क्या निजीकरण से बढ़ रही बेरोजगारी? पांच साल में 1 लाख सरकारी नौकरियां हो गईं 'स्वाहा'
पिछले पांच वर्षों में केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (CPSEs) में 1.08 लाख नियमित सरकारी नौकरियां कम हुई हैं, जिसका मुख्य कारण निजीकरण और रणनीतिक विनिवेश है. कर्मचारी संख्या 2019-20 में 9.2 लाख थी, जो 2023-24 में घटकर 8.12 लाख रह गई. SC और ST कर्मचारियों की वास्तविक संख्या में गिरावट आई, जबकि OBC की संख्या बढ़ी.;
क्या प्राइवेटाइजेशन की वजह से भारत में बेरोजगारी बढ़ रही है. ये हम नहीं कह रहे आंकड़े बता रहे हैं. देश में केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (CPSEs) में पिछले पांच वर्षों में एक लाख से अधिक नियमित सरकारी नौकरियां निजीकरण और विनिवेश के कारण समाप्त हो गई हैं. यह जानकारी सरकार ने संसद में प्रदान की. केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में कर्मचारियों की संख्या 2019-20 में 9.2 लाख थी, जो 2023-24 में घटकर 8.12 लाख रह गई. इसके पीछे का कारण सरकारी हिस्सेदारी की बिक्री और प्रबंधन नियंत्रण निजी हाथों में देना है.
सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण राज्य मंत्री बी.एल. वर्मा ने लोकसभा में लिखित उत्तर में बताया कि इस अवधि में अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) कर्मचारियों की संख्या में गिरावट आई, जबकि अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) कर्मचारियों की संख्या बढ़ी. श्रम अर्थशास्त्री संतोष मेहरोत्रा के अनुसार, इस पांच साल की अवधि में नियमित कर्मचारियों की संख्या में 12% की गिरावट हुई है, जिससे बेरोजगारी की स्थिति और खराब हुई है.
द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के अनुसार विशेषज्ञों का कहना है कि जबकि अनुपातिक रूप से SC और ST का हिस्सा बढ़ा दिखाया गया है, वास्तविक संख्या में उनकी स्थिति कमजोर हुई है. इस निजीकरण और रणनीतिक विनिवेश ने सरकारी रोजगार में अवसर घटा दिए हैं, खासकर उन क्षेत्रों में जहां आरक्षण लागू होता है. बेरोजगारी दर अप्रैल-जुलाई 2025 में 5% से ऊपर रही, जो पिछले साल की औसत 3.2% से काफी अधिक है.
SC/ST कर्मचारी घटे
सामाजिक समूहों के विश्लेषण पर गौर करें तो SC और ST कर्मचारियों की संख्या में गिरावट आई, जबकि OBC कर्मचारियों की संख्या 1.99 लाख से बढ़कर 2.13 लाख हुई. अनुपातिक हिस्सेदारी में SC का हिस्सा 17.44% से बढ़कर 17.76%, ST का हिस्सा 10.84% से बढ़कर 10.85% और OBC का हिस्सा 21.59% से बढ़कर 26.24% हो गया.
12 फीसदी घटी कुल कर्मचारियों की संख्या
श्रम अर्थशास्त्री संतोष मेहरोत्रा का कहना है कि आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि कुल कर्मचारियों की संख्या में 12% की गिरावट हुई है, जो सीधे रोजगार संकट को बढ़ावा देती है. उन्होंने बताया, “यद्यपि अनुपातिक रूप से SC और ST का हिस्सा थोड़ा बढ़ा दिखाया गया है, लेकिन वास्तविक संख्या में लगभग 28,000 कर्मचारी घट गए. इसका मतलब यह है कि निजीकरण और विनिवेश ने सरकारी रोजगार में अवसर घटा दिए हैं, जहां आरक्षण लागू होता है.”
'मंत्री जी ने गलत आंकड़े दिए'
राष्ट्रीय दलित संगठन (NACDOR) के अध्यक्ष अशोक भारती ने भी इस आंकड़े की आलोचना की. उन्होंने कहा कि मंत्री द्वारा प्रस्तुत आंकड़े भ्रामक हैं, क्योंकि वास्तविक संख्या में SC और ST कर्मचारियों की गिरावट हुई है. उन्होंने बताया कि निजीकरण के बाद निजी क्षेत्र में आरक्षण नहीं है, इसलिए SC और ST समुदाय सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं.
सरकार ने अपनी 10 कंपनियों में बड़ी हिस्सेदारी बेची
पिछले कुछ वर्षों में सरकार ने रणनीतिक विनिवेश (Strategic Disinvestment) के माध्यम से 10 CPSEs में अपनी हिस्सेदारी की बड़ी मात्रा निजी हाथों में बेच दी और प्रबंधन नियंत्रण ट्रांसफर कर दिया. वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने राजसभा में बताया कि 2014-15 से अब तक ₹4,36,748 करोड़ से अधिक राशि सरकारी हिस्सेदारी बेचने से प्राप्त हुई है.
विशेषज्ञों का कहना है कि इस प्रक्रिया ने बेरोजगारी की स्थिति को और गहरा किया है. पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे के अनुसार, भारत में 15 साल और उससे ऊपर की उम्र वालों के लिए बेरोजगारी दर अप्रैल-जुलाई 2025 में 5% से ऊपर रही. पिछले साल की वार्षिक औसत दर 3.2% थी.
सरकारी नौकरियों पर घट रहा भरोसा
CPSEs में नौकरी की कमी का प्रभाव विभिन्न सामाजिक वर्गों पर भी स्पष्ट हुआ. SC और ST समुदाय के युवाओं के लिए सरकारी रोजगार पर भरोसा घट गया है. OBC समुदाय में भले ही संख्या में वृद्धि दिखी हो, लेकिन यह केवल अनुपातिक आंकड़ों में दिखाई देती है. निजीकरण ने रोजगार में आरक्षण वाले क्षेत्रों को सबसे अधिक प्रभावित किया है.
रणनीतिक विनिवेश से रोजगार बढ़ने की बजाय घट गया
विश्लेषकों के अनुसार, सरकार द्वारा लागू रणनीतिक विनिवेश का उद्देश्य वित्तीय आय बढ़ाना और सरकारी हिस्सेदारी घटाना था, लेकिन इसका प्रत्यक्ष प्रभाव रोजगार घटाने के रूप में सामने आया. सरकारी कर्मचारियों के लिए स्थायी नौकरियों की संख्या घटने से युवाओं में नौकरी की चिंता बढ़ी है. इस डेटा के सामने आने के बाद विपक्ष और सामाजिक संगठनों ने सरकार की नीतियों पर सवाल उठाए हैं. उनका कहना है कि निजीकरण से रोजगार संकट और बढ़ गया है, जबकि सरकार इसे आर्थिक लाभ के रूप में प्रस्तुत कर रही है.
निजीकरण ने सीमित किए अवसर
इसके अलावा, यह भी ध्यान देने योग्य है कि निजीकरण के कारण सरकारी क्षेत्र में नए भर्ती के अवसर सीमित हो गए हैं. इससे युवा वर्ग पर दबाव बढ़ा है और बेरोजगारी की समस्या गंभीर रूप ले रही है. सरकारी आंकड़ों और विशेषज्ञों की राय को मिलाकर देखा जाए तो यह स्पष्ट है कि पिछले पांच वर्षों में सरकारी क्षेत्र में स्थायी नौकरियों में कमी और निजीकरण ने बेरोजगारी की स्थिति को और खराब कर दिया है. SC और ST समुदाय के लिए अवसर घटने से सामाजिक असमानता भी बढ़ी है.