वाह रे सिस्टम! 1.5 लाख का नुकसान और मिले सिर्फ 2 रुपये 30 पैसे, महाराष्ट्र के किसान की कहानी ने खोल दी पोल
महाराष्ट्र के एक किसान को फसल बीमा योजना के तहत सिर्फ ₹2.30 मिले, जबकि उसकी फसल को ₹1.5 लाख का नुकसान हुआ. सात एकड़ में धान की खेती करने वाले किसान ने बीमा प्रीमियम भी भरा था, लेकिन मुआवज़े के नाम पर आई रकम ने किसान को सदमे में डाल दिया. प्रशासन इसे तकनीकी गलती बता रहा है, जबकि किसान इसे सिस्टम की विफलता कह रहा है. मामला सोशल मीडिया और किसान संगठनों में आक्रोश का कारण बना हुआ है.
  महाराष्ट्र में एक किसान के खाते में फसल बीमा के नाम पर सिर्फ ₹2.30 आए, जबकि उसकी फसल को करीब ₹1.5 लाख का नुकसान हुआ. यह घटना सिर्फ एक किसान की नहीं, बल्कि उस सिस्टम का आइना है जो कागज़ पर किसानों को सुरक्षा देता है, लेकिन हकीकत में राहत नहीं. सात एकड़ में धान बोकर मेहनत करने वाले इस किसान ने पूरी उम्मीद से बीमा कराया था, पर उसके हिस्से आया सिर्फ दो रुपये तीस पैसे का तंज.
सरकार की योजनाओं, बीमा कंपनियों के दावों और वास्तविक मुआवज़े के बीच यह खाई भले ही पुरानी हो, लेकिन मौजूदा मामला इस बात का दर्दनाक सबूत है कि किसान के नुकसान को अब भी संवेदना नहीं, गणना के फार्मूले से मापा जाता है. किसान की फसल बर्बाद हुई, कर्ज़ बढ़ा और इन सबके बीच उसके खाते में उतरी ऐसी रकम, जो एक चाय भी नहीं दिला सकती.
₹2.30 मिलते ही सदमे में आया किसान
पालघर जिले के वाडा तालुका के शिलोत्तर गांव के किसान मधुकर बाबूराव पाटिल ने अपने खेत में करीब ₹80,000 लगाकर धान की खेती की थी. बारिश ने फसल उजाड़ दी, 80% से ज़्यादा नुकसान हो गया. मुआवज़े की उम्मीद थी, लेकिन बैंक मैसेज में सिर्फ ₹2.30 देखकर किसान ने कहा, “ये मुआवज़ा नहीं, किसानों का अपमान है.”
बीमा प्रीमियम दिया, लेकिन राहत नहीं मिली
पाटिल ने जुलाई में ₹1500 का बीमा प्रीमियम भरा था, ताकि नुकसान की स्थिति में कुछ सहारा मिले. लेकिन अब वह पूछ रहे हैं, “हमने अपनी ज़िम्मेदारी निभाई, फसल भी बीमित करवाई, फिर हमसे गलती कहां हुई?” किसान का दावा है कि बीमा कंपनी फोन तक नहीं उठा रही.
प्रशासन ने कहा- ‘तकनीकी गलती’
जिला कृषि विभाग की तरफ से सफाई आई कि यह राशि मौजूदा साल की नहीं, पिछले साल के दावे की बची हुई रकम थी. अधिकारी राजू तांबोली ने कहा, “फसल वर्ष 2022-23 के मुआवज़े में ₹72,464 पहले ही भेजे जा चुके थे, ₹2.30 सिस्टम अपडेट में लेट हो गए. यह तकनीकी एरर है.”
2025 के दावे पर अभी भी प्रक्रिया जारी
कृषि विभाग ने कहा कि मौजूदा फसल नुकसान का दावा अभी लंबित है. फसल कटाई प्रयोग (crop cutting experiment) पूरा होने के बाद ही वास्तविक भुगतान तय होगा. यानी, किसान को मुआवज़ा कब मिलेगा कोई तय तारीख नहीं.
सिस्टम गड़बड़ है, गलती हमारी कैसे?
पाटिल कहते हैं, “हमसे सिर्फ प्रीमियम भरवाना आता है, बाकी कामों में सब सिस्टम एरर है. हमारा नुकसान हुआ, हमारा कर्ज़ बढ़ा… और मुआवज़े में हमको मिला दो रुपये तीस पैसा? यह मज़ाक नहीं तो क्या है?”
सरकार-बीमा कंपनी पर दबाव
स्थानीय किसान संगठनों ने मांग की है कि “तकनीकी गड़बड़ी” को बहाना बनाकर मुआवज़े में देरी न की जाए. किसानों का कहना है, “हम मौसम से हार मानते हैं, सिस्टम से नहीं. राहत चाहिए, बहाना नहीं.”





