HC की 'यौन इच्छाओं' पर नियंत्रण वाली टिप्पणी पर SC की फटकार, आरोपी की सजा पर लगाया ब्रेक; समझें पूरा मामला

सुप्रीम कोर्ट ने 'यौन इच्छाओं पर नियंत्रण' जैसी टिप्पणी को लेकर कलकत्ता हाईकोर्ट को फटकार लगाई है. मामला POCSO एक्ट के तहत दोषी युवक से जुड़ा है, जिसने नाबालिग से संबंध बनाकर बाद में उससे शादी कर ली. कोर्ट ने असाधारण हालातों को देखते हुए सजा पर रोक लगा दी और आर्टिकल 142 के तहत 'पूर्ण न्याय' का हवाला दिया.;

Edited By :  सागर द्विवेदी
Updated On : 25 May 2025 11:45 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने पॉक्सो एक्ट के तहत दोषी ठहराए गए एक युवक को सजा न देने का फैसला सुनाया है. यह फैसला जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत 'पूर्ण न्याय' के अधिकार का उपयोग करते हुए दिया. यह मामला एक ऐसे युवक का है जो घटना के समय 24 साल का था और उस पर एक नाबालिग लड़की के साथ यौन संबंध बनाने का आरोप था. बाद में जब लड़की बालिग हुई, तो दोनों ने शादी कर ली और अब एक बच्चे के साथ साथ रह रहे हैं.

अदालत ने क्यों दी राहत?

पीड़िता के वर्तमान हालात और मानसिक स्थिति को समझने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एक विशेषज्ञ समिति गठित की, जिसमें क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट, सोशल साइंटिस्ट और चाइल्ड वेलफेयर ऑफिसर शामिल थे. रिपोर्ट में सामने आया कि पीड़िता इस मामले को अपराध के रूप में नहीं देखती. कोर्ट ने कहा, 'कानून भले इसे अपराध माने, लेकिन पीड़िता इसे अपराध नहीं मानती. असली आघात उसे आरोपी से नहीं, बल्कि उसके बाद आई पुलिस, कानूनी प्रक्रिया और सामाजिक बहिष्कार से हुआ.

कलकत्ता हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक का सफर

यह मामला सुप्रीम कोर्ट तब पहुंचा जब 2023 में कलकत्ता हाईकोर्ट ने आरोपी की 20 साल की सजा को रद्द कर दिया और नाबालिग लड़कियों पर आपत्तिजनक टिप्पणियां कीं. हाईकोर्ट ने कहा था कि किशोरियों को 'अपने यौन आग्रहों पर नियंत्रण रखना चाहिए', जिससे तीखी आलोचना हुई. 20 अगस्त 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का फैसला रद्द कर आरोपी की सजा बहाल कर दी, लेकिन सजा देने से पहले पीड़िता की वर्तमान स्थिति को समझने का आदेश दिया.

समिति की रिपोर्ट और कोर्ट की अंतिम टिप्पणी

रिपोर्ट में कहा गया कि पीड़िता अब आरोपी के साथ गहरा भावनात्मक जुड़ाव रखती है और अपने छोटे परिवार को लेकर काफी संवेदनशील है. उसे जानकारी नहीं थी कि उसके पास क्या-क्या विकल्प उपलब्ध थे. कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि पीड़िता को वित्तीय सहायता, व्यावसायिक प्रशिक्षण और शिक्षा पूरी करने के बाद आंशिक रोजगार उपलब्ध कराया जाए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 'समाज ने उसे जज किया, सिस्टम ने उसे असफल किया और परिवार ने उसे अकेला छोड़ दिया। यह मामला हमारी आंखें खोलने के लिए काफी है.

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