SIR का दूसरा चरण: क्या वाकई बढ़ा बीएलओ का काम या 'बोझ'! बवाल क्यों, जानें उनकी समस्याएं
एसआईआर के दूसरे चरण में BLOs पर बढ़ा काम का दबाव, असुरक्षित माहौल और तकनीकी कमियों ने बड़े विवाद को जन्म दे दिया है. कई BLOs ने चेतावनी दी है कि यह अभियान कर्तव्य से ज्यादा दबाव और जोखिम बन गया है. चुनाव आयोग (ECI) का कहना है कि यह प्रक्रिया आवश्यक है. ताकि मतदाता सूची विश्वसनीय और सही तरीके से बन सके.;
देश के 12 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में दूसरे चरण का एसआईआर जारी है, लेकिन यह अब लोकतंत्र की बुनियाद (मतदाता सूची) को ठोस और भरोसेमंद बनाए जाने की कोशिश असुरक्षित व्यवस्था और विवादों में बदल गया है. ऐसे में सवाल उठना तय है. SIR के दूसरे चरण में BLOs की भूमिकाएं सिर्फ फॉर्म बांटने-भेजने तक नहीं रह गईं. उन पर असहनीय काम का बोझ, धमकियां और तकनीकी चुनौतियां आ गईं. इससे न केवल BLOs बल्कि पूरा SIR कार्यक्रम आलोचना के घेरे में है. BLOs की समस्याएं:
काम का दबाव
बीएलओ एक नहीं बल्कि कई चुनौतियां उभरकर सामने आई हैं. BLOs की ओर से हर रोज भारी वर्कलोड और असंभव लक्ष्य तय समय में पूरा करने की लगातार शिकायत कर रहे हैं. देशभर में 5.3 लाख BLOs को 51 करोड़ मतदाताओं का डेटा वेरिफाई करना है. मनोरोगात्मक व शारीरिक दबाव, मौतें और आत्महत्या. कई राज्यों में काम का बहुत ज्यादा दबाव और तनाव के कारण BLOs की मौत या आत्महत्या की रिपोर्ट भी सामने आई है.
सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं
बीएलओ का कहना है कि उन पर केवल राजनीतिक व सामाजिक दबाव ही नहीं बल्कि सुरक्षा की कमी की भी समस्या है. खासकर कुछ राज्यों में BLOs कह रहे हैं कि उन्हें राजनीतिक दबाव, धमकियां या प्रतिकूल माहौल का सामना करना पड़ रहा है. इस तरह की शिकायतें पश्चिम बंगला से बड़े पैमाने पर उभरकर सामने आ रही हैं.
तकनीकी-प्रशासनिक दिक्कतें
तकनीकी और प्रशासनिक दिक्कतों के तहत फॉर्म डिजिटाइजेशन में गड़बड़ी, 2003 सूची का डेटा न मिलना, QR-स्कैनिंग में समस्याएं आदि सामने आ रही हैं.
नामांकन व दस्तावेजीकरण का बोझ
साल 2003 के बाद जो जुड़े मतदाता हैं, उन्हें नए दस्तावेज देने पड़ रहे हैं. जिससे गरीब, प्रवासी या दस्तावेज हीन लोग प्रभावित हो सकते हैं.
निरपेक्षता व निष्पक्षता पर सवाल
एसआईआर के विरोधियों का कहना है कि इस प्रक्रिया में BLOs को अत्यधिक विवेकाधिकार मिला है, जिससे नामों की हेर-फेर, गलत विलोपन या पक्षपात की संभावना बन सकती हैं.
बीएलओ के काम में लगे टीचर का कहना है कि उन लोगों के ऊपर एक तो अधिकारियों का दबाव है. वहीं दूसरी ओर मतदाताओं के घरों पर जाने पर कई बार लोग मिलते नहीं हैं. सोसायटियों का हाल ये है कि जब बीएलओ फ्लैट पर पहुंचते हैं तो पता चलता है कि मकान मालिक यहां नहीं रहते हैं. उनके घरों पर ताले पड़े हुए हैं या फिर वहां किराएदार रह रहे हैं. दिन में कई लोग अपने काम पर गए रहते हैं. दिन भर भागदौड़ करनी पड़ रही है. बहुत परेशानी हो रही है. अफसरों का दबाव अलग है. उनका कहना है कि समय से पहले काम करना है. कई बीएलओ इसी चक्कर में बीमार पड़ गए हैं लेकिन सुनने वाला कोई नहीं है. कुछ मामलों में तो सुसाइड तक की घटना सामने आई है.
चुनाव आयोग (ECI) का तर्क
ECI कहती है कि SIR जरूरी है. वोटर लिस्ट अनवरत अपडेट होनी चाहिए, क्योंकि 2003 के बाद बहुत बदलाव हुए हैं. आयोग का कहना है कि SIR पारदर्शी, सरल और मतदाताओं के हित में है और BLOs को निर्देश दिए गए हैं कि वे घर-घर जाकर काम करें.
ECI उन आरोपों को खारिज करती है कि SIR जात-पात या पक्षपातपूर्ण है. चुनाव आयोग का कहना है कि नियम और दस्तावेज निश्चित हैं और नामांकन व वेरिफिकेशन एक प्रक्रिया है.
SIR के दूसरे चरण का मकसद
SIR 2025 का उद्देश्य मतदाता सूची को शुद्ध करना, उसे त्रुटिरहित और अपडेट करना है. 2003 के बाद से हुई शादी-मौत, पलायन, फर्जी प्रविष्टि, डुप्लीकेट वोटर आदि को ठीक करना भी इस प्रक्रिया का हिस्सा है.
इसके तहत BLOs को हर घर जाकर सत्यापन करना है. फॉर्म बांटना, दस्तावेज लेना और जानकारियां डिजिटल करना है. आयोग का तर्क है कि यह कदम मतदाता सूची की विश्वसनीयता बढ़ाने और फर्जी वोटिंग से रोकने के लिए जरूरी है.
क्यों है यह विवाद अहम?
- लोकतांत्रिक व सामाजिक मायने अगर BLOs दबाव, डर और असुरक्षित माहौल में काम करें तो मतदाता सूची की विश्वसनीयता प्रभावित हो सकती है.
- गरीब, प्रवासी, वंचित, दस्तावेज-हीन लोग का मतदाता सूची में नाम दर्ज कराने के लिए परेशानी हो ती है. सही तरीके से आवेदन न करने पर उनका वोट कट सकता है.
- एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया अगर डर या दबाव से प्रभावित हो तो वोटिंग का उद्देश्य ही प्रभावित होगा.
- यह प्रक्रिया BLOs की सेहत, सुरक्षा, नैतिकता पर सवाल है. यह दिखाता है कि चुनावी प्रशासन को सुधारने की जरूरत है. इस काम को सरल बनाने की जरूरत की है. साथ ही बीएलओ और ज्यादा समय देने की जरूरत है.