PMLA मामले में SC ने पकड़ी ED की चालाकी, लगाई फटकार, कहा - 'ठग की तरह...'

PMLA Case: सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस भूषण आर. गवई ने ईडी (ED) से कहा कि हम आख्यानों के आधार पर मामलों का फैसला नहीं करते. मैं समाचार चैनल नहीं देखता. मैं सुबह 10 से 15 मिनट तक अखबारों की सुर्खियां ही पढ़ता हूं. आप एक बदमाश की तरह काम नहीं कर सकते. हमें नागरिकों की लोकतांत्रिक अधिकारों की भी चिंता है.;

( Image Source:  ANI )
Edited By :  धीरेंद्र कुमार मिश्रा
Updated On : 8 Aug 2025 9:49 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने 7 अगस्त को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने पीएमएलए से जुड़े दो अलग-अलग मामलों में अलग-अलग बेंच ने फटकार लगाई. देश की सर्वोच्च अदालत ने न केवल ईडी ने धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत उसकी कम दोषसिद्धि दर पर सवाल उठाए गए बल्कि उसकी कार्यप्रणाली और व्यापक शक्तियों पर भी सवाल उठाए. अदालत की एक पीठ ने तीखी टिप्पणी की कि केंद्रीय जांच एजेंसी यानी ईडी "ठग की तरह काम नहीं कर सकती" और उसे कानून के दायरे में काम करना चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट में दो अलग-अलग सुनवाई में अदालत की दो पीठों ने पीएमएलए की संवैधानिक वैधता और कार्यान्वयन से जुड़े मामलों की सुनवाई की. दोनों पीठों ने ईडी के तरीकों, उसकी लंबी जांच और 'आनुपातिक दोषसिद्धि दर' पर चिंता जताई.

जेएसडब्लू की ओर से पेश समाधान योजना रद्द

पहले मामले में भारत के मुख्य न्यायाधीश भूषण आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ भूषण पावर एंड स्टील लिमिटेड (बीपीएसएल) के दिवालियेपन मामले में 2 मई के अपने फैसले से संबंधित समीक्षा याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी. इस फैसले में कंपनी के परिसमापन का आदेश दिया गया था और जेएसडब्ल्यू स्टील द्वारा प्रस्तुत समाधान योजना को रद्द कर दिया गया था. उस फैसले को वापस ले लिया गया है और समीक्षा याचिकाओं पर नए सिरे से सुनवाई हो रही है.

सुनवाई के दौरान, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की कार्यप्रणाली और बीपीएसएल मामले में उसकी जांच पर चर्चा हुई, जिसके बाद पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन भी शामिल थे और एजेंसी की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के बीच तीखी बहस हुई.

मुख्य न्यायाधीश गवई ने पूछा, "सजा की दर क्या है?", इस व्यापक प्रश्न की ओर इशारा करते हुए कि क्या प्रवर्तन निदेशालय के नतीजे पीएमएलए के तहत उसकी व्यापक शक्तियों को उचित ठहराते हैं. मेहता ने स्वीकार किया कि सजा की दर वास्तव में कम थी, लेकिन उन्होंने इसके लिए आपराधिक न्याय प्रणाली में व्याप्त खामियों, जैसे देरी और प्रक्रियात्मक अक्षमताओं को जिम्मेदार ठहराया. उन्होंने कहा, "अन्य दंडनीय अपराधों में भी दोषसिद्धि की दर कम है."

मुख्य न्यायाधीश ने ईडी के वकील को फटकार लगाते वक्त कोई रियायत नहीं बरती. न्यायमूर्ति गवई ने कहा, "अगर उन्हें दोषी नहीं भी ठहराया जाता, तो भी आप वर्षों तक बिना किसी सुनवाई के उन्हें सजा सुनाने में सफल रहे हैं. उन्होंने पीएमएलए के तहत लंबी पूर्व-परीक्षण हिरासत और जमानत की कठोर शर्तों की ओर इशारा किया, जिसके कारण अक्सर बिना निर्णय के ही सजा हो जाती है.

SG मेहता ने ईडी के बचाव में क्या कहा?

ईडी का का बचाव करते हुए एसजी तुषार मेहता ने खुलासा किया कि जांच एजेंसी ने वित्तीय अपराधों के पीड़ितों को लगभग 23 हजार करोड़ की वसूली करके लौटाए हैं. "मैं एक ऐसा तथ्य बताना चाहता हूं जो पहले किसी भी अदालत में कभी नहीं कहा गया. ईडी ने 23 हजार करोड़ की वसूली करके पीड़ितों को दे दिए हैं." सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि वसूली गई राशि राज्य के पास नहीं रहती बल्कि धोखाधड़ी के पीड़ितों को वापस कर दी जाती है.

तुषार मेहता ने एजेंसी की गतिविधियों के पैमाने की ओर इशारा करके उसकी आलोचना का भी जवाब देने की कोशिश की. उन्होंने कहा, "कुछ मामलों में जहां राजनेताओं पर छापे पड़े और नकदी मिली, वहां पैसे की अधिकता के कारण हमारी मशीनों ने काम करना बंद कर दिया. हमें नई मशीनें लानी पड़ीं." उन्होंने आगे यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर गढ़े गए हानिकारक आख्यानों की ओर भी ध्यान दिलाया, खासकर जब एजेंसी हाई-प्रोफाइल लोगों को निशाना बनाती है.

इसके जवाब में चीफ जस्टिस ने कहा, "हम आख्यानों के आधार पर मामलों का फैसला नहीं करते. मैं समाचार चैनल नहीं देखता. मैं सुबह 10 से 15 मिनट तक अखबारों की सुर्खियां ही पढ़ता हूं." "आप एक बदमाश की तरह काम नहीं कर सकते."

बदमाश की तरह नहीं कर सकते काम - जस्टिस सूर्यकांत

दूसरी पीठ ने एक अलग लेकिन उतनी ही महत्वपूर्ण सुनवाई में जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस उज्जवल भुइयां और जस्टिस एन कोटेश्वर सिंह की तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने विजय मदनलाल चौधरी मामले में 2022 के उस फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए ईडी की के आचरण पर गंभीर आपत्ति जताई. इस कोर्ट ने भी कहा कि आप एक बदमाश की तरह काम नहीं कर सकते. आपको कानून के दायरे में काम करना होगा."

जस्टिस भुइयां ने आगे कहा, "कानून लागू करने वाले अधिकारियों और कानून का उल्लंघन करने वाले निकायों के बीच अंतर होता है. देखिए, मैंने एक मामले में क्या देखा... संसद में एक मंत्री ने जो कहा, वह सच साबित हुआ. 5,000 मामलों के बाद, 10 से भी कम दोष सिद्धि... इसलिए हम अपनी जांच और गवाहों को बेहतर बनाने पर जोर देते हैं. हम लोगों की आजादी की बात कर रहे हैं."

इस मामले में अदालत में ईडी की ओर से पेश हुए एएसजी राजू ने पुनर्विचार याचिका की स्वीकार्यता पर प्रारंभिक आपत्तियां उठाई और कहा कि 2022 के फैसले में "रिकॉर्ड के सामने कोई स्पष्ट त्रुटि" नहीं दिखाई गई है. उन्होंने आगे कहा कि पुनर्विचार याचिका मूलतः एक छद्म अपील थी. सुप्रीम कोर्ट के 25 अगस्त 2022 के आदेश के अनुसार पुनर्विचार केवल दो मुद्दों तक ही सीमित हो सकता है. ईसीआईआर की आपूर्ति और जमानत के लिए भार उलटने का खंड.

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