सुप्रीम कोर्ट ने माना पुरुषों के साथ भी होता है गलत, लेकिन फिर भी क्यों कोर्ट नहीं कर सकती कानून में बदलाव?
आजकल पुरुषों के साथ भी गलत किया जा रहा है, जिसके कई मामले सामने आ चुके हैं. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने पुरुषों के लिए समान कानून के लिए दायर याचिका को खारिज कर कहा कि आज भी महिलाओं के साथ प्रताड़ना की जाती है. कुछ मामलों के चलते कानून में बदलाव नहीं किया जा सकता है.;
मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह सच है कि कुछ महिलाएं भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए का गलत इस्तेमाल कर सकती हैं और कभी-कभी पुरुषों और उनके परिवार वालों को झूठे केसों में फंसा देती हैं, लेकिन कोर्ट ने यह भी कहा कि यह कानून महिलाओं को उनके ससुराल में होने वाली क्रूरता से बचाने के लिए बनाया गया है और सिर्फ कुछ झूठे केसों के कारण इस कानून को बदला नहीं जा सकता है.
सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की बेंच ने कहा कि कुछ मामलों में महिलाएं भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए और नए कानून बीएनएस की धारा 85 का गलत इस्तेमाल कर सकती हैं, और अपने पति या ससुराल वालों पर झूठे आरोप लगा सकती हैं. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि सभी महिलाएं ऐसा कर रही हैं या यह मान लिया जाए कि पुरुष ही हमेशा पीड़ित हैं.
महिलाओं को प्रताड़ित करने के मामले ज्यादा
कोर्ट ने कहा कि ज़्यादातर मामलों में महिलाएं ही अपने ससुराल में हिंसा, तानों और अन्य तरह की मानसिक या शारीरिक तकलीफों का शिकार होती हैं. इसलिए जरूरी है कि हर केस को उसके सबूतों और सच्चाई के आधार पर देखा जाए. अदालतें हर मामले की जांच उसके अपने तथ्यों के अनुसार ही करेंगी, न कि किसी एक राय या सोच के आधार फैसले लिए जाएंगे.
एनजीओ ने दायर की याचिका
एक एनजीओ 'जनश्रुति' ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. उन्होंने कहा कि वह शादी से जुड़े कानूनों को लेकर कुछ गंभीर परेशानियों को सामने लाना चाहते हैं. खासकर जब बात भरण-पोषण, घरेलू हिंसा और ससुराल में क्रूरता जैसे मामलों की हो. उनका कहना है कि इन कानूनों का कभी-कभी गलत इस्तेमाल भी होता है, और इसी को रोकने के लिए उन्होंने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है.
समान हो कानून
एनजीओ के वकील ने कोर्ट से कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए और बीएनएस की धारा 85 को ऐसा बनाया जाना चाहिए कि ये सिर्फ महिलाओं के लिए ही नहीं, बल्कि पुरुषों के लिए भी सुरक्षा दें. यानी कानून 'लैंगिक रूप से तटस्थ' हो. उन्होंने सुझाव दिया कि इन कानूनों का दुरुपयोग रोकने के लिए कुछ जरूरी कदम उठाए जाएं, जैसे कि गिरफ्तारी से पहले शुरुआती जांच ज़रूरी हो और पति-पत्नी के बीच सुलह की कोशिश की जाए. इससे सही मामलों में इंसाफ होगा और झूठे मामलों से लोग बच सकेंगे.
क्यों नहीं बदल सकता कानून?
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498ए और नए कानून बीएनएस की धारा 85 में बदलाव करना कोर्ट का नहीं, बल्कि संसद का काम है. कोर्ट ने कहा कि संसद में देश के 142 करोड़ लोगों के चुने हुए प्रतिनिधि होते हैं, और वही तय करते हैं कि कानून कैसा होना चाहिए. कोर्ट तब ही दखल देता है जब किसी कानून में साफ तौर पर कोई बड़ी गलती या असंवैधानिक बात नजर आती है. आखिर में सुप्रीम कोर्ट ने यह जनहित याचिका खारिज कर दी.