पिछले 10 सालों से सांस लेने लायक नहीं है देश की कोई भी मेट्रो सिटी, स्टडी में प्रदूषण की भयावह तस्वीर, दिल्ली का क्या रहा हाल?
2015 से नवंबर 2025 तक 10 साल के विश्लेषण में पाया गया कि भारत के किसी बड़े शहर में एक भी दिन “गुड AQI” स्तर दर्ज नहीं हुआ. क्लाइमेट ट्रेंड्स की रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली पूरे दशक में सबसे प्रदूषित शहर रही, जबकि लखनऊ, वाराणसी और अहमदाबाद में मामूली सुधार देखने को मिला. मुंबई, चेन्नई, पुणे और बेंगलुरु की वायु गुणवत्ता अपेक्षाकृत बेहतर होने के बावजूद सुरक्षित सीमा तक नहीं पहुंची. विशेषज्ञों ने दीर्घकालिक, डेटा-आधारित नीति सुधार की मांग की है.;
भारत में प्रदूषण की समस्या कितनी गहरी जड़ें जमा चुकी है, इसका ताज़ा प्रमाण एक 10 साल के विश्लेषण के रूप में सामने आया है. देश के प्रमुख शहरी केंद्रों पर किए गए अध्ययन में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है - 2015 से नवंबर 2025 तक पूरे दशक में देश का कोई बड़ा शहर एक भी दिन 'गुड' एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) श्रेणी में नहीं पहुंच पाया. दूसरे शब्दों में कहा जाए तो भारत का शहरी वायु प्रदूषण अब अपवाद नहीं बल्कि स्थायी स्थिति बन चुका है.
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार यह अध्ययन पर्यावरण अनुसंधान संस्था क्लाइमेट ट्रेंड्स द्वारा किया गया. रिपोर्ट के अनुसार देश के 11 बड़े शहरों के प्रदूषण पैटर्न का 10 वर्षों तक विश्लेषण किया गया और निष्कर्ष बेहद डरावने रहे - दशक के किसी भी वर्ष में किसी भी प्रमुख भारतीय शहर की वायु गुणवत्ता 'सुरक्षित' स्तर तक नहीं पहुंची.
दिल्ली लगातार सबसे प्रदूषित - 2016 में चरम पर, 2025 में भी सुधार न के बराबर
अध्ययन के अनुसार, दिल्ली पूरे दशक के दौरान भारत का सबसे प्रदूषित शहर रहा. वर्ष 2016 में दिल्ली का औसत AQI 250 के पार पहुंच गया, जो बेहद गंभीर स्तर है. भले ही 2019 के बाद औसत स्तर में हल्की गिरावट दिखाई दी, लेकिन 2025 में भी राजधानी का औसत AQI लगभग 180 बना हुआ है - जो अभी भी अस्वस्थ श्रेणी में आता है.
धुएं-धूल के बादल बनने के पीछे कोई एक कारण नहीं, बल्कि कई कारकों का खतरनाक मेल है -
- वाहनों से होने वाला उत्सर्जन
- औद्योगिक गतिविधियाँ और निर्माण कार्य
- पराली जलाना
- उत्तरी भारत की भौगोलिक सीमाएं, जो प्रदूषण को फंसा देती हैं
यानी दिल्ली के लिए समस्या सिर्फ मौसमी नहीं, बल्कि संरचनात्मक है.
लखनऊ, वाराणसी और अहमदाबाद में मिला मिला-जुला सुधार
उत्तर भारत के अन्य शहर लखनऊ, वाराणसी और अहमदाबाद ने दशक के पहले पांच वर्षों में औसत AQI अक्सर 200 के ऊपर दर्ज किया. दूसरे शब्दों में, ये शहर लगातार "बहुत खराब" वायु गुणवत्ता श्रेणी में बने रहे. हालांकि, 2020 के बाद यहां कुछ हद तक सुधार देखने को मिला, लेकिन वे भी स्वस्थ सीमा तक नहीं पहुंचे.
मुंबई, चेन्नई, पुणे और बेंगलुरु - औसत बेहतर, लेकिन सुरक्षित नहीं
दक्षिण और पश्चिम भारत के शहरों की स्थिति अपेक्षाकृत बेहतर रही, मगर संतोषजनक नहीं.
शहर | औसत AQI (दशक के दौरान) |
बेंगलुरु | 65–90 (देश में सबसे कम, लेकिन "गुड" श्रेणी से ऊपर) |
मुंबई | 110–160 |
चेन्नई | 105–150 |
पुणे | 95–140 |
बेंगलुरु का AQI सबसे कम रहा, लेकिन वह भी "गुड" श्रेणी में नहीं पहुंच सका - यह इस संकट की गंभीरता को समझने के लिए काफी है.
भौगोलिक और मौसमी कारण प्रदूषण को स्थायी बनाते हैं
AQI की गणना हवा में मौजूद PM2.5 और PM10 जैसे सूक्ष्म कणों की मात्रा के आधार पर की जाती है. और यहां समस्या केवल मानव गतिविधियों की ही नहीं, मौसम और भूगोल भी नहीं छोड़ते. स्काईमेट वेदर के उपाध्यक्ष महेश पलावत ने बताया, “उत्तर-पश्चिम से आने वाली ठंडी हवाओं के साथ तापमान लगातार गिर रहा है, जिससे प्रदूषक फैल नहीं पाते. इस वर्ष पश्चिमी विक्षोभ भी कमजोर रहे, बारिश नहीं हुई - और यही वजह है कि स्मॉग लगातार बना हुआ है.”
इसके अलावा, सर्दियों में टेम्परेचर इनवर्जन की स्थिति बनती है, जिसमें ऊपर की ठंडी हवा नीचे की गर्म हवा की परत को जाने नहीं देती, और प्रदूषण जमीन के करीब ही फंस जाता है. घनी आबादी, ऊंची इमारतें और धीमी हवाएं मिलकर प्रदूषण को शहरी जाल में कैद कर देती हैं.
विशेषज्ञों ने बचाव का रोडमैप भी सुझाया
IIT कानपुर के पर्यावरण विशेषज्ञ प्रो. एस. एन. त्रिपाठी के अनुसार, “स्थानीय प्रदूषण स्रोतों की पहचान और नियंत्रित करने के लिए तकनीक बेहद कारगर हो सकती है, लेकिन इसके लिए विश्वसनीय और निरंतर डेटा आवश्यक है.” क्लाइमेट ट्रेंड्स की रिसर्च प्रमुख पालक बलयान ने इसे नीतिगत पहलू से जोड़ा, “भारत को लंबी अवधि वाले विज्ञान-आधारित और सख्त पर्यावरण सुधारों की जरूरत है. इसके लिए राजनीतिक इच्छा शक्ति और कड़े फैसलों की तैयारियों की भी आवश्यकता है.”
दशक भर की स्टडी बताती है कि भारत में वायु प्रदूषण अस्थायी समस्या नहीं, स्थायी संकट बन चुका है. किसी भी बड़े शहर की हवा कभी भी सुरक्षित स्तर तक नहीं पहुंची. मौसमी बदलाव से सुधार की उम्मीद करना काफी नहीं है. समाधान केवल तीव्र, टिकाऊ और वैज्ञानिक नीति-निर्माण में है.
सवाल यह नहीं कि प्रदूषण कहां है, सवाल यह है कि समाधान कब होगा? रिपोर्ट साफ संकेत देती है कि स्मॉग का मौसम अब सीजनल नहीं, बल्कि हमारी नई शहरी जीवनशैली का हिस्सा बन चुका है. यदि ठोस कदम अभी नहीं उठाए गए, तो आने वाला दशक भी पिछले दस वर्षों की तरह ही धुंध में ढका हुआ मिल सकता है.