BLOs को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत, कहा - सरकारी कर्मचारी सभी कार्यों को पूरा करने के लिए बाध्य, लेकिन...

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( Image Source:  ANI )
Edited By :  प्रवीण सिंह
Updated On :

स्‍पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) के दौरान देशभर में बूथ लेवल ऑफिसर्स (BLO) पर बढ़ते काम के बोझ और कई राज्यों में सामने आए आत्महत्या मामलों के बीच सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक अहम निर्देश जारी किया. अदालत ने साफ कहा कि राज्य सरकारों द्वारा तैनात कर्मचारी कानून के तहत आने वाले सभी कार्यों को पूरा करने के लिए बाध्य हैं और SIR प्रक्रिया का दायित्व उनके आधिकारिक कर्तव्यों का हिस्सा है.

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हालांकि, अदालत ने यह भी माना कि अनेक BLO अत्यधिक दबाव और कठिन परिस्थितियों में काम कर रहे हैं, इसलिए जरूरत पड़ने पर उनके समर्थन के लिए अतिरिक्त कर्मचारियों की तैनाती की जा सकती है.

मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि BLOs के बोझ को कम करना आवश्यक है, ताकि मतदाता सूची के पंजीकरण और संशोधन की प्रक्रिया सुचारू और समय पर पूरी हो सके. अदालत ने सुझाव दिया कि राज्य सरकारें ऐसे अधिकारियों की पहचान करें जिन्हें एक साथ अपनी नियमित जिम्मेदारियों और SIR के डबल वर्कलोड का सामना करना पड़ रहा है, और जहां जरूरत हो वहां अतिरिक्त मानव संसाधन उपलब्ध कराएं.

"कानूनी कर्तव्य है, छूट सम्भव - लेकिन बदली जरूरी"

पीठ ने स्पष्ट किया कि BLO को SIR कार्यों से पूरी तरह मुक्त नहीं किया जा सकता, लेकिन यदि किसी कर्मचारी के पास विशिष्ट और उचित कारण हैं - बीमारी, गर्भावस्था, पारिवारिक आपात स्थिति या अन्य कठिनाई - तो वह राज्य प्राधिकरण के पास राहत की मांग कर सकता है. हालांकि, अदालत ने साथ ही यह भी कहा कि ऐसे मामलों में राज्य सरकार संबंधित कर्मचारी की जगह तुरंत किसी अन्य व्यक्ति की नियुक्ति करेगी, ताकि ECI (भारतीय निर्वाचन आयोग) के पास पर्याप्त स्टाफ उपलब्ध रहे और कार्य बाधित न हो.

मुआवज़े पर भी हुई चर्चा, पर बाद में विचार

सुप्रीम कोर्ट ने इस दौरान उन याचिकाओं का भी संज्ञान लिया जिसमें SIR ड्यूटी के दौरान जान गंवाने वाले BLOs के लिए एक्स-ग्रेशिया मुआवज़े की मांग की गई थी. अदालत ने कहा कि इस मुद्दे पर विस्तृत सुनवाई बाद के चरण में होगी क्योंकि वर्तमान प्राथमिकता BLOs की कार्य स्थिति को बेहतर करना है और मौजूदा संकट को कम करना है.

तमिल अभिनेता विजय की पार्टी TVK की याचिका पर सुनवाई

यह पूरा मामला उस याचिका से शुरू हुआ जिसे अभिनेता विजय की पार्टी तमिलगा वेत्रि कझगम (TVK) ने दायर किया था. पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया था कि BLOs के खिलाफ Representation of the People Act की धारा 32 के तहत जबरन की जा रही कार्रवाई को रोका जाए. वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने अदालत को बताया कि उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में BLOs के खिलाफ FIR दर्ज की गई है और अनेक अधिकारियों - जो अक्सर शिक्षक, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता या सरकारी कर्मचारी होते हैं - को निर्धारित समयसीमा में कार्य पूरा करने के लिए अत्यधिक दबाव में काम करना पड़ रहा है.

उन्होंने कहा कि कुछ BLO रात 3 बजे तक रिकॉर्ड एंट्री कर रहे थे, जबकि दिन में अपनी प्राथमिक ड्यूटी निभा रहे थे. कई मामलों में निलंबन, धमकी और कठोर अनुशासनात्मक कार्रवाई ने मानसिक तनाव और चरम स्थिति पैदा की.

ECI और राज्यों का रुख - कोर्ट का संतुलित दृष्टिकोण

ECI की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह ने कहा कि दंडात्मक कार्रवाई केवल उन मामलों में की गई जहां अधिकारी "कर्तव्य निभाने से जानबूझकर बच रहे थे". इस पर अदालत ने कहा कि BLOs से अपेक्षित काम कानून के अनुसार है, लेकिन यदि वास्तविक कठिनाइयाँ मौजूद हैं तो राज्य सरकारें "दबाव घटाने और समर्थन बढ़ाने" के लिए बाध्य हैं.

वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कोर्ट को बताया कि BLOs पर काम का अत्यधिक दबाव है और खासकर उत्तर प्रदेश में SIR की सिर्फ एक महीने की समय सीमा व्यावहारिक नहीं है. कोर्ट ने कहा कि वह प्रक्रिया रोक नहीं सकती क्योंकि चुनाव प्रणाली BLOs के सहयोग पर निर्भर करती है, लेकिन यह भी जरूरी है कि राज्य गरीबी, स्वास्थ्य, पारिवारिक संकट या कार्यभार की अधिकता झेल रहे अधिकारियों को राहत उपलब्ध कराए.

काम चलेगा, लेकिन ज़िंदगी की कीमत पर नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने संदेश दिया कि SIR एक संवैधानिक और लोकतांत्रिक प्रक्रिया है और BLOs उसकी रीढ़ हैं. इसलिए यह प्रक्रिया बाधित नहीं की जा सकती. लेकिन राज्य सरकारों को यह भी याद रखना होगा कि किसी भी व्यवस्था को चलाने के लिए मानव संसाधन सिर्फ एक संख्या नहीं, बल्कि व्यक्ति हैं - जिनकी सेहत, हक़ और मानवीय जीवन सर्वोपरि हैं.

अदालत के ये निर्देश ऐसे समय में आए हैं जब पूरे देश में BLOs के काम के बोझ को लेकर बहस तेज है. आने वाले हफ्तों में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि राज्य सरकारें सुप्रीम कोर्ट के सुझाव को किस गंभीरता से लागू करती हैं और क्या इससे वास्तव में जमीनी स्तर पर BLOs को राहत मिलती है या नहीं.

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