बिहार के वोटरों को तीन दिन की पेड लीव दो! कर्नाटक डिप्टी CM डीके शिवकुमार की अपील से गरमाई सियासत
बिहार चुनाव से पहले कर्नाटक के डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार ने कंपनियों, बिल्डरों और होटल मालिकों से अपील की है कि बिहार के मजदूरों और कर्मचारियों को वोट डालने के लिए कम से कम तीन दिन का पेड लीव दिया जाए. यह कदम लोकतांत्रिक अधिकार की पहल बताया जा रहा है, लेकिन बीजेपी इसे कांग्रेस की रणनीतिक राजनीति बता रही है. यह पहली बार है जब किसी राज्य की सरकार ने दूसरे राज्य के चुनाव के लिए औपचारिक रूप से छुट्टी देने की मांग की है.;
बिहार विधानसभा चुनाव नज़दीक आते ही राजनीति सिर्फ पटना तक नहीं, बल्कि देशभर के उन शहरों तक फैल चुकी है, जहां लाखों बिहारी मज़दूर और पेशेवर नौकरी करते हैं. कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार का ताज़ा बयान इसी बदलते चुनावी माहौल का बड़ा संकेत है. उन्होंने राज्यभर के नियोक्ताओं से अपील की है कि बिहार के मजदूरों और कर्मचारियों को कम से कम तीन दिन का पेड लीव दिया जाए, ताकि वे अपने गृह राज्य जाकर मतदान कर सकें.
यह अपील सिर्फ लोकतांत्रिक भागीदारी की बात नहीं, बल्कि सियासी संदेश भी है. कर्नाटक कांग्रेस ने हाल के दिनों में प्रवासी बिहारी समुदाय के साथ सीधे सम्पर्क बढ़ाया है. ऐसा पहला मौका है जब किसी राज्य सरकार के उच्च पदाधिकारी ने औपचारिक रूप से दूसरे राज्य के चुनाव में वोट डालने के लिए छुट्टी देने की अपील की है. ऐसे में सवाल उठ रहा है. क्या यह "लोकतांत्रिक सहयोग" है या "राजनीतिक रणनीति"?
तीन दिन का पेड लीव ज़रूरी
डीके शिवकुमार ने कंपनियों, बिल्डरों, होटल मालिकों, कॉन्ट्रैक्टरों और निजी संस्थानों से कहा कि वे बिहार के कर्मचारियों को वोट डालने के लिए छुट्टी दें. उन्होंने कहा कि बेंगलुरु और कर्नाटक के अन्य शहरों में बड़ी संख्या में बिहार के प्रवासी काम करते हैं, इसलिए लोकतंत्र को मज़बूत बनाने में नियोक्ताओं की भी ज़िम्मेदारी है.
बिहार चुनाव में कर्नाटक की एंट्री?
यह बयान तब आया है जब शिवकुमार हाल ही में बेंगलुरु में बिहारी समुदाय के कार्यक्रम में शामिल हुए थे और वहाँ उन्होंने कांग्रेस गठबंधन (महागठबंधन) के समर्थन की अपील की थी. इस कदम को सिर्फ "लोकतांत्रिक प्रयास" बताना आसान नहीं, क्योंकि यह सीधे तौर पर बिहार के चुनावी समीकरणों में कांग्रेस की दिलचस्पी दिखाता है.
सरकारी संसाधन से चुनाव प्रचार?
बीजेपी ने इसे लेकर कर्नाटक सरकार पर हमला किया है. विपक्ष का आरोप है कि शिवकुमार सिर्फ अपील नहीं कर रहे, बल्कि राज्य मशीनरी का इस्तेमाल कर बिहार में कांग्रेस को फायदा पहुँचाने की कोशिश कर रहे हैं. भाजपा नेताओं ने दावा किया कि कर्नाटक कांग्रेस बिहार चुनाव में महागठबंधन को आर्थिक और राजनीतिक समर्थन दे रही है.
'मज़दूर वोट बैंक' का नया महत्व
देशभर में काम कर रहे प्रवासी मजदूर और कर्मचारी चुनाव के दौरान अब निर्णायक भूमिका में दिख रहे हैं. बिहार, झारखंड, यूपी से आने वाले श्रमिक लाखों की संख्या में दक्षिण और पश्चिम भारत में काम करते हैं. अगर इनमें से सिर्फ 20-25% भी मतदान के लिए लौटें तो कई सीटों पर नतीजे बदल सकते हैं और यही कारण है कि सियासत अब राज्यों की सीमाओं से बाहर जा चुकी है.
क्या यह मॉडल पूरे देश में लागू होगा?
इस अपील ने एक नई बहस शुरू कर दी है कि क्या भारत में इंटर-स्टेट वोटिंग सशक्त करने के लिए "पेड लीव मॉडल" लागू हो सकता है? या फिर यह सिर्फ एक राजनीतिक प्रयोग है, जिसकी उम्र चुनाव तक सीमित है?
बिहार की लड़ाई अब बेंगलुरु तक फैली
यह पहला मौका है जब बिहार चुनाव की गर्मी बेंगलुरु से लेकर कर्नाटक के उद्योग गलियारों तक महसूस हो रही है. शिवकुमार की अपील ने दिखा दिया कि अब चुनाव सिर्फ बूथ और प्रत्याशियों की नहीं, बल्कि प्रवासी श्रमिकों, कामगार अधिकारों और राज्यों के बीच राजनीतिक आकर्षण की लड़ाई भी है.