कभी शकीला के आगे पानी भरते थे ममूटी और मोहनलाल, आज कैसा है केरल की एडल्ट फिल्म इंडस्ट्री का हाल?
1990 के दशक के लैटर हाफ में, मलयालम सिनेमा ने अश्लीलता के युग में प्रवेश किया - जब सी. शकीला बेगम उर्फ शकीला स्टारर एडल्ट फिल्मों ने मेगास्टार ममूटी और मोहनलाल की ब्लॉकबस्टर बॉक्स-ऑफिस फिल्मों को भी पीछे छोड़ दिया.;
भारत में जब भी एडल्ट फिल्म इंडस्ट्री की बात होती है तो सबसे पहले केरल की एडल्ट फिल्म इंडस्ट्री का नाम ही जेहन में आता है. ऑथर दर्शना श्रीधर मिनी जिन्होंने पिछले साल अपनी किताब 'रेटेड ए: सॉफ्ट-पोर्न सिनेमा एंड मीडिएशन्स ऑफ डिज़ायर इन इंडिया' लॉन्च की थी, उन्होंने इस किताब को लिखने से पहले केरल में एक समय सुपर हिट रही एडल्ट फिल्म इंडस्ट्री पर स्टडी की है. विस्कॉन्सिन-मैडिसन यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर दर्शना ने इस मिनी इंडस्ट्री में पर्दे के पीछे काम करने वालों और इसे ऑपरेट करने वाली शकीला जैसी एक्ट्रेस के बारे में टाइम्स ऑफ इंडिया से बात की.
1990 के दशक में, मलयालम सिनेमा ने अश्लीलता के युग में प्रवेश किया - जब सी. शकीला बेगम उर्फ शकीला स्टारर एडल्ट फिल्मों ने मेगास्टार ममूटी और मोहनलाल की ब्लॉकबस्टर बॉक्स-ऑफिस फिल्मों को भी पीछे छोड़ दिया था. हालांकि जब दर्शना श्रीधर से पूछा गया कि आखिर आपको 90 और 2000 के दशक के केरल में सॉफ्ट पोर्न बूम पर स्टडी करने के लिए किसने इंस्पायर्ड किया?.' जिसके जवाब में उन्होंने कहा, 'एमफिल करते समय मैं यह समझने की कोशिश कर रही थी कि यंग लड़कों या टीनएजर्स को सेक्स एजुकेशन के बारे में कैसे पता चलता है. बहुत समझाने के बाद, उन्होंने कहा कि उन्हें सॉफ्ट पोर्न फिल्मों के जरिए से एरोटिक और इंटिमेसी के बारें में पता चला (उदाहरण के लिए कंडोम क्या होता है).'
पांच महीने बाद हुई मुलाकात
श्रीधर ने आगे कहा, 'इसने मुझे इस शैली के बारे में सोचने पर मजबूर किया, लेकिन तब इसके बारे में ज्यादा स्कालरशिप नहीं थी. सभी ने मुझे बताया कि ये फिल्में कोडंबक्कम, चेन्नई में बनाई गई थीं. इसलिए, मैं वहां गई, लेकिन बहुत पता करने के बाद भी मुझे वहां ऐसा कुछ नहीं मिला. तभी मुझे कोडंबक्कम की काल्पनिक, छद्म नाम से ड्राइवन प्रोडक्शन कल्चर के बारे में पता चला, जो मेनस्ट्रीम सिनेमा के रिजर्व्ड पूल पर पैसा लगाती थी. मैंने फिल्म लैबोरेट्रीज में समय बिताना शुरू कर दिया और, पांच महीने के इंतजार के बाद, आखिरकार मुझे सॉफ्ट पोर्न में काम करने वाले किसी व्यक्ति से मिलवाया गया.
कभी नहीं थी पैसों की कमी, फिर कैसे हुई बदहाल?
1990 और 2000 के दशक की शुरुआत में सॉफ्ट पोर्न एक पैरेलल इंडस्ट्री बन गया, जिसका मुख्य कारण मेनस्ट्रीम के सिनेमा को फाइनेंसियल क्राइसिस का सामना करना पड़ा. प्रमुख निर्देशकों द्वारा बनाई गई ए-लिस्ट एक्टर्स वाली कई फिल्में बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह फ्लॉप रहीं. इग्ज़िबटर और डिस्ट्रीब्यूटर्स यह पता लगाने की कोशिश कर रहे थे कि क्या काम करेगा, और सॉफ्ट पोर्न के जल्दी बनने, कम बजट वाले फॉर्मूले ने इसे व्यवहार्य बना दिया. हालांकि, जो इस इंडस्ट्री की ताकत थी, वही इसके लिए कमजोरी बन गई. सस्ती होने के कारण ऐसी फिल्में ज्यादा बनने लगीं और सबमें लगभग एक जैसी कहानी और वही किरदार नजर आने लगे. इस इंडस्ट्री के धीरे-धीरे कमजोर पड़ने के पीछे यही सबसे बड़ी वजह रही. समान कहानी वाली फिल्में, समान कलाकार और टीम जिसमें शायद 10 या 15 महिलाएं थीं, जिन्होंने इन सभी फिल्मों में काम किया था. उदाहरण के लिए, शकीला ने एक समय हर फिल्म के बजाय पर डे फीस लेना शुरू कर दिया. उन्हें एक दिन के 1.5 लाख रुपये मिलते थे, लेकिन उन्हें नहीं पता था कि एक दिन के फुटेज का इस्तेमाल कई फिल्मों के लिए किया जा रहा है.
कौन थी शकीला?
शकीला जो 17 साल कि उम्र से ही प्रोस्टिट्यूशन में शामिल हो गई थी. इस बारे में खुद शकीला ने टाइम्स ऑफ़ इंडिया को बताया था कि उन्हें ऐसा करने के लिए उनकी मां ने मजबूर किया था क्योंकी उनके छोटे-छोटे भाई बहन थे और उन्हें पालना था. शकीला ने बारे में अब दर्शना कहती हैं कि सॉफ्ट पोर्न का शकीला एक ऐसा चेहरा बन गई जिसका नतीजा यह हुआ कि उन्हें कभी भी मलयालम सिनेमा में कोई अच्छा किरदार निभाने का मौका नहीं मिला. उन्होंने एक फिल्म का निर्देशन करने की कोशिश की, लेकिन हर कोई उन्हें एक्ट्रेस के रूप में देखना चाहता था. दिलचस्प बात यह है कि, किसी ऐसे व्यक्ति के लिए जिसे विषमलैंगिक पुरुषों की कल्पना के रूप में देखा जाता है, शकीला ट्रांस समुदाय और उसके कारणों से निकटता से जुड़ी हुई थी. अब जब वह राजनीति के लिए तैयारी कर रही है, तो मुझे यह जानने की एक्साइटेड है कि वह सम्मान की उम्मीद को कैसे पूरा करती है.
मिडिल क्लास मोरालिटी की परवाह नहीं
ऑथर दर्शना कहती हैं कि केरल में वह जिन अधिकांश सिनेमाघरों में गई, वे दर्शकों में महिलाओं को शामिल नहीं करना चाहते थें. जब तक कि वे सेक्स वर्कर न हों. लेकिन उन्होंने कई महिलाओं से बात की जो देर रात केबल टेलीविजन पर ये फिल्में देखती थीं. लीड एक्ट्रेस लोगों को अट्रैक्ट करती है क्योंकि वह बतौर सेक्स वर्कर बनकर अपने दम पर काम करती हैं और मिडिल क्लास मोरालिटी की परवाह नहीं करती है. मजे की बात यह है कि सॉफ्ट पोर्न में एक्ट करने वाले मेल को मुझसे बात करने में अधिक शर्मिंदगी होती थी क्योंकि उनके काम को पुरुषत्वहीन करने वाले के रूप में देखा जाता था. स्ट्रांग महिलाएं नरेशन का आधार थी क्योंकि उन्हें भी सेक्स की इच्छाएं होती थी और कभी-कभी ऐसे रिफरेन्स भी मिलते हैं उनकी यह इच्छा भी पूरी नहीं हो पाती है. पुरुष इसे पर्सनली लेते हैं, ऐसा महसूस करते हैं जैसे वे एक एक्टर के बजाय शकीला की फिल्म में सिर्फ एक अतिरिक्त कलाकार थे.
महिला सुख क्यों दिखाना चाहते हैं?
मेनस्ट्रीम की फिल्मों महिला सेक्सुअल प्लेजर एक बड़ी मनाही है. प्रमुख मीडिया में आनंद के एजेंट के रूप में महिलाओं की कल्पना करना असंभव था. जब मैंने निर्देशकों से पूछा कि वे महिला सुख क्यों दिखाना चाहते हैं, तो उन्होंने कहा कि वे गतिशीलता को बदलना चाहते हैं, जहां चीजों को निर्देशित करने वाले नायक के बजाय एक महिला है, फिर महिला नेतृत्व पुरुष के स्थान पर खड़ा होता है और उसे उन इच्छाओं की अनुमति दी जाती है.'