“आतंकी साजिश की तैयारी भी अपराध है”; सुप्रीम कोर्ट ने ISIS की विचारधारा फैलाने के आरोपी को नहीं दी जमानत
सुप्रीम कोर्ट ने ISIS विचारधारा फैलाने और जबलपुर ऑर्डनेंस फैक्ट्री पर हमले की साजिश के आरोपी सैयद मामूर अली की जमानत याचिका खारिज कर दी. कोर्ट ने कहा कि आतंकी हमले की तैयारी भी अपराध है. आरोपी दो साल से जेल में है, और ट्रायल कोर्ट को दो वर्षों में सुनवाई पूरी करने का निर्देश दिया गया. NIA के अनुसार, अली और उसके साथियों ने कोविड लॉकडाउन में कट्टरपंथी प्रचारकों से प्रभावित होकर हिंसक गतिविधियों की योजना बनाई थी.;
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को यूएपीए (Unlawful Activities Prevention Act), 1967 के तहत गिरफ्तार एक आरोपी को जमानत देने से इनकार कर दिया. आरोपी सैयद मामूर अली उर्फ मामूर भाई पर आरोप है कि उसने ISIS की विचारधारा फैलाने और जबलपुर ऑर्डनेंस फैक्ट्री पर आतंकी हमला करने की साजिश रची थी, ताकि आतंकवादी गतिविधियों के लिए हथियार जुटाए जा सकें.
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि आतंकी घटना को अंजाम देने की सिर्फ तैयारी करना भी कानूनन अपराध है. अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि आरोपी अगर दो साल में मुकदमा पूरा न होने पर दोषी नहीं ठहराया जाता, तो वह दोबारा जमानत की मांग कर सकता है.
पीठ ने कहा, “हम हस्तक्षेप करने के इच्छुक नहीं हैं. आरोपी दो साल से जेल में है, 64 गवाहों में से 19 की गवाही हो चुकी है. इसलिए ट्रायल कोर्ट दो साल में मुकदमा पूरा करे. यदि यह बिना आरोपी की गलती के लंबा खिंचता है, तो उसे दोबारा जमानत की अर्जी देने की छूट होगी.”
अदालत में तीखी बहस
जब सुनवाई शुरू हुई, तो आरोपी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ डे ने कहा कि “बीते दिन की घटना के बाद (दिल्ली के लालकिले के पास हुए धमाके में 13 की मौत) यह केस आज सुनने का सही समय नहीं है.” इस पर जस्टिस मेहता ने जवाब दिया, “नहीं, आज ही सही वक्त है - एक संदेश देने के लिए.”
जस्टिस नाथ ने जब यह कहा कि आरोपी के पास से भड़काऊ सामग्री बरामद हुई थी, तो डे ने पलटकर कहा कि “सिर्फ इस्लामिक साहित्य मिला, आतंकवादी सामग्री नहीं.”
जस्टिस मेहता ने आरोपों का ज़िक्र करते हुए कहा, “आपने ISIS जैसा व्हाट्सएप ग्रुप बनाया था, उसका मकसद क्या था?” डे ने जवाब दिया कि “सिर्फ योजना बनाना अपराध नहीं हो सकता, जब तक उसे क्रियान्वित न किया जाए.” इस पर जस्टिस मेहता ने कहा, “लेकिन आपके खिलाफ प्रारंभिक साक्ष्य हैं - आप पर देश में आतंक का जाल फैलाने का आरोप है.” जस्टिस नाथ ने जोड़ा, “आप पर समाज में अस्थिरता और असभ्यता फैलाने की कोशिश का आरोप है.”
एनआईए की जांच में क्या सामने आया
राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) के अनुसार, मामूर अली और उसके साथियों ने कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान जाकिर नाइक जैसे कट्टरपंथी प्रचारकों से प्रभावित होकर ISIS की विचारधारा अपनाई. वे पूरी दुनिया, खासकर भारत में शरीयत कानून लागू करना चाहते थे. उन्होंने ISIS और अल-कायदा जैसे झंडों की तरह पर्चे तैयार कर मस्जिदों पर चिपकाए, ताकि “हमख्याल” लोगों को जोड़ सकें. मामूर अली ने “फिसबिलिल्लाह” नाम से एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाया, जहां वे उग्रपंथी सामग्री साझा करते थे. एनआईए के अनुसार, उन्होंने जबलपुर ऑर्डनेंस फैक्ट्री पर हमला कर हथियार लूटने की योजना बनाई थी. अगर यह असफल होता, तो फैक्ट्री को उड़ाने की योजना थी. उनका उद्देश्य देशभर में हिंसा फैलाना था.
सुप्रीम कोर्ट ने इस पूरे मामले में यह साफ़ संदेश दिया कि आतंकवाद की सिर्फ योजना या तैयारी भी गंभीर अपराध है. अदालत ने ट्रायल कोर्ट को दो वर्षों में सुनवाई पूरी करने का निर्देश दिया, ताकि आरोपी और न्याय - दोनों के अधिकारों का संतुलन बना रहे.