EXCLUSIVE: 'BJP और अटल बिहारी वाजपेयी ने आडवाणी को उनका हक नहीं दिया, भारत का राष्ट्रपति तो बना ही सकते थे'
पूर्व IPS प्रकाश सिंह ने कहा कि लालकृष्ण आडवाणी प्रधानमंत्री पद के हकदार थे, लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी और बीजेपी ने उन्हें वह पद नहीं दिया. प्रकाश सिंह ने कांग्रेस और बीजेपी दोनों में आंतरिक कलह और सत्ता की लालसा पर सवाल उठाए. उन्होंने कहा कि राजनीति में साम-दाम-दंड-भेद से गद्दी बचाई जाती है.;
सत्ता में ‘सिहांसन’ से बढ़कर और 'ताकतवर-गद्दी' से बेशकीमती बाकी कुछ नहीं होता है. बाकी सब खून तक के रिश्ते-नाते, पैसा-पावर-ओहदा-रसूख-रुतबा, सत्ता के सिंहासन के सामने बौने ही रहते हैं. जिसके हाथ में सत्ता होती है उसके पास ही सबकुछ मौजूद रहता है. बात की राजनीति की करें तो कांग्रेस या फिर भारतीय जनता पार्टी यानी बीजेपी. सत्ता ही सबसे ऊपर है.
इस सत्ता के ‘पावर-गेम’ के चलते ही देश के पूर्व उप-प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी (Lal Krishna Advani) को वह सब नहीं मिल सका, जिसके वह ईमानदारी से ह़कदार थे. उनको ह़क न देने-दिलाने की जिम्मेदारी भारतीय जनता पार्टी (Bhartiya Janata Party) और तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहार वाजपेयी (Former PM Atal Bihari Vajpayee), दोनों ही की थी. मैं किसी को दोष नहीं दे रहा हूं. न मुझे राजनीति के अखाड़े में जोर-आजमाईश करनी है. मुझे अपने बारे में पता है कि कालांतर में मैं क्या था और आज मैं क्या हूं?
कांग्रेस में आंतरिक कलह चरम पर
दिल में समाई बैठी यह तमाम बेबाक बातें भारत के बेखौफ पूर्व ब्यूरोक्रेट प्रकाश सिंह (Ex DG BSF IPS Prakash Singh) ने कहीं. 1959 बैच के पूर्व दबंग आईपीएस अधिकारी प्रकाश सिंह दो दिन पहले स्टेट मिरर हिंदी के एडिटर क्राइम इनवेस्टीगेशन से एक्सक्लूसिव बात कर रहे थे. उत्तर प्रदेश कैडर के भारतीय पुलिस सेवा (IPS) के पूर्व अधिकारी और सीमा सुरक्षा बल (BSF) के सेवा-निवृत्त महानिदेशक प्रकाश सिंह, 25 जून 1975 को देश में, श्रीमति इंदिरा गांधी (Former PM Indira Gandhi) द्वारा लगाए एक आपातकाल (Emergency 1975) के मौके पर बात कर रहे थे. उनसे सवाल किया गया कि कांग्रेस पार्टी (Congress) में बाहरी से ज्यादा अंदरूनी राजनीति फैली पड़ी है. जिसके चलते आज कांग्रेस का भट्टा बैठ चुका है. कांग्रेस में जिस तरह की अंदरुनी दमघोटू राजनीति हो रही है. वैसी शायद किसी और पार्टी में नहीं है!”
स्टेट मिरर हिंदी के इस बेहद उलझे हुए सवाल का जवाब देने के बजाय हमेशा तोल-मोल के बोलने के लिए पहचाने वाले वाली प्रकाश सिंह बोले, “कांग्रेस में ही अंदरूनी राजनीति या उठा-पटक की बात या सवाल क्यों? बीजेपी (भारतीय जनता पार्टी) भी तो इससे अछूती नहीं बची है. वह राजनीति ही क्या जिसके अंदर थोड़े-बहुत आंतरिक-कलह कलेश न चलते रहें. सत्ता के सिंहासन और उसकी ताकतों को अपने हाथ में पकड़े रखने के लिए हर कोई साम-दाम-दंड-भेद का सहारा लेता है.
कांग्रेस हो या BJP, अंदरूनी उठा-पटक सब में
''न मैं नेता हूं. न नेतागिरी कभी की है. न ही मेरा आइंदा पॉलिटिक्स में जाने का कोई इरादा है. हां, एक पुलिस अफसर (ब्यूरोक्रेट) होने की नजर से मैंने जो देखा सो हमेशा कह दिया. अब कौन मेरे कहे हुए को किस तरह से सुनता-देखता है, यह सामने वाले पर निर्भर करता है. बात अगर सत्ता के सिंहासन में राजनीतिक पार्टियों के भीतर आंतरिक मन-मुटाव की छिड़ी है तो, इससे तो बीजेपी भी बची नहीं रह गई है. उदाहरण के तौर पर मैं भारत के पूर्व उप-प्रधानमंत्री-गृहमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी का ही उदाहरण देना चाहता हूं.”
आडवाणी संग अटल बिहारी वाजपेयी ने...
स्टेट मिरर हिंदी के सवाल के जवाब में बोलने का क्रम जारी रखते हुए असम (DGP Assam) और उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक (DGP UP Police) प्रकाश सिंह कहते है, “आडवाणी जी के साथ बहुत अन्याय हुआ. पहले तो उनके साथ तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने अन्याय किया. जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे तो एक वक्त वह आ गया था जब वे (अटल बिहारी वाजपेयी) शारीरिक रूप से अक्षम हो गए थे. उनके नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर व अन्य लोग उनकी सरकार चला रहे थे. शारीरिक अक्षमता के कारण अटल जी अपनी सुधबुध में नहीं थे. जिसके चलते वह अक्सर बात करते-करते बीच में अचानक सब कुछ भूल जाते और खामोश हो जाते थे. फिर थोड़ी देर में उनमें जब संवेदना लौटती तब जैसे तैसे वे अपनी बात पूरी करते थे.”
अटल जी ने आडवाणी को PM नहीं बनाया
“इस कदर के गंभीर स्वास्थ्य संकट से घिरे होने के बाद भी मगर तब के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने, पार्टी और देश के हित में कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाया. जब अटल बिहारी जी इस कदर अक्षम हो ही चुके थे तो मेरे हिसाब से उन्हें (प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को) सत्ता हस्तांतरण करके ‘राजपाट’ लाल कृष्ण आडवाणी जी को सौंप देना चाहिए था. ऐसा नहीं है कि मैं लाल कृष्ण आडवाणी के बेहद करीब था या हूं. इसलिए आज उनकी तरफदारी में ऐसा बोल रहा हूं. उनमें (लाल कृष्ण आडवाणी) भारत का प्रधानमंत्री बनने की योग्यता थी.
आडवाणी का ह़क मारने के कारण बीजेपी-वाजपेयी जानें!
अपनी अस्वस्थता के चलते उसी वक्त अटल बिहारी वाजपेयी जी द्वारा लाल कृष्ण आडवाणी को, भारत का प्रधानमंत्री बना दिया जाना चाहिए था. मगर राजनीतिक कारणों से या फिर निजी कारणों से यह मैं नहीं जानता, मगर वैसा न होना था न हुआ, जैसा आज मैं कह रहा हूं. वह सब (गंभीर रूप से बीमार होने के बावजूद अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा लाल कृष्ण आडवाणी को भारत का प्रधानमंत्री न बनाया जाना) वह क्या था? जब आप (स्टेट मिरर हिंदी) कांग्रेस के भीतर अंदरूनी कलह-कलेश को लेकर सवाल कर ही रहे हैं तो, इससे तो भारतीय जनता पार्टी (BJP Politics) भी सुरक्षित नहीं बची है.” हमेशा खुलकर मगर बेहद संतुलित बोलने के लिए पहचाने जाने वाले पूर्व ब्यूरोक्रेट प्रकाश सिंह अपने दिल की बात बेबाकी से कहते हैं.
आडवाणी का ह़क काटने को BJP भी जिम्मेदार
स्टेट मिरर हिंदी ने प्रकाश सिंह से पूछा, “जब अटल बिहारी वाजपेयी ने लाल कृष्ण आडवाणी को देशहित में भी प्रधानमंत्री न बनाकर, उन्हें उनका ह़क न देने जैसी 'न-इंसाफी' की, तब भारतीय जनता पार्टी का शीर्ष नेतृत्व कहां था? क्या बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व लाल कृष्ण आडवाणी जी के साथ हुए अन्याय के लिए उतना ही जिम्मेदार नहीं है, जितना कि तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी?”
काबिलियत के हिसाब से आडवाणी को नहीं मिला
सवाल के जवाब में पूर्व ब्यूरोक्रेट (Ex IPS Prakash Singh) बोले, “आडवाणी जी के साथ उस अक्षम्य न-इंसाफी के लिए जितने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जिम्मेदार रहे, उतनी ही जिम्मेदारी भारतीय जनता पार्टी और उसका शीर्ष नेतृत्व भी रहा. पार्टी और वाजपेयी जी दोनों ने मिलकर लाल कृष्ण आडवाणी जी को उनके प्रधानमंत्री का ह़क न देने का काम किया. मैं डंके की चोट पर कह सकता हूं कि आडवाणी जी को जो मिलना चाहिए था, जिसकी काबिलियत उनमें थी, वह सब उन्हें नहीं मिला या नहीं दिया गया. पहले तो अटल जी ने उनका ह़क मारा. आडवाणी जी को लेकर बाद में बाकी सब भी अटल जी के ही पीछे-पीछे चलते गए.”
आडवाणी के लिए BJP इतना तो करती ही...
“मैं किसी पार्टी-पॉलिटिक्स का न कभी हिस्सा रहा न आगे रहने का इच्छुक हूं. लेकिन जब कांग्रेस हो या बीजेपी. देश की इन दो मुख्य राजनीतिक पार्टियों के अंदर मौजूद दमघोटू माहौल को देखता हूं तो साफ-साफ बोलने से खुद को नहीं रोक पाता हूं. आतंरिक कलह से दोनों ही पार्टियां नहीं बची हैं. सत्ता और पावर गेम की अंदरूनी उठा-पटक हर देश की राजनीतिक पार्टियों में मची रहती है. तो फिर इससे भारत के दोनों बड़े पॉलिटिकल दल बीजेपी और कांग्रेस भी कैसे और क्यों बचे रह सकते हैं? हां, इतना जरूर है कि इंदिरा गांधी ने सत्ता की बागडोर या सत्ता का चाबुक खुद के हाथ में बनाए रखने के लिए देश को आपातकाल की अंधेरी कोठरी में धकिया दिया, तो लाल कृष्ण आडवाणी जी को लेकर, उससे कम बीजेपी और अटल जी ने भी नहीं किया.
आडवाणी को राष्ट्रपति बनाने से किसका नुकसान?
भाजपा के पूर्व शीर्ष नेतृत्व और तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा लाल कृष्ण आडवाणी का ह़क मार लिए जाने के विषम विषय पर बात करते हुए सीमा सुरक्षा बल के पूर्व महानिदेशक प्रकाश सिंह आगे बोले, “मान भी लिया जाए कि भारतीय जनता पार्टी का तब का नेतृत्व और तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल जी ने लाल कृष्ण आडवाणी को भारत का प्रधानमंत्री न बनने देने या न बनाने की कसम ही खा रखी थी. तो उन जैसे योग्य, राजनीतिक, सामरिक, विदेश-नीति की समझ रखने नेता को क्या भारत का राष्ट्रपति बनाकर भी उसके सम्मान की रक्षा नहीं की जा सकती थी? इस उपाय से बीजेपी का भी कोई नुकसान नहीं होता और न ही अटल जी को कोई संकट खड़ा होता. लाल कृष्ण आडवाणी जी का सम्मान तो बचा ही रह जाता. सो अलग से बोनस होता.”
आडवाणी से मुरली मनोहर जोशी की तुलना अनुचित
कांग्रेस और भाजपा जैसी देश की दो प्रमुख राजनीतिक पार्टियों में मची रहने वाली अंदरूनी उठा-पटक पर बातचीत के दौरान स्टेट मिरर हिंदी के एक सवाल के जवाब में उत्तर प्रदेश और आसाम के पूर्व पुलिस महानिदेशक प्रकाश सिंह बोले, “देखिए बेशक, मुरली मनोहर जोशी जी भाजपा के कद्दावर नेता रहे हों. भाजपा के शीर्ष नेतृत्व द्वारा आज वह भी साइड कर दिए गए हैं. अगर लाल कृष्ण आडवाणी की काबिलियत से मुरली मनोहर जोशी की तुलना करेंगे, तो वह अनुचित है. दोनों में बहुत बड़ा फर्क है. मैं किसी की काबिलियत को मापने का तय पैमाना नहीं हो सकता हूं. हां, जब आपने (स्टेट मिरर हिंदी) सवाल मुरली मनोहर जोशी जी और लाल कृष्ण आडवाणी जी के बीच काबिलियत की तुलना करने के बारे में किया है. तब मैं कहना चाहता हूं कि लाल कृष्ण आडवाणी जी की काबिलियत की तुलना मुरली मनोहर जोशी जी जैसी नहीं है.”