कर्नाटक की सत्ता में नई जंग, क्या सतीश जारकीहोली बनेंगे सिद्धारमैया के उत्तराधिकारी? जानें कितने हैं काबिल
कर्नाटक की राजनीति में एक बार फिर सियासी हलचल तेज हो गई है. मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के बेटे यतींद्र सिद्धारमैया के बयान ने कांग्रेस के भीतर नेतृत्व को लेकर नई बहस छेड़ दी है. जहां उन्होंने पार्टी को आगे बढ़ाने के लिए सतीश जारकीहोली का नाम लिया है.;
बुधवार की सुबह कर्नाटक की राजनीति में तब हलचल मच गई, जब मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के बेटे और विधान परिषद सदस्य यतींद्र सिद्धारमैया ने सार्वजनिक रूप से कहा कि उनके पिता अब अपने राजनीतिक करियर के आखिरी पड़ाव पर हैं. इतना ही नहीं, उन्होंने यह भी कहा कि अब कांग्रेस को सतीश जारकीहोली जैसे नेताओं को आगे लाना चाहिए.
यह बयान भले ही कुछ पलों में चर्चा का विषय बन गया, लेकिन इसके पीछे जो संकेत छिपा था, उसने सत्ता समीकरणों को हिलाकर रख दिया. इस बयान के बाद से कयासों का दौर शुरू हो गया है कि क्या सिद्धारमैया अपनी राजनीतिक विरासत सतीश जारकीहोली के हाथों सौंपने की तैयारी में हैं? ऐसे में चलिए जानते हैं कौन हैं सतीश जारकीहोली?
कौन हैं सतीश जारकीहोली?
63 साल के सतीश जारकीहोली वर्तमान में कर्नाटक के लोक निर्माण मंत्री हैं. वे बेलगावी जिले की यमकनमर्दी विधानसभा सीट से विधायक हैं और वाल्मीकि समुदाय से संबंध रखते हैं. सतीश जारकीहोली लंबे समय से सामाजिक न्याय और पिछड़े वर्गों के अधिकारों के लिए सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं. राजनीति में उन्होंने शुरुआत ज़मीनी स्तर से की और धीरे-धीरे संगठन के भीतर अपनी पकड़ मजबूत की. सिद्धारमैया के “आहिंदा” (अल्पसंख्यक, हिंदू पिछड़ा वर्ग और दलित) मॉडल को उन्होंने आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई. यही वजह है कि सिद्धारमैया के सबसे भरोसेमंद साथियों में उनका नाम सबसे ऊपर आता है.
सिद्धारमैया के वफादार, डीके शिवकुमार के प्रतिद्वंद्वी
सतीश जारकीहोली की पहचान न सिर्फ एक अनुभवी मंत्री के तौर पर है, बल्कि एक ऐसे नेता के रूप में भी है जो खुलकर सिद्धारमैया की सोच और नीतियों का समर्थन करते हैं. राजनीतिक गलियारों में यह भी चर्चा रही है कि जारकीहोली और उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार की अदावत पुरानी है. दोनों एक अलग राजनीतिक विचारधारा और सामाजिक आधार से आते हैं. जहां शिवकुमार वोक्कालिगा समुदाय के प्रतिनिधि माने जाते हैं, वहीं जारकीहोली अनुसूचित जाति के प्रभावशाली चेहरे हैं. यही कारण है कि जब यतींद्र सिद्धारमैया ने उनका नाम भविष्य के नेतृत्व के लिए सुझाया, तो इसे शिवकुमार खेमे के लिए एक “राजनीतिक चेतावनी” माना गया.
'आहिंदा' की राजनीति और जारकीहोली की भूमिका
“आहिंदा” की अवधारणा को कर्नाटक की राजनीति में सबसे पहले पूर्व मुख्यमंत्री देवराज उर्स ने दिया था. बाद में सिद्धारमैया ने इस विचार को आधुनिक रूप देकर इसे कांग्रेस की एक बड़ी ताकत बना दिया. इस मॉडल का मकसद अल्पसंख्यकों, पिछड़ों और दलितों को एक साझा मंच पर लाना और उन्हें उनके अधिकारों के लिए सशक्त बनाना था. जारकीहोली इस विचारधारा के सच्चे प्रतिनिधि के रूप में उभरे. उन्होंने न सिर्फ अपने क्षेत्र में बल्कि पूरे राज्य में पिछड़े वर्गों के बीच कांग्रेस की पकड़ मजबूत की. यही कारण है कि सिद्धारमैया चाहते हैं कि वे इस “आहिंदा” राजनीति की मशाल आगे बढ़ाएं.
राजनीति से है पुराना नाता
सतीश जारकीहोली का परिवार उत्तर कर्नाटक की राजनीति में बेहद प्रभावशाली है. उनके भाई रमेश जारकीहोली कभी कांग्रेस में रहे, लेकिन 2018 में बीजेपी में शामिल हो गए और मंत्री भी बने. वहीं सतीश की बेटी प्रियंका जारकीहोली कांग्रेस से चिक्कोडी की सांसद हैं. ऐसे में जारकीहोली परिवार का असर सत्ताधारी और विपक्ष दोनों ही खेमों में देखा जा सकता है. लेकिन सतीश हमेशा सिद्धारमैया के साथ खड़े रहे, जिसने उन्हें “निष्ठा और स्थिरता” के प्रतीक के रूप में पहचान दी.