मंदिर का धन सिर्फ देवी-देवताओं का... मद्रास HC से तमिलनाडु सरकार को बड़ा झटका

Madras High Court: मद्रास हाई कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार की उस याचिका को रद्द कर दिया, जिसमें मंदिर के धन का इ्स्तेमाल शादी का मंडप बनाने के लिए अनुमति दी थी. कोर्ट ने कहा, मंदिर का धन देवी-देवता की संपत्ति है न की सरकार की.;

( Image Source:  canava )
Edited By :  निशा श्रीवास्तव
Updated On : 29 Aug 2025 12:04 PM IST

Madras High Court: मंदिर में चढ़ावे को लेकर अक्सर ट्रस्ट और सरकार के बीच विवाद देखने को मिलता है. मद्रास हाई कोर्ट ने हाल ही में एक सुनवाई के दौरान कहा कि मंदिर में दान की गई राशि और संपत्ति देवी-देवताओं की है न की सरकार की.

अदालत ने कहा कि मंदिर का धन सार्वजनिक या सरकारी धन नहीं माना जा सकता. तमिलनाडु सरकार ने मंदिर से विवाह मंडल बनाने की अनुमति दी थी, जिसे कोर्ट ने रद्द कर दिया है और सख्त टिप्पणी की. जस्टिस एस.एम. सुब्रमण्यम और जस्टिस जी. अरुल मुरुगन की बेंच ने 27 मंदिरों में विवाह हॉल बनाने के लिए मंदिर निधियों के उपयोग संबंधी सरकारी आदेश (GOs) को रद्द कर दिया है.

सरकार को लगा झटका

अदालत ने कहा कि ऐसे जमा किए गए भेंट धन या संपत्ति का उद्देश्य केवल धार्मिक क्रियाओं, पूजा-अर्चना, उत्सव, और मंदिरों के रखरखाव या आवश्यक धर्मार्थ कार्यों तक ही सीमित होना चाहिए. इन्हें वाणिज्यिक उद्देश्यों जैसे विवाह हॉल निर्माण के लिए इस्तेमाल करना धर्मनिरपेक्षता और दानदाताओं की मंशा का उल्लंघन है. इसके अलावा, ऐसा प्रयास हिंदुओं के धर्म-स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का भी हनन करता है. इसलिए इनका सरकारी कामों या परियोजनाओं में उपयोग नहीं किया जा सकता.

सरकार ने रखा पक्ष

सुनवाई के दौरान राज्य सरकारी की ओर से पेश वकील ने कहा कि यह धन लोन के रूप में वापस की जाएंगी. विवाह को हिंदू धर्म में एक धार्मिक अनुष्ठान माना गया. इस आधार पर इसे धार्मिक उद्देश्य माना जाना चाहिए था. हालांकि मदुरै बेंच ने इस दावे को खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि तलाक या विवाह स्वयं एक धार्मिक उद्देश्य नहीं है. चूंकि हॉल किराए पर दिए जाने वाले हैं, इसलिए इनमें धर्मार्थ तत्व (charity) न के बराबर है. ये गतिविधियां HR & CE अधिनियम की धार्मिक उद्देश्य की अवधारणा से बाहर हैं.

क्या है मामला?

हाल ही में तमिलनाडु के मानव संसाधन एवं तकनीकी शिक्षा मंत्री पीके शेखर बाबू ने विधानसभा में घोषणा की थी कि 80 करोड़ रुपये की लागत से 27 मंदिरों में विवाह भवन बनाए जाएंगे. इस पर संज्ञान लेते हुए, अदालत ने सरकारी आदेश को रद्द कर दिया और कहा कि मंदिरों के धन का इस तरह दुरुपयोग नहीं किया जा सकता.

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