शिक्षकों को सिर्फ 30 हज़ार, प्रोफेसरों को लाखों की सैलरी! सुप्रीम कोर्ट की फटकार, कहा- 'गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु' से नहीं चलेगा काम

सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि शिक्षक केवल पढ़ाने तक ही सीमित नहीं रहते. वे छात्रों को गाइड करते हैं, रिसर्च और स्टार्टअप की राह दिखाते हैं, आलोचनात्मक सोच विकसित करते हैं और समाज में अच्छे मूल्यों का संचार करते हैं. उनका काम किसी फैक्ट्री की नौकरी जैसा नहीं.;

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Edited By :  रूपाली राय
Updated On : 19 Oct 2025 12:56 PM IST

देश के शिक्षकों के साथ हो रहे व्यवहार पर सुप्रीम कोर्ट ने गहरी नाराज़गी जताई है. न्यायालय ने कहा कि जब हम सार्वजनिक मंचों पर 'गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु, गुरु देवो महेश्वरः' जैसे मंत्रों का उच्चारण करते हैं, लेकिन उन्हीं शिक्षकों को मामूली वेतन देकर उनके योगदान को नज़रअंदाज़ कर देते हैं, तो यह पूरी तरह बेकार हो जाता है. मामला गुजरात से जुड़ा है यहां सरकार इंजीनियरिंग कॉलेजों में काम कर रहे संविदा सहायक प्रोफेसरों (contractual assistant professors) को सिर्फ 30,000 रुपये मासिक वेतन देती है.

वहीं, उनके साथ बिल्कुल वही काम करने वाले नियमित एसोसिएट प्रोफेसरों को लगभग 1.2 लाख रुपये और प्रोफेसरों को 1.4 लाख रुपये वेतन मिलता है. इस बड़े अंतर पर सुप्रीम कोर्ट की बेंच न्यायमूर्ति पी. एस. नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची ने तीखी टिप्पणी की. बेंच ने कहा, 'हमें गंभीर चिंता है कि हम अपने शिक्षकों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं. यही लोग हमारी भावी पीढ़ियों को शिक्षित करते हैं, उन्हें विशेषज्ञता और योग्यता हासिल करने का अवसर देते हैं. 

शिक्षक सिर्फ पढ़ाते ही नहीं, भविष्य गढ़ते हैं

सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि शिक्षक केवल पढ़ाने तक ही सीमित नहीं रहते. वे छात्रों को गाइड करते हैं, रिसर्च और स्टार्टअप की राह दिखाते हैं, आलोचनात्मक सोच विकसित करते हैं और समाज में अच्छे मूल्यों का संचार करते हैं. उनका काम किसी फैक्ट्री की नौकरी जैसा नहीं, बल्कि आने वाली पूरी पीढ़ियों का निर्माण करना है. इसलिए, जब उन्हें न तो सम्मान दिया जाता है और न ही सम्मानजनक वेतन, तो इससे समाज में ज्ञान और शिक्षा के प्रति सम्मान घटता है साथ ही, शिक्षकों की मेहनत और प्रेरणा भी कम हो जाती है. 

'समान काम, समान वेतन' का सिद्धांत

गुजरात हाई कोर्ट ने पहले ही आदेश दिया था कि असिस्टेंट प्रोफेसरों को उनके काम के हिसाब से उचित वेतन दिया जाए. लेकिन गुजरात सरकार ने इस फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की. सुप्रीम कोर्ट ने यह अपील खारिज कर दी और कहा कि इंजीनियरिंग कॉलेजों में असिस्टेंट प्रोफेसरों के वेतन निर्धारण में 'समान कार्य, समान वेतन' का सिद्धांत लागू होना ही चाहिए. पीठ ने कहा कि अगर किसी देश को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और स्टार्टअप चाहिए, तो सबसे पहले उसे अपने शिक्षकों को उचित पारिश्रमिक और सम्मानजनक व्यवहार देना होगा, तभी यह साबित होगा कि हम सचमुच अपने युवाओं के उज्ज्वल भविष्य के प्रति प्रतिबद्ध हैं. 

चिंताजनक आंकड़े

सुप्रीम कोर्ट को यह भी बताया गया कि गुजरात में स्वीकृत 2,720 पदों में से सिर्फ 923 पद नियमित रूप से भरे गए हैं.

158 पद तदर्थ आधार पर भरे गए

902 पद संविदा आधार पर भरे गए

737 पद अब भी खाली पड़े है

इतना ही नहीं, हाल ही में सरकार ने 525 नए सहायक प्रोफेसरों और 347 नए लेक्चरार के पद भी मंज़ूर किए हैं. इस वजह से रिक्त पदों की संख्या और भी बढ़ गई है यानी कुल मिलाकर बड़ी संख्या में स्वीकृत पद खाली पड़े हैं और सरकार मजबूरी में तत्काल व संविदा पर लोगों को नियुक्त कर रही है. इसका असर शिक्षा की गुणवत्ता और स्थिरता पर साफ दिखाई देता है. सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि यह केवल समानता का मुद्दा नहीं है. यह बहुत दुखद है कि असिस्टेंट प्रोफेसर लगभग दो दशकों से इतने कम वेतन पर काम करने को मजबूर हैं. उनके अमूल्य योगदान को पहचान और उचित सम्मान नहीं मिलना पूरे राष्ट्र के लिए चिंता का विषय है.

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