अब जेल से नहीं चलेगी सरकार! 30 दिन हिरासत में रहे तो चली जाएगी PM-CM की कुर्सी; जानिए इस बिल में क्या है खास

संसद में केंद्र सरकार बड़ा संवैधानिक बदलाव लाने जा रही है. प्रस्तावित 130वां संशोधन कहता है कि अगर कोई प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री 30 दिन से ज्यादा जेल में रहता है तो उसका पद अपने आप खत्म हो जाएगा. विपक्ष ने इसे सत्ता का हथियार बताया है तो सरकार इसे राजनीति से अपराधीकरण हटाने की दिशा में ऐतिहासिक कदम बता रही है.;

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Edited By :  नवनीत कुमार
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केंद्र सरकार ने संसद में जो नया संविधान संशोधन विधेयक (130वां) पेश करने की तैयारी की है, उसमें साफ प्रावधान है कि अगर कोई प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री लगातार 30 दिन तक हिरासत में रहता है तो वह स्वतः पद से हट जाएगा. अगर प्रधानमंत्री खुद 30 दिन जेल में रहते हैं तो 31वें दिन उन्हें पद छोड़ना होगा, अन्यथा वह कुर्सी अपने आप खत्म हो जाएगी.

यह कानून केवल मंत्रियों तक सीमित नहीं है, बल्कि प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री तक पर लागू होगा. यानी अब सत्ता की सबसे ऊंची कुर्सी भी कानूनी दायरे से बाहर नहीं रहेगी. हालांकि, यह स्थायी प्रतिबंध नहीं होगा. अगर आरोप झूठे साबित होते हैं या दोषमुक्ति मिलती है तो वही नेता दोबारा नियुक्त भी हो सकता है.

कौन से हैं तीन अहम बिल?

गृह मंत्री अमित शाह लोकसभा में तीन अहम विधेयक पेश करेंगे

  • संविधान (130वां संशोधन) विधेयक – हिरासत में रहने वाले जनप्रतिनिधियों को पद से हटाने का प्रावधान
  • केंद्र शासित प्रदेश (संशोधन) विधेयक – उपराज्यपाल और मंत्रियों से जुड़े बदलाव
  • जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक – स्थानीय प्रशासनिक व्यवस्था में संशोधन

तीनों बिलों को आगे संयुक्त संसदीय समिति (JPC) को भेजने का प्रस्ताव है.

कौन से अनुच्छेद होंगे प्रभावित?

इस विधेयक के तहत संविधान के अनुच्छेद 75, 164 और 239AA में संशोधन किया जाएगा.

  • अनुच्छेद 75: प्रधानमंत्री और केंद्रीय मंत्रियों से जुड़ा
  • अनुच्छेद 164: राज्यों के मुख्यमंत्री और मंत्रियों से जुड़ा
  • अनुच्छेद 239AA: दिल्ली और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों से जुड़ा

यानी यह बदलाव सीधे पूरे शासन ढांचे को प्रभावित करेगा.

क्यों जरूरी समझा गया बदलाव?

केंद्र का तर्क है कि अभी तक संविधान में कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है कि जेल में बंद प्रधानमंत्री या मंत्री को कैसे हटाया जाए. इससे राजनीति में अपराधीकरण की गुंजाइश बनी रहती है. अगर कोई जनप्रतिनिधि गंभीर आपराधिक आरोप में जेल में बैठा है और कुर्सी पर बना रहता है तो यह न केवल सुशासन बल्कि जनता के भरोसे के साथ भी खिलवाड़ है.

राजनीति में अपराधीकरण पर रोक

सरकार कहती है कि जनता द्वारा चुने गए नेता समाज में आदर्श माने जाते हैं. उनका चरित्र और आचरण संदेह से परे होना चाहिए. यदि कोई गंभीर अपराध में जेल में है तो वह जनता की सेवा नहीं कर सकता. यह बिल राजनीति से अपराधीकरण खत्म करने और लोकतंत्र की पारदर्शिता बनाए रखने की दिशा में एक निर्णायक कदम है.

विपक्ष का कड़ा विरोध

हालांकि विपक्ष ने इस पर सवाल खड़े कर दिए हैं. कांग्रेस सांसद अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि यह कानून विपक्षी नेताओं को निशाना बनाने का हथियार बन जाएगा. उन्होंने कहा कि केंद्रीय एजेंसियों का इस्तेमाल पहले ही विपक्षी मुख्यमंत्री और मंत्रियों को जेल भेजने के लिए किया जा रहा है. अब यह बिल उन्हें पद से हटाने का आसान जरिया बनेगा.

संघीय ढांचे पर असर की आशंका

तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने आरोप लगाया कि 240 सांसदों वाली बीजेपी संविधान बदलकर संघीय ढांचे और न्यायपालिका की भूमिका को कम कर रही है. उनके अनुसार, इससे केंद्र सरकार ईडी-सीबीआई का इस्तेमाल कर विपक्षी मुख्यमंत्रियों को जेल भिजवाकर पद से हटा सकती है, जबकि सत्ता पक्ष पर कोई असर नहीं होगा.

हाल की राजनीतिक पृष्ठभूमि

पिछले कुछ वर्षों में कई मुख्यमंत्री गिरफ्तारी के बावजूद पद पर बने रहे हैं. दिल्ली के अरविंद केजरीवाल और झारखंड के हेमंत सोरेन के मामलों को लेकर विपक्ष ने केंद्र पर राजनीतिक बदले की कार्रवाई का आरोप लगाया था. अब इस नए बिल ने उस बहस को और तेज कर दिया है कि क्या यह कदम लोकतंत्र की रक्षा के लिए है या विपक्ष को कमजोर करने की रणनीति.

संसद में होगा टकराव

गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि तीनों बिलों को संसद की संयुक्त समिति (JPC) के पास भेजा जाएगा ताकि सभी दलों के बीच चर्चा और सहमति बन सके. सरकार का कहना है कि यह केवल कानूनी कमी को दूर करने का प्रयास है. लेकिन विपक्ष मानने को तैयार नहीं. संसद का मानसून सत्र अब इस टकराव का बड़ा गवाह बनने जा रहा है.

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