EXCLUSIVE: 5 साल बाद भारत के साथ संभावित 3.5 फ्रंट वॉर में 'हाफ-फ्रंट' कौन? जंग के वक्त सिर्फ यह पड़ोसी होगा साथ, बाकी सब...

भारत आने वाले पांच वर्षों में बेहद जटिल भू-राजनीतिक हालातों की ओर बढ़ रहा है, जहां उसे चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ संभावित 3.5 फ्रंट वॉर का सामना करना पड़ सकता है. रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल जे.एस. सोढ़ी के मुताबिक, यह “हाफ फ्रंट” किसी बाहरी देश से नहीं, बल्कि भारत के भीतर मौजूद राष्ट्रविरोधी ताकतों से पैदा होगा. ऑपरेशन सिंदूर जैसी सैन्य सफलताएं भविष्य की गारंटी नहीं हैं.;

By :  संजीव चौहान
Updated On : 26 Dec 2025 2:37 PM IST

‘आज भारत अंदरूनी और बाहरी कई मोर्चों पर जूझ रहा है. अमेरिका, चीन, पाकिस्तान और तुर्की तो पहले से ही ताड़ में लगे हैं. रही सही कसर पड़ोसी बांग्लादेश पूरी कर रहा है. मतलब हमारे साथ जिस बांग्लादेश के होने की प्रबल संभावनाएं जो थीं वह भी अब खतम हो चुकी हैं. अगले पांच साल बाद जियो पॉलिटिक्स के हिसाब से बदल चुके हालातों में जब भारत 3.5 फ्रंट वॉर से सामना करने की ओर बढ़ रहा होगा, तब हमें जिस .5 या कहूं कि हाफ फ्रंट का सामना करना होगा, वह कहीं बाहर से नहीं हमारे अपने घर में ही मौजूद मिलेगा.

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जहां तक साल 2030 के बाद चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश के खिलाफ भारत का 3.5 फ्रंट वॉर का सवाल है, इस नजर से हम आज देखें तो भी हम बेहद खतरनाक हालातों से गुजर रहे हैं. बेशक भारत और उसकी फौजों ने पहलगाम आतंकवादी हमले का मुंहतोड़ जवाब ऑपरेशन सिंदूर के जरिए देकर दुश्मनों का मुंह बंद कर दिया हो. मगर बीते इन पांच-छह महीनों में (पहलगाम आतंकवादी हमले से लेकर दिसंबर 2025 के अंत में बांग्लादेश में मचे हा-हा-कार को मिलाकर) भारत को यह समझ लेना चाहिए कि उसके साथ कौन है कौन और क्यों नहीं है.’

तुर्की से सबक ले भारत

यह तमाम बेबाक बातें भारतीय थलसेना के रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल जे एस सोढ़ी ने बेबाकी से बयान की हैं. जे एस सोढ़ी हाल ही में नई दिल्ली में मौजूद स्टेट मिरर हिंदी के एडिटर इनवेस्टीगेशन से भारत के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बदले संबंधों पर विशेष बात कर रहे थे. उन्होंने कहा, “पहलगाम के बाद भारत द्वारा पाकिस्तान के ऊपर अंजाम दिए गए ऑपरेशन सिंदूर में साफ हो गया है कि जो भारत, हमेशा तुर्की के साथ उसके हर सुख-दुख में हमेशा कदम से कदम मिलाकर साथ खड़ा रहा. वह तुर्की भी मुसीबत के वक्त में भारत का नहीं, भारत के पाकिस्तान जैसे दुश्मनों के साथ खड़ा होगा.”

भारत को भूल तुर्की पाकिस्तान के साथ

ऑपरेशन सिंदूर के दौरान और उसके तुरंत बाद के हालातों में तुर्की के इस दोगलेपन से भारत को अपनी कूटनीति और विदेश-नीति की नजर से यह ताड़ लेना चाहिए कि, हमारे साथ बुरे या जरूरत के वक्त में कौन होगा और कौन नहीं होगा? तुर्की को भारत हमेशा अपना समझता रहा. अपना समझकर भारत तुर्की की मदद करता रहा. जब भारत पर मुसीबत आई तो मक्कार साबित होकर यही तुर्की हमारे खिलाफ पाकिस्तान के आंगन में जाकर हमें आंख दिखाने में नहीं शर्माया. ऐसे में अगर भारत यह सोचता है उसके पड़ोसी देश जैसे अफगानिस्तान, श्रीलंका, भूटान, नेपाल आदि सब हमारी मुसीबत में साथ होंगे, तो यह भारत की बड़ी भूल होगी. इस भूल को भारत आज ही सुधार ले तो उसे आइंदा ज्यादा तकलीफ नहीं होगी.

 

यह देश खिलाफत में भी नहीं उतरेंगे

ऐसा क्यों? स्टेट मिरर हिंदी के सवाल के जवाब में भारतीय थलसेना के पूर्व लेफ्टिनेंट कर्नल जसिंदर सिंह सोढ़ी बोले, “श्रीलंका, नेपाल और अफगानिस्तान खुद को ही पालने-पोसने में व्यस्त हैं. न ही उनकी इतनी हैसियत है कि वे मुसीबत या 3.5 फ्रंट वॉर की स्थिति में खुलकर भारत की मदद कर सकें. इन्हीं देशों की तरह भूटान-नेपाल का भी हाल है. हां, यह जरूर है कि श्रीलंका, भूटान, अफगानिस्तान नेपाल जैसे पड़ोसी अगर मुसीबत के दौर में भारत का खुलकर साथ दे पाने की स्थिति में नहीं होंगे तो, मक्कार तुर्की और बांग्लादेश की तरह वे भारत की खिलाफत में भी नहीं उतरेंगे. बस इतना ही फर्क है. ऐसे में सवाल यह पैदा होता है कि फिर ऐसे पड़ोसी देशों के होने न होने का भारत पर भला फर्क भी क्या और क्यों कुछ पड़ेगा.”

हिटलर काबिल रणनीतिकार तानाशाह था

मुसीबत के दौर में दुश्मन से निपटने के लिए कैसे किसी देश को तैयार होना पड़ता है. इसका दुनिया में सबसे बड़ा उदाहरण जर्मनी और हिटलर हैं. जर्मनी जब चारों ओर से दुश्मनों से घिर चुका था. उसके बच निकलने का कोई रास्ता बाकी नहीं बचा था. तब भी हिटलर जैसे क्रूर तानाशाह ने अपने देश की रक्षा के लिए महज चार साल में दुश्मनों के खिलाफ वह रणनीति बना डाली, जिसने बाद में हिटलर और जर्मनी दोनो को ही सुरक्षित कर लिया. बेशक जमाना आज तक हिटलर को सनकी या क्रूर तानाशाह कहे, जोकि वह था भी. तब भी एक फौजी अफसर होने के नाते मैं जर्मन तानाशाह हिटलर की युद्ध रणनीति का लोहा मानता हूं.

मैं हिटलर की कुरीतियों का तरफदार नहीं

भारत को भी पांच साल के भीतर हिटलर जैसी ही अभेद्य रणनीति बनानी होगी. ताकि वह साल 2030 के बाद कभी भी संभावित 3.5 फ्रंट वॉर से निपट सके. यहां मैं हिटलर की सनकी कुरीतियों-आदतों की हिमायत नहीं कर रहा हूं. देश हित में मैं सिर्फ उसके युद्ध कौशल को ‘पाठ’ के रूप में अपना कर अपने दुश्मनों से निपटने की रणनीति में सहयोग लेने भर की मंशा जाहिर कर रहा हूं. वह हिटलर ही था जिसने हजारों प्रतिबंध लगे होने के बाद भी महज 4 साल में दुबारा से अपनी सेना को मजबूती से न केवल खड़ा किया. अपितु उसी सेना के बलबूते अमेरिका जैसी महा-ताकतों को धूल चटा दी.

वायुसेना को लड़ाकू विमानों की 55 स्क्वॉड्रन की जरूरत

जहां तक भविष्य में कभी भी बदल सकने वाले हालातों की नजर से भारत को देखें तो इस वक्त भारतीय वायुसेना के पास लड़ाकू विमानों की 42 स्‍वीकृत स्क्वॉड्रन हैं. जबकि हमारे पास इस वक्त केवल 28 स्‍क्‍वॉड्रन ही हैं. हालांकि भारतीय वायुसेना में इनकी संख्या बढ़ाकर 55 किए जाने को स्वीकृति मिल चुकी है. वह भी 3.5 फ्रंट वॉर के लिए नहीं, यह 55 की संख्या सिर्फ 2.5 फ्रंट वॉर के लिए हैं. इस हिसाब से भारत को 3.5 फ्रंट वॉर का सामना करने के लिए तो 55 से भी कहीं ज्यादा लड़ाकू विमानों की जरूरत है. इस 28, 42 और 55 स्क्वॉड्रान विमानों की संख्या के फर्क को भारत को तुरंत खत्म करना होगा.

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ऑपरेशन सिंदूर सफलता की गारंटी नहीं

और फिर यह लड़ाकू विमान हैं कोई गुब्बारे नहीं है जो आज सोचा कल भारतीय वायुसेना के बेड़े में शामिल कर दिए जाएंगे. इनकी आपूर्ति के लिए कई कई वर्ष का वक्त लग जाता है. इसलिए 3.5 फ्रंट की संभावित वॉर का वक्त बहुत कम बचा है. जबकि भारतीय वायुसेना के बेड़े नए स्क्वॉड्रान विमान शामिल करने में अभी कई साल गुजर जाने की संभावना है. ऐसे में किसी दुश्मन देश या दुश्मन देशों के साथ घमासान में भारतीय वायुसेना कहां किस हाल में खड़ी होगी, कहना मुश्किल हो सकता है. मगर यह एक डरावना सच है. ऑपरेशन सिंदूर बेशक सफल रहा था. मगर उसकी सफलता भारत को 3.5 फ्रंट वॉर की सफलता की गारंटी तो कतई नहीं हो सकती है.

जंग में भारत को अपनों से घात का खतरा

जहां तक सवाल है कि इस पूर्व में संभावित 2.5 या 3 फ्रंट वॉर के 3.5 फ्रंट वॉर में बदल जाने की संभावनाओं की. तो पहले चीन और पाकिस्तान मिलकर भारत को घेरने की तैयारियों में जुटे थे. अब आज के बदले हुए हालातों में बांग्लादेश भी इसमें शामिल हो चुका है. इसके बाद रही सही बाकी बची कसर भारत के अंदर ही मौजूद भारत की खिलाफत में जुटी ताकतें प्वाइंट 5 की कमी को पूरा करेंगीं हमारे दुश्मनों के साथ मिलकर. यह वे अंदरूनी ताकतें होंगी जो खुलकर कभी भारत की मुखालफत नहीं कर पाती हैं. मगर अंदर ही अंदर हर वक्त भारत को नीचा दिखाने की ताड़ या तलाश में देश में घुन की तरह यह ताकतें लगी-छिपी हैं. यह ताकतें तभी सिर उठायेंगी जब चीन पाकिस्तान और बांग्लादेश-अमेरिका मिलकर भारत को घेरने की तैयारी करेंगे.

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