EXCLUSIVE: ईमानदारी से ‘दिल्ली जेल मैनुअल’ लागू हुआ तो हजारों करोड़ के भगोड़े नीरव-माल्या-चौकसी को सलाखों में पसीना आ जाएगा!
अगर दिल्ली जेल मैनुअल ईमानदारी से लागू हो तो हजारों करोड़ के मोस्ट-वॉन्टेड भगोड़े विजय माल्या, मेहुल चौकसी और नीरव मोदी भारत की जेलों में सख्त सुरक्षा और तन्हाई में पसीना-पसीना हो जाएंगे. ब्रिटेन की टीमों द्वारा जेल निरीक्षण इसलिए हो रहा है ताकि प्रत्यर्पण से पहले कैदियों की सुरक्षा, इलाज, भोजन और मानवाधिकार सुनिश्चित किए जा सकें. हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि भारत की जेलें पहले से कड़ी हैं और विदेशी निरीक्षण अनावश्यक व सुरक्षा के लिए खतरा बन सकता है.;
हाल के कुछ दिनों में ब्रिटेन के अधिकारियों की टीमें मुंबई स्थित ऑर्थर रोड और दिल्ली में मौजूद एशिया की सबसे मजबूत कही जाने वाली तिहाड़ जेल के चक्कर काट रही हैं. इस सबके पीछे सरकारी दलीलें यह हैं कि भारत के हजारों करोड़ रुपए लेकर भागे मोस्ट वॉन्टेड भगोड़ों नीरव मोदी, विजय माल्या और मेहुल चौकसी को, ब्रिटेन (लंदन) व वे जहां भी जिस देश में भी लंबे समय से मुंह छिपाए पड़े हैं, उन सबको इन्हीं जेलों में लाकर बंद किया जाना है.
इसके लिए ब्रिटेन के अधिकारियों की टीमें इन दोनों जेलों का सघन-परीक्षण करने आईं और वापस चली गईं. अब यह टीमें अपनी जो रिपोर्ट ब्रिटेन की अदालत में जाकर दाखिल करेंगी उसी के आधार पर ब्रिटेन की अदालत तय करेगी कि, भारत के मोस्ट वॉन्टेड भगोड़ों को भारत-ब्रिटने के साथ चली आ रही संधि के मुताबिक, भारत प्रत्यार्पित करना है अथवा नहीं. नहीं इसलिए क्योंकि अगर भारत की जेलों में किसी तरह की कमी की बात ब्रिटेन से हमारी जेलों का निरीक्षण करने आई टीमों ने दाखिल कर दी, तो फिर इन मोस्ट वॉन्टेड भगोड़ों के भारत प्रत्यार्पित किये जाने के भागीरथ प्रयास खटाई में पड़ जाएंगे.
भारत अपने मोस्ट वॉन्टेड भगोड़ों को चाहे जहां भी रखे
नीरव मोदी हो, विजय माल्या या फिर मेहुल चौकसी. यह तीनों की ही तिकड़ी भारत के हजारों करोड़ रुपए लेकर फरार है. भारत के कानून के अनुसार तीनों को “मोस्ट वॉन्टेट भगोड़ा” घोषित किया जा चुका है. यह तीनों ही जब भारत के भगोड़े मुलजिम हैं तब फिर इन्हें भारत के हाथों सौंपने से पहले ब्रिटेन के अधाकारियों की टीमें भारत की उन जेलों की खाक क्यों छान रही हैं, जिन संभावित जेलों में इन भगोड़ों को बंद करके रखे जाने की प्रबल संभावनाएं है. भारत अपने मोस्ट वॉन्टेड भगोड़े मुजलिमों को चाहे जहां और जैसे भी रखे? इसमें ब्रिटेन की हुकूमत आखिर क्यों टांग अड़ा रही है?
पूछने पर भारतीय पुलिस सेवा के वरिष्ठ रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी, मिजोरम के पूर्व पुलिस महानिदेशक और प्रवर्तन निदेशक करनल सिंह स्टेट मिरर हिंदी से बोले- “ब्रिटेन हो या फिर कोई अन्य देश हो. इस तरह के इंटरनेशनल मोस्ट वॉन्टेड को संधि के तहत भारत को हमारे भगोड़े सौंपने से पहले उनकी सुरक्षा की गांरटी हर देश लेना चाहता है. अंतरराष्ट्रीय मानव अधिकार कानून भी यही कहता है. इसीलिए मेहुल चौकसी, नीरव मोदी या फिर विजय माल्या को जो देश संधि के तहत भारत के हवाले कर रहा है, उस देश की संबंधित देश की एजेंसियां, भारत की उन संभावित जेलों का निरीक्षक करती हैं, जिनमें ऐसे मोस्ट वॉन्टेड भगोड़े हाई प्रोफाइल मास्टरमाइंड क्रिमिनल्स को कैद करके रखा जाना है.
मोस्ट वॉन्टेड मुलजिम को प्रत्यार्पित करने वाले देश की संबंधित विभागों की एजेंसियां संबंधित देश (भारत) की जेलों को देखने के बाद यह सुनिश्चित करना चाहती हैं कि उनके द्वारा भेजा जा रहा विचाराधीन आरोपी सुरक्षित रहे. जेल में इलाज की बेहतर सुविधा हो. जेल के भीतर उसके रहने की जगह साफ-सुथरी हो. जेल में उसके जीवन को किसी तरह का खतरा न हो. उसके खाने का इंतजाम बेहतर हो. इन्हीं तमाम बिंदुओं पर संबंधित देश की एजेंसियां अपने देश की कोर्ट या सरकार को दाखिल करती हैं. उसी रिपोर्ट के आधार पर संबंधित देश हमारे मोस्ट वॉन्टेड के प्रत्यार्पण पर अपनी अंतिम-स्वीकृति की मुहर लगाती हैं.”
...तो अधर में अटक जाएगी प्रत्यार्पण प्रक्रिया
स्टेट मिरर हिंदी के एक सवाल के जवाब में भारत के पूर्व प्रवर्तन निदेशक कर्नल सिंह ने कहा, “हां, जब विदेशी जांच एजेंसियां हमारे देश के जेलों की व्यवस्था अपनी नजर से देखने आती हैं. तब एक जगह सबसे ज्यादा ऊहापोह की स्थिति उत्पन्न होने की प्रबल संभावनाएं बन सकती हैं कि हमारी जेलों के इंतजामों के लेकर अगर ब्रिटेन या, किसी भी उस देश की जांच एजेंसी ने जो देश हमें हमारा मोस्ट वॉन्टेड विचाराधीन कैदी/मुलजिम प्रत्यार्पण-संधि के तहत सौंपने अंतिम चरण में है, वह एजेंसी अगर हमारी जेलों में कैदी के रहन-सहन, सुरक्षा, चिकित्सा या खान-पान संबंधी बिंदुओं पर, अपनी नाकारात्मक रिपोर्ट दाखिल कर दे, तब प्रत्यार्पण प्रक्रिया अधर में लटक सकती है. हालांकि कालांतर से लेकर अब तक इस तरह के मौके नगण्य ही रहे हैं.”
ऐसा कोई विशेष कानून नहीं जो किसी देश का जेल मैनुअल बदलवा दे
स्टेट मिरर हिंदी ने इस बारे में बात की तिहाड़ जेल (दिल्ली जेल) के पूर्व विधि-सलाहकार अधिकारी सुनील गुप्ता से. तिहाड़ या दिल्ली की जेलों के “अंदरखाने” के कड़वे सच को नंगा करती हुई सुनील गुप्ता द्वारा लिखी गई उनकी किताब “ब्लैक-वारंट” काफी चर्चा में भी रही है. सुनील गुप्ता ने तिहाड़ जेल बदतर हालत से आज की सी बेहतर हालत में ला खड़ा करने में भी बीते 30-35 साल में अहम भूमिका निभाई. उनके मुताबिक, “दुनिया का कोई भी देश हो चाहे किसी भी देश का कोई भी कितना भी तुर्रमखां-तीस-मार-खां खूंखार कैदी हो. ऐसी कोई ताकत या फिर विशेष कानून नहीं है जिसके चलते किसी कैदी के प्रत्यापर्ण को लेकर कोई देश किसी देश की जेलों का कानून या फिर जेल मैनुअल ही बदलवा डाले. कैदी चाहे विजय माल्या हो या फिर नीरव मोदी अथवा मेहुल चौकसी. किसी भी देश के कैदी की हैसियत के हिसाब से किसी देश या प्रदेश के जेल-मैनुअल को नहीं बदला जा सकता है. जेल तो जेल हैं, कोई जंगल नहीं कि बस जहां दबंग शेर की ही चलेगी बाकी जंगल के कमजोर प्राणी शेर की पूजा करेंगे.”
प्रत्यर्पण कर लाए गए कैदियों को वीवीआईपी ट्रीटमेंट नहीं
सुनील गुप्ता अपनी बात जारी रखते हुए आगे कहते हैं, “जेल मैनुअल का मतलब जेल का अपना कानून. जहां कोई और कानून नहीं चलता है. नीरव मोदी, मेहुल चौकसी हो या फिर विजय माल्या. यह भी अगर दिल्ली की जेल में लाकर बंद किए जाते हैं तो इन सबके ऊपर भी अब तक चला आ रहा दिल्ली जेल मैनुअल ही लागू होगा. ऐसा नहीं है कि यह भगोड़े ब्रिटेन से प्रत्यर्पण संधि पर भारत वापस लाए जा रहे हैं, तो इन्हें दिल्ली या फिर भारत की किसी भी अन्य जेल में जेल मैनुअल को नजरंदाज करके उससे ऊपर जाकर कोई वीवीआईपी ट्रीटमेंट दिया जा सकता है. ऐसा होने पर तो जेल प्रशासन ही संकट में पड़ जाएगा.”
माल्या हो या चोकसी, जेल में एक-दो कंबल, दरी और बरतन ही दिए जाएंगे
दिल्ली जेल के पूर्व विधि-सलाहकार सुनील गुप्ता आगे कहते हैं, “अगर खुदा न खास्ता इन तीनों में से कोई भी तिहाड़ या दिल्ली की किसी भी अन्य जेल में लाया जाता है. तब उसे जेल मैनुअल के मुताबिक एक-दो कंबल, एक दरी, कुछ बरतन दिए जाएंगे. हां, जेल मैनुअल के मुताबिक इस तरह के खतरनाक मोस्ट वॉन्टेड कैदियों के लिए जेल में दो साइज की अलग अलग सेल जरूर तैयार रखी जाती हैं. ऐस सेल जिनके आसपास परिंदा भी पर न मार सके. यह विशेष किस्म की और साइज में बहुत बड़ी सेल 24 घंटे भीतर बाहर सीसीटीवी निगरानी में होती है. क्योंकि इस तरह के हाईप्रोफाइल कैदियों की जान को बहुत ज्यादा खतरा बना रहता है. तब इसके लिए इन्हें जेल की सेल से बाहर भी कम ही निकलने की सलाह दी जाती है. सुरक्षा के लिए ऐसे कैदियों की हर सेल के दरवाजे पर एक जेल-पहरेदार हमेशा तैनात रहता है. अक्सर ऐसे कैदियों के मामले में संभावना बनी रहती है कि इनके ऊपर जेल में हमला न हो जाए. इसके लिए इनका चाय-नाश्ता खाना भी, इनकी सेल की सुरक्षा में तैनात सुरक्षाकर्मी ही इन्हें सेल के भीतर ही लाकर दे देता है. दरअसल ऐसे मास्टरमाइंड और आर्थिक घोटालेबाजों से किसी अन्य कैदी को कोई खतरा नहीं होता है. हां, इन्हें जरूर हर वक्त खतरा बना रहता है कि कोई सिर-फिरा कैदी इनके ऊपर हमला न कर दे.”
वह जेल ही क्या जो कैदी को उसके गुनाह का एहसास न दिलाए
मतलब आप यह कहना चाहते हैं कि विजय माल्या, मेहुल चौकसी और नीरव मोदी जिस तरह की मौज विदेशों में पनाह लेने के दौरान लेते रहे हैं, उस तरह की मौज-मस्ती का मौका भारत की जेलों में इनसे छिन जाएगा? स्टेट मिरर हिंदी के सवाल के जवाब में दिल्ली के पूर्व जेल अधिकारी बोले, “हां, बिलकुल सही बात है. जेल तो जेल है. चार दीवारी है. यहां कानून के मुताबिक बंदिशें तो हैं ही. वह जेल ही क्या जो कैदी को उसके द्वारा किए गए अपराध को करने का अहसास न कराए. चिकित्सा, खानपान, सुरक्षा, मौलिक मानव अधिकारों का ध्यान तो रखा जात है. लेकिन जेल मैनुअल के हिसाब से इन्हें वीरान-तन्हाई-सेल में 24 घंटे बंद करके रखा (जेल मैनुअल के हिसाब से कुछ समय के लिए सिपाही की सुरक्षा में सेल से कानून बाहर आकर टहल सकते हैं) जाना भी तो इनके लिए किसी बड़ी जानलेवा सजा से कम नहीं है न.
और फिर इस तरह के हाई-प्रोफाइल विचाराधीन या फिर सजायाफ्ता श्रेणी के कैदियों ने चूंकि तमाम वक्त एशो-आराम की जिंदगी गुजारी होती है. तो ऐसों को हर वक्त एक कमरे में बंद कर दिया जाना भी तो अप्रत्यक्ष रूप से जानलेवा या पसीना ला देने जैसा ही तो है. जेल को अभ्यस्त या कठोर मानसिकता के प्रफेशनल अपराधी तो आसानी से निभा लेते हैं. मेहुल चौकसी, नीरव मोदी और विजया माल्या जैसे ऊंचे-ठाठ बाट वाले हाईप्रोफाइल कैदियों को तो भारत की जेलें देखकर ही पसीना आ जाता है.”
ब्रिटेन की जेलें भारत की जेलों की तुलना में नरक हैं
इनके प्रत्यपर्ण से पहले ब्रिटेन (लंदन) की टीमें भारत की जेलों का निरीक्षण करने आ रही हैं, क्यों? पूछने पर तिहाड़ जेल के पूर्व अधिकारी गुप्ता ने कहा, “दरअसल वे यही सुनिश्चित करने आते हैं कि जिस कैदी को वे भारत के हवाले कर रहे हैं, भारत की जेलों में उसके मानवाधिकारों का उल्लंघन तो नहीं हो रहा है. कैदी की सुरक्षा, चिकित्सा और खान पान रहन-सहन की समुचित व्यवस्था जेल में है या नहीं? हांलांकि, यहां मैं यह भी कहना चाहता हूं कि जो ब्रिटेन की टीम भारत की जेलों की छानबीन करती फिर रही है. उस ब्रिटेन जैसे विकसित देश की जेलें भारत की जेलों की तुलना में नरक हैं. उनकी जेलें अगर सच कहूं तो मुर्गियों का दड़बा सी हैं. भारत की जेलों में तो जेल मैनुअल के हिसाब से इस तरह के एक कैदी को जितनी बड़ी अकेली तन्हा सेल में रखा जाता है, उतनी बड़ी जगह में ब्रिटेन अमेरिका की जेलों में 20-20 कैदी भेड़-बकरियों की तरह ठूंस ठूंस कर भरे जाते हैं.”
विदेशी टीमों को अपनी जेलें दिखानी ही नहीं चाहिए
ब्रिटेन की टीम द्वारा भारत की जेलों का गहन निरीक्षण किए जाने की बात सुनते ही सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया के वरिष्ठ फौजदारी वकील डॉ. ए पी सिंह बोले, “यह कानूनन गलत है. हमें अपनी जेलों के भीतर विदेशी टीमों को लेकर ही नहीं जाना चाहिए. क्या पता इस तरह के भारत के दुश्मन हमारी जेलों के अंदर की तमाम खुफिया-सुरक्षा जानकारियां इकट्ठी करके ले जाएं और अपने देश पहुंचते ही कोई बड़ा कांड हमारी जेलों में करवा डालें. जेलें हमारी हैं. वे संवेदनशील जगह हैं. यह कोई पार्क नहीं हैं हमारी जेलें कि जिसकी सेहत खराब हो वही सार्वजनिक पार्क समझकर अपनी सेहत बनाने के लिए भारत की जेलों में टहलने के लिए चला आए. जेलें तो किसी भी देश की सबसे खतरनाक और संवेदनशील जगहों में शुमार होती हैं. क्या गारंटी कि जो विदेशी टीमें हमारी जेलों के भीतर आराम से चहलकदमी करके अंदर की सारी चींज अपने पास बटोर कर, उनका दुरुपयोग नहीं करेंगी?
ब्रिटेन क्यों बन रहा बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना
मेहुल चौकसी, नीरव मोदी और विजय माल्या भारत के भगोड़े हैं. ऐसे में ब्रिटेन कौन होता है इन घाघ मक्कार भारतीय भगोड़ों की भारत में रखवाली का बॉन्ड भरवा कर लिखित में भारत से इनकी सुरक्षा की गांरटी लेना वाला? और अगर ब्रिटेन चाहता भी है कि वे हमारे जिस किसी भी भगोड़े को हमें सौप रहे हैं उसकी जान को खतरा भारतीय जेलों में नहीं होना चाहिए. तो इसकी चिंता भारत को करनी है. ब्रिटेन क्यों बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना की सी हालत में उछल-कूद मचाकर खुद को इन, हजारों करोड़ भारतीय मुद्रा को लेकर भाग जाने वाले मास्टरमाइंड्स की हिफाजत के नाम पर भारत की जेलों की सुरक्षा में छेद बनाने पर आमादा है. इसके बारे में तो हिंदुस्तान की हुकूमतों को ही कड़े कदम उठाने पड़ेंगे. ताकि कोई भी देश आकर हमारी जेलों को पब्लिक-पार्क समझकर उनमें टहलकर अपने मतलब की जानकारियां लेकर जा ही न सके.”
चौकसी, माल्या या नीरव मोदी तो एक बार इन जेलों के भीतर आने तो दीजिए...
स्टेट मिरर हिंदी के साथ एक्सक्लूसिव बातचीत में भारत के उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ फौजदारी वकील डॉ. ए पी सिंह ने आगे कहा, “ब्रिटेन की जांच टीमें अपनी जांच रिपोर्ट से फाइलें भरती रहें. जितना मैं अपनी जेलों के भीतर सख्त सुरक्षा इंतजामों को और कठोर जेल मैनुअल को एक क्रिमिनल लॉयर होने की हैसियत से जानता हूं, उसके मुताबिक चौकसी, माल्या या नीरव मोदी तो एक बार इन जेलों के भीतर आने तो दीजिए, जेल मैनुअल के हिसाब से ही इन सबकी रुह फना हो जाएगी. इनको भारत की जेलों के भीतर घुसते ही तमाम सुरक्षा और खान-पान-चिकित्सा के विशेष-इंतजामों के बाद भी, तिहाड़ की तन्हाई-कोठरी में न पसीना आ जाए, तो मुझे बताइए. चौकसी, माल्या और नीरव मोदी बस जब तक भारत के कब्जे में नहीं आ रहे हैं तभी तक ब्रिटेन में बैठे-बैठे यह मुर्गे की सी बांगें लगा रहे हैं. कभी यह भारत की जेल दिखवा रहे हैं कभी वह जेल. जब यह हमारी जेलों में आ जाएंगे तो इनके देखने-सोचने और समझने की ताकत ही खतम हो जाएगी. भारत का कानून और जेलें अगर गजब की सख्त न होतीं, तो फिर यह तीनों हजारों करोड़ का फ्रॉड करके विदेशों में ही जाकर क्यों छिपे होते?”