SSC Protest: एसएससी ‘रोजगार’ देने की संस्था है या बेरोजगारों के हाथ-पैर तुड़वाकर ‘सत्यानाश’ कराने का 'अड्डा'! INSIDE STORY
दिल्ली में 31 जुलाई को SSC मुख्यालय के बाहर शिक्षित बेरोजगारों और उनके शिक्षकों ने विरोध प्रदर्शन किया. वे ब्लैकलिस्टेड कंपनी को परीक्षा ठेका देने और SSC की लापरवाही का विरोध कर रहे थे. शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर दिल्ली पुलिस ने लाठीचार्ज किया, जिससे कई घायल हो गए. SSC को निष्क्रिय और गैर-जिम्मेदार बताते हुए प्रदर्शनकारियों ने DoPT मंत्री से मिलने की कोशिश की थी. SSC द्वारा की जा रही ठेका-आधारित परीक्षा प्रणाली को प्रदर्शनकारियों ने अव्यवस्थित और अन्यायपूर्ण बताया.;
देश की मौजूदा हुकूमत हर हाल में ज्यादा से ज्यादा युवाओं का भविष्य सजाने-संवारने-बनाने में जुटी है. हजारों-लाखों करोड़ की योजनाएं हुकूमत के ‘सरकारी-बैगों’ में बंद हैं. लोकसभा-राज्यसभा में भी अक्सर देश के शिक्षित युवा-बेरोजगारों को सरकारी नौकरियों (Government Job) में लाने के लिए जी-तोड़ ‘भाषणीय-ज्ञान’ ठेले जा रहे हैं. एक तो हमारे देश में युवाओं के भविष्य के लिए मतलबपरस्त ‘नेताओं-मंत्रियों’ द्वारा यह सब ‘तमाशा’ अमल में लाया जा रहा हैं.
वहीं गुरुवार (31 जुलाई 2025) को जब भारत की राजधानी दिल्ली (Delhi) में एक ओर संसद का (Parliament Monsoon Session) सत्र चल रहा था. जिसमें नेता-मंत्री देश के युवा शिक्षित-बेरोजगार को, स्वावलंबी/आत्म-निर्भर बनाने के भाषण चीख-चीख कर दे रहे थे. तो दूसरी ओर संसद (Parliament) से कुछ ही दूर दिल्ली में ही मौजूद एसएससी (कर्मचारी चयन आयोग) यानी वह ‘ढोल-संस्था’ (गैर-जिम्मेदार भी लिखें तो अनुचित नहीं होगा), जिसे भारत सरकार ने शिक्षित बेरोजगार युवाओं को ‘रोजगार’ दिलाने की बागडोर सौंपी है, के बाहर इन्हीं निहत्थे बेरोजगारों के ऊपर ‘दिल्ली पुलिस’ (Delhi Police) लट्ठ बजाकर कहर बरपा रही थी. न सिर्फ शिक्षित बेरोजगार युवाओं के ऊपर अपितु इन्हें पढ़ाने वाले शिक्षकों को भी, दिल्ली पुलिस ने लठिया कर कई जगह से ऐसे तोड़-फोड़ डाला जैसे मानों यह बिचारे-लाचार प्रदशर्नकारी, दिल्ली पुलिस की नजर में ‘इंसान’ न होकर जानवर या फिर कोई पेशेवर अपराधी हों.
अब ऐसे में सोचना जरूरी है कि सरकार बेरोजगार-युवा-शिक्षित भविष्य को संवारने के लिए, कर्मचारी चयन आयोग से ‘रोजगार’ दिलवाना चाहती है या फिर बेरोजगारों पर दिल्ली पुलिस से लट्ठ बजवाकर उन्हें हाथ पैर से ‘कजद्द या विकलांग’ करवाना चाहती है.
कान में तेल डालकर सो रहा SSC
गंभीर तो यह है कि गुरुवार को एसएससी मुख्यालय की ओर बढ़ते इन बेरोजगारों और उन्हें पढ़ाने वाले शिक्षकों में न तो कोई किसान आंदोलन से जुड़ा सरकार-विरोधी कामों में लिप्त नेता था. न ही मौजूदा मोदी सरकार की खिलाफत करने वाला कोई विरोधी दल या फिर सरकार को निपटाने में जुटा कोई राहुल गांधी-खड़गे या सोनिया गांधी सा कद्दावर नेता. फिर इन बेरोजगार युवकों और उन्हें पढ़ाने वाले शिक्षकों के ऊपर इस कदर बेरहमी से दिल्ली पुलिस ‘लट्ठ’ बजाकर इन्हें ‘लहू-लुहान’ करने पर क्यों उतर आई? युवा बेरोजगारों को रोजगार देने के लिए एसएससी जैसी ढीली संस्था का गठन तो देश की हुकूमत ने ही किया है. और एसएससी है कि कान में तेल डाले आराम से कुंभकर्णी नींद में सो रहा है. तो किसी सोती हुई संस्था को जगाना क्या जुर्म है?
अपनी बात कहना भी गुनाह हो गया...
अब जब एसएससी खुद ही अपने वश में नहीं है तो क्या उसे सही कराने की मांग उठाना भी दुनिया के सबसे बड़े, भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में गुनाह है? अगर गुनाह है भी तो आप गिरफ्तार करके जेल में भेज दीजिए न सरकारी महकमे की खामियां उजागर करके, एसएससी को सड़क पर ‘नंगा’ करने पहुंचे बेरोजगारों और उनके समर्थक शिक्षकों को. पुलिस से इन निहत्थों के बदन पर बेकाबू ‘सरकारी-लाठियां’ तुड़वाने या चलवाने का क्या औचित्य है? भारत के संविधान में यह कहां लिखा है कि किसी सरकारी संस्था की खामियों को उजागर करने वाले बेरोजगार-उच्च शिक्षित युवाओं और उनके समर्थन में सड़कों पर उतरे शिक्षकों के ही हाथ-पांव पुलिस से तुड़वा डाले जाएंगे?
निहत्थे बिचारों पर दिल्ली पुलिस का लाठियां भांजना कितना सही?
प्रदशर्नकारियों की ऐसी एक भी मांग नहीं थी जिससे वे देश की मौजूदा हुकूमत या उसके नेता मंत्रियों की कुर्सी के लिए खतरा बन जाएं. यह सब तो पढ़े-लिखे बेरोजगार ‘बिचारों’ की ही श्रेणी में एसएससी द्वारा जबरिया शामिल कर डाले गए हैं. सो भला सोचिए कि कैसे कोई बर्दाश्त कर लेगा. यह सब प्रदशर्नकारी तो, खुद अपनी ही नजरों में संदिग्ध बनी बैठी फालतू की संस्था ‘SSC’ का असली चेहरा कहूं या फिर उसकी कथनी-करनी के बीच का फर्क दिखाने के इरादे से पहुंचे थे. न कि एसएससी मुख्यालय पर बम-गोला दागने गए थे. मगर निहत्थे प्रदर्शनकारियों के ऊपर दिल्ली पुलिस लाठियां लेकर टूटी ऐसे जैसे मानो ये सब, इस वक्त चल रहे मानसून सत्र में संसद के भीतर ही जा घुसने की कोशिश कर रहे हों या जा ही घुसे हों.
ब्लैकलिस्टेड कंपनी को दे दिया परीक्षा का ठेका
अरे भाई उच्च शिक्षित बेरोजगार हैं. जिनका सत्यानाश वही संस्था एसएससी कर रही हो जिसे इनका भविष्य संवारने का ‘ठेका’ या जिम्मेदारी दी है सरकार ने. एसएससी ने यह जिम्मेदारी आगे किसी उस ब्लैकलिस्टेड कंपनी-ठेकेदार को ‘ठेके’ पर दे दी, प्रतियोगिता परीक्षा आयोजित कराने वाली जो संस्था खुद ही पूर्व में ब्लैकलिस्टेड है. बहरहाल, गुरुवार को देश की राजधानी में बेरोजगार शिक्षित युवाओं और उनके समर्थन में सड़कों पर उतरे शिक्षकों के संग, सरकार के इशारे पर दिल्ली पुलिस ने जो सलूक किया है वह इंसानों के संग इंसानों द्वारा किया जाने वाला सलूक तो कतई नहीं कहा जाएगा. अब यह दिल्ली पुलिस समझे कि उसने अगर इंसानों वाला सलूक नहीं किया तब फिर वह खुद को खुद ही किस ‘कैटेगरी’ में शामिल मानती है.
ठेके पर परीक्षा कराने का विरोध कर रहे थे प्रदर्शनकारी
पीड़ित शिक्षित बेरोजगारों की मांग थी कि बुरी तरह से पस्त हो चुकी सरकारी संस्था एसएससी यानी कर्मचारी चयन आयोग कुंभकर्णी नींद से जागे. एसएससी ठेके पर जिस घटिया तौर-तरीके से प्रतियोगी परीक्षाएं करा रही है वह वाहियात और गैर-जिम्मेदाराना तरीका है. परीक्षा केंद्रों का गलत आवंटन हो रहा है. निकम्मी-संदिग्ध ठेका कंपनी परीक्षा के दौरान तमाम तकनीकी खामियां ला रही है. परीक्षा कक्ष में कंप्यूटर ठप हो जा रहे हैं. इंटरनेट नेटवर्क मृत प्राय अवस्था में होता है. परीक्षा केंद्रों पर पंखों तक का इंतजाम नहीं है. परीक्षा केंद्र हजारों किलोमीटर दूर डाल दिए गये हैं. खुद का और परीक्षा आयोजित कराने वाली ठेका कंपनी का निकम्मापन दबाने-छिपाने के लिए कर्मचारी चयन आयोग (Staff Selection Commission SSC) पुलिस बुलाकर बेरोजागारों को लाठियों से कुटवा दे रहा है. जब एसएससी का ही इतना क्रूर चेहरा हो तो फिर, अब इसकी शिकायत कौन क्यों और कैसे करने की हिम्मत करेगा हुकूमत और एसएससी से कि, प्रतियोगी परीक्षा केंद्रों पर प्रतियोगियों के साथ किस कदर की अशोभनीय दुर्व्यवाहरा की घटनाएं खुलेआम अंजाम दी जा रही हैं. पहले एसएससी खुद तो सुधर जाए. तभी तो उसके द्वारा परीक्षा आयोजित कराने के लिए चयनित संस्था खुद सुधरेगी.
कब दूर होगा एसएससी का निकम्मापन?
पीड़ित बेरोजगार अभ्यर्थी और शिक्षक तो इतना भर चाहते हैं कि एसएससी निकम्मेपन से पहले खुद दूर हो. उसके बाद उस ठेका कंपनी को भी हटाए जिसे एसएससी ने प्रतियोगी परीक्षाएं करवाने का ठेका दिया है. गुरूवार को पीड़ित सिर्फ और सिर्फ डीओपीटी (DoPT) मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह से मिलने जा रहे थे. यह बताने को कि उनकी नाक के नीचे ही एसएससी देखिए कैसे सो रही है? किस तरह देश के शिक्षित बेरोजगार युवकों के सपनों को एसएससी अपनी खामियां छिपाने के लिए, दिल्ली पुलिस की लाठियों से कुटवा-पिटवा रही है. प्रदर्शनकारियों का कहना था कि, चूंकि एसएससी खुद संदिग्ध संस्था बन चुकी है. ऐसे में वह किसी भी कीमत पर यह नहीं चाहेगी कि हम लोग मंत्री से मिलकर उसकी पोल खोलें. इसीलिए गुरुवार को दिल्ली में निहत्थे प्रदशर्नकारियों के ऊपर, एसएससी के इशारे पर दिल्ली पुलिस ने लाठियां भांज डालीं. इस बारे में दिल्ली पुलिस का कहना था कि, “लाठियां नहीं चलाई गईं. न ही किसी तरह के बल का प्रयोग किया गया है. चूंकि प्रदशर्नकारियों की भीड़ प्रतिबंधित इलाके की ओर बढ़ रही थी. उधर जाने से से भीड़ को रोकने की कोशिश की गई थी.”