Delhi BMW Car Accident: सजा, ड्राइविंग लाइसेंस-पंच, षडयंत्र में शामिल होना, इंश्योरेंस क्लेम, क्या कहता है भारत का MV ACT?
दिल्ली में बीएमडब्ल्यू कार हादसे ने नया मोड़ ले लिया है. हादसे में वित्त मंत्रालय के उप-सचिव नवजोत सिंह की मौत के बाद आरोपी महिला चालक गगनदीप कौर पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं. महिला के विरोधाभासी बयान, कार में मौजूद पति, बच्चों और घरेलू सेविका की मौजूदगी ने जांच को और पेचीदा बना दिया है. पुलिस अब मेडिकल रिपोर्ट, तकनीकी जांच और महिला के दोहरे बयान के आधार पर केस को आगे बढ़ा रही है. सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकीलों के मुताबिक, महिला पर लापरवाही से मौत, झूठे बयान और साजिश की धाराएं भी लग सकती हैं.;
राजधानी दिल्ली में घटी बीएमडब्ल्यू कार दुर्घटना की पड़ताल अगर ईमानदारी से हो सकी तो हादसे को अंजाम देने वाली महिला कार-चालक ही नहीं, घटना के वक्त घायल को अस्पताल पहुंचाने में मदद करने वाला कार चालक, कार में मौजूद महिला का पति, दंपत्ति की घरेलू सेविका (अगर बालिग हुई तब) भी फंस सकते हैं. जहां तक भारत के मोटर वाहन अधिनियम और कायदे-कानून की बात है तो अब तक जिस तरह से महिला के बयानों में विरोधाभास मिला है वह मामले को और ज्यादा पेचीदा बना रहा है.
दिल्ली पुलिस के मुताबिक अब तक इस घटना को लेकर दिल्ली के कैंट थाने में आपराधिक मुकदमा दर्ज कर लिया गया था. यह मुकदमा बीएमडब्ल्यू कार हादसे में जान गंवा चुके नवजोत सिंह की पत्नी संदीप कौर ने दर्ज कराई है. संदीप कौर खुद घटना के समय पति के साथ मोटर साइकिल पर बैठी थीं. जिस कार ने दंपत्ति की मोटर साइकिल को जबरदस्त टक्कर मारी उसे हरियाणा के गुरुग्राम की रहने वाली गगनदीप कौर चला रही थी. हादसे के वक्त आरोपी महिला कार चालक गगनदीप कौर के साथ कार के भीतर उसका पति परीक्षित, दंपत्ति के दो छोटे-छोटे बच्चे और एक घरेलू महिला सेविका भी बैठी थी.
नवजोत की पत्नी के बयान पर दर्ज हुआ मुकदमा
घटना के वक्त पुलिस जब मौके पर पहुंची तब तक आरोपी कार चालक महिला किसी अन्य वाहन से घायल दंपत्ति को लेकर घटनास्थल से जा चुकी थी. घटनास्थल से करीब 20-22 किलोमीटर दूर जीटीबी नगर स्थित एक निजी अस्पताल में घायलों को दाखिल कराया, तब डॉक्टरों ने संदीप कौर के पति नवजोत सिंह, जोकि वित्त मंत्रालय में उप-सचिव थे, को मृत घोषित कर दिया. दिल्ली पुलिस ने इस मामले में हादसे में जान गंवा चुके नवजोत सिंह की घायल हुई पत्नी संदीप कौर के बयान पर धारा 281/125बी/105/238/ के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.
क्या बनती है कानूनी कार्यवाही?
सड़क हादसा होना था सो हो गया. हादसे में नवजोत सिंह की दुखद मौत हो गई. सवाल यह है कि अब इस मामले में आगे कानूनी कार्यवाही क्या बनती है? जांच में पुलिस किन-किन बिंदुओं पर पैनी नजर रखेगी. इन्हीं तमाम सवालों के जवाब पाने के लिए स्टेट मिरर हिंदी ने बात की दिल्ली पुलिस के रिटायर्ड डीसीपी एल एन राव से. उनके मुताबिक, “मौके से तमाम अहम सबूत जुटाना पुलिस के लिए बेहद जरूरी होता है. जोकि मुझे उम्मीद है कि पुलिस ने हादसे का शिकार हुई मोटर साइकिल और उसे टक्कर मारने वाली बीएमडब्ल्यू कार का मैकेनिकल निरीक्षण करा लिया होगा.
क्योंकि जब यह मुकदमा ट्रायल के लिए कोर्ट में जाएगा तो पुलिस की तफ्तीश पर ही पीड़ित-पक्ष को न्याय मिलने या दिलाने का सारा दारोमदार होगा. इसलिए पुलिस के जांच अधिकारी को इस मामले में बहुत ही फूंक फूंक कर कदम रखना होगा. सबसे पहले यह भी पुलिस ने आरोपी महिला कार चालक का मेडिकल परीक्षण करवा कर सुनिश्चित किया होगा कि, वह टक्कर मारने के दौरान नशे की हालत में तो नहीं थी.”
महिला के दो बयान कर रहे कन्फ्यूज
पूर्व डीसीपी एल एन राव आगे बोले, “हां, इस मामले में कुछ झोल मुझे आरोपी कार चालक महिला की तरफ से नजर आ रहे हैं. जो उसके पक्ष को कानून कमजोर कर देंगे. जैसे कि महिला के दो बयान आए हैं. पहला बयान कि उसका बेटा कोविड के वक्त में जिस अस्पताल में दाखिल था वह दिल्ली के उसी अस्पताल में घायलों को इलाज के लिए घटनास्थल से 20 किलोमीटर दूर ले गई. जबकि पुलिस की तफ्तीश में पता चला है कि उस अस्पताल में महिला के पिता की व्यावसायिक हिस्सेदारी है. इसलिए वह जान-बूझकर केस में लीपापोती करने कराने के इरादे से घायलों को इलाज के लिए 20 किलोमीटर लंबे रास्ते में मौजूद कई अस्पतालों को छोड़कर, इतनी दूर किसी षडयंत्र के तहत जान-बूझकर ले गयी. आरोपी महिला आखिर दो-दो तरह के बयान क्यों दे रही है? ऐसा न हो कि आरोपी महिला अपना एक झूठ छिपाने के लिए झूठ पर झूठ बोल रही हो. यह पुलिस की तफ्तीश में सामना आना चाहिए.”
सच्चाई छुपा रही महिला?
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ फौजदारी वकील डॉ. ए पी सिंह बोले, “अब तक जो भी कहानी निकल कर सामने आई है उसमें, आरोपी महिला कार चालक न केवल हादसे की दोषी लग रही है, अपितु वह सच्चाई को छिपाकर मामले को अपने पक्ष में करने की भी सोच रही है. इसीलिए वह अलग अलग बयान दे रही है. महिला ने क्या क्या और क्यों झूठ बोला यह तो अगर दिल्ली पुलिस मक्कारी या बेईमानी नहीं करेगी, तो दिल्ली पुलिस आरोपी महिला से उगलवा लेगी. जहां तक इस मामले में महिला द्वारा यह झूठ बोलना कि वह कार में अकेली थी. बाद में पुलिस की जांच में पता चला कि महिला की घरेलू सेविका, महिला का पति और महिला को दो बच्चे भी कार मे मौजूद थे. यह महिला के ऊपर पुलिस के संदेह को और बढ़ाएगा कि महिला ने कार में खुद को अकेले होना क्यों बताया?”
सुप्रीम के वरिष्ठता वकील कहते हैं कि, “यह मुकदमा पहली नजर में तो कानून सड़क हादसे में हुई मौत का है. क्योंकि महिला बार बार बयान बदल रही है. इसलिए जांच में अंतिम क्या कुछ निकल कर आता है, आगे की पड़ताल इसी पर निर्भर करेगी. अगर यह साबित हो गया कि महिला और उसके पति ने जो कि घटना के समय कार में खुद मौजूद थे, पुलिस से प्राथमिक छानबीन में झूठ बोला तो एफआईआर में पुलिस हादसे का मिलकर षडयंत्र रचने की भी धाराओं में चार्जशीट दाखिल कर सकती है.”
सजा का क्या प्रावधान है?
ऐसे मामले में सजा का क्या प्रावधान है? पूछने पर वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा, “लापरवाही से सड़क हादसे में हुई मौत के मामले में वैसे तो 7 साल तक की सजा का प्राविधान है. साथ ही महिला का ड्राइविंग लाइसेंस भी पंच कर दिया जाएगा. इसके बाद महिला का ड्राइविंग लाइसेंस तब तक पंच रहेगा और पूरे भारतवर्ष में ऑनलाइन पंच ही शो होगा, जब तक कि कोर्ट से मुकदमे का फैसला नहीं हो जाता है. अगर मुकदमे का फैसला होने से पहले फिर महिला ने कहीं किसी सड़क हादसे को अंजाम दे दिया, तब ड्राइविंग लाइसेंस जब्त करके, महिला के खिलाफ सजा की अवधि और बढ़ाई जा सकती है. मगर सजा की अवधि बढ़ाने का फैसला कोर्ट पर निर्भर करेगा.
हां, एक समस्या इस मामले में और दिखाई पड़ रही है कि हादसे के बाद जिस अनजान शख्स की कार से महिला घायलों को दूर के अस्पताल में दाखिल कराने ले गए, उसकी भूमिका की भी पुलिस जांच करेगी. क्योंकि आरोपी महिला और उसका पति मान भी लें कि दिल्ली के अस्पतालों से वाकिफ नहीं थे, तब फिर वह मददगार क्यों इतनी दूर मौजूद अस्पताल में घायलों को दाखिल कराने ले गया. वह तो घटनास्थल के करीब ही किसी अस्पताल में प्राथमिक उपचार के लिए घायलों को ले जा सकता था. ऐसे में मदद करने वाले वाहन-चालक को खुद ही खुद को पुलिसिया तफ्तीश में बेकसूर साबित करना होगा.
करीब के अस्पताल ले जाने से बच सकती थी जान
तीसरी व अंतिम समस्या यह है मुकदमे में कि जब मुआवजे की मांग पीड़ित पक्ष द्वारा की जाएगी, तब ऐसे में कोर्ट उस बीमा कंपनी को तलब करेगी, जिसने आरोपी महिला कार ड्राइवर की कार का बीमा किया होगा. वह बीमा कंपनी सबसे पहले यह कहेगी अपनी बीमा रकम बचाने के लिए कि, महिला अगर करीब के अस्पताल में घायल को ले जाती बजाए घटनास्थल से 20 किलोमीटर दूर ले जाने के, तब जख्मी इंसान का जीवन सुरक्षित हो सकता था. ऐसे में किसी की कार से टक्कर होने के चलते जान चले जाने की जिम्मेदार सीधे सीधे महिला है. ऐसे में बीमा कंपनी भी शायद कोर्ट में अपनी यह दलील रख सकती है क्योंकि, महिला की गलती से घायल की मौत हुई है. अत: ऐसे में बीमा कंपनी पीड़ित परिवार को किसी की मौत वाली मद में मदद का मुआवजा नहीं देगी. गलती आरोपी कार चालक महिला की है वह पीड़ित पक्ष को अपनी जेब से मुआवजा रकम अदा करे. हालांकि, कुछ ऊपर नीचे करके संबंधि मुकदमे की सुनवाई करने वाली अदालत, मुआवजे की रकम दिलवाएगी बीमा कंपनी से ही.”