न का मतलब न, महिला का चाहे कितने लोगों के साथ क्यों न हो संबंध? कोर्ट ने सुनाई ये सजा

बॉम्बे हाईकोर्ट ने साफ किया कि महिला की सेक्स के लिए दी गई सहमति हर बार के लिए नहीं मानी जा सकती. 'ना' का मतलब साफ इनकार है और इसे नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता. कोर्ट ने कहा, किसी महिला के पुराने संबंध या उसके पार्टनर्स की संख्या से उसकी सहमति या चरित्र का अनुमान नहीं लगाया जा सकता.;

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By :  सागर द्विवेदी
Updated On : 1 Dec 2025 6:25 PM IST

बॉम्बे हाईकोर्ट ने बलात्कार से जुड़े एक अहम मामले में फैसला सुनाते हुए साफ कहा है कि किसी महिला के 'ना' का मतलब स्पष्ट रूप से 'ना' ही होता है और इसमें कोई अगर-मगर या बहस की गुंजाइश नहीं है. अदालत ने यहबॉम्बे हाईकोर्ट ने साफ किया कि महिला की सेक्स के लिए दी गई सहमति हर बार के लिए नहीं मानी जा सकती. 'ना' का मतलब साफ इनकार है और इसे नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता. कोर्ट ने कहा, किसी महिला के पुराने संबंध या उसके पार्टनर्स की संख्या से उसकी सहमति या चरित्र का अनुमान नहीं लगाया जा सकता.

भी स्पष्ट किया कि किसी महिला की पहले दी गई सहमति का मतलब यह नहीं है कि भविष्य में हर बार उसकी मंजूरी मानी जाएगी.

कोर्ट ने क्या सुनाई सजा?

जस्टिस नितिन सूर्यवंशी और जस्टिस एम. डब्ल्यू. चांदवानी की पीठ ने 6 मई को सुनाए अपने फैसले में यह भी कहा कि जब महिला की इच्छा के खिलाफ शारीरिक संबंध बनाए जाते हैं, तो यह न केवल उसके शरीर पर, बल्कि उसकी मानसिक अवस्था पर भी गहरा प्रहार होता है. इस मामले में कोर्ट ने तीनों दोषियों की सजा को बरकरार रखते हुए आजीवन कारावास को घटाकर 20 साल की जेल कर दी.

कितने साल है पुराना मामला?

कोर्ट ने आरोपियों द्वारा दी गई इस दलील को खारिज कर दिया कि पीड़िता पहले एक आरोपी के साथ रिश्ते में थी और बाद में उसने किसी और के साथ लिव-इन रिलेशनशिप शुरू कर दी थी. अदालत ने स्पष्ट किया कि किसी महिला के बीते रिश्तों या उसके निजी जीवन के आधार पर उसके चरित्र पर सवाल नहीं उठाए जा सकते. . महिला की सहमति किसी एक मौके पर दी गई हो, इसका मतलब यह नहीं कि हर बार वह सहमति स्वचालित रूप से बनी रहेगी। कोर्ट ने कहा कि किसी महिला के यौन जीवन या उसके साथियों की संख्या से उसके चरित्र का मूल्यांकन नहीं किया जा सकता.

हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि बलात्कार जैसे अपराध को समाज में सबसे घृणित माना जाता है और पीड़िता की असहमति स्पष्ट संकेत है कि उसे संबंध नहीं बनाने हैं. ऐसी स्थिति में जबरदस्ती किया गया यौन संबंध, पूरी तरह अपराध है और इसे किसी भी तरह से जायज नहीं ठहराया जा सकता. संक्षेप में: महिला की मर्जी ही सर्वोपरि है — ‘ना’ का मतलब हमेशा ‘ना’ है. पहले की सहमति भविष्य की सहमति नहीं मानी जा सकती और महिला के चरित्र का आंकलन उसके यौन जीवन से नहीं किया जा सकता.

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