फ़ फाइलों में सीमित नहीं है. समाज की निगाहें अदालत पर टिकी हैं कि क्या न्याय की दिशा बदलेगी या नहीं.

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