कोविशील्ड वैक्सीन से दिव्यांग हुआ शख्स, सुप्रीम कोर्ट ने मुआवजे की याचिका दाखिल करने की दी सलाह; आखिर क्यों?
सुप्रीम कोर्ट ने कोविशील्ड वैक्सीन लेने के बाद निचले अंगों में 100 फीसदी अक्षमता (डिसएबिलिटी) विकसित होने का दावा करने वाले शख्स को केंद्र सरकार और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया से चिकित्सा खर्च और मुआवजे की मांग करने के बजाय क्षतिपूर्ति (डैमेज) की याचिका दाखिल करने की सलाह दी. एक पीठ जिसमें न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ए.जी. मसीह मौजूद थे, ने बताया कि रिट याचिका में पक्ष सुनवाई में वर्षों लग सकते हैं, जबकि क्षतिपूर्ति याचिका से तेज राहत मिल सकती है.;
Covishield Vaccine Compensation Petition Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने एक व्यक्ति को, जिसने कोविशील्ड वैक्सीन लेने के बाद 100% निचले अंगों की दिव्यांगता का दावा किया है, सलाह दी है कि वह केंद्र सरकार और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया से मुआवजे की मांग के लिए रिट याचिका के बजाय क्षतिपूर्ति का मुकदमा दायर करे. न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ए.जी. मसीह की पीठ ने कहा कि रिट याचिका में वर्षों लग सकते हैं, जबकि मुकदमा दायर करने से त्वरित राहत मिल सकती है.
जस्टिस गवई ने सुनवाई की शुरुआत में कहा कि इसके लिए रिट याचिका कैसे दायर की जा सकती है. क्षतिपूर्ति के लिए आपको मुकदमा दायर करना चाहिए. इस पर याचिकाकर्ता के वकील ने बताया कि कोर्ट के सामने पहले से ही दो समान याचिकाएं लंबित हैं, जहां समन्यवय पीठों की तरफ से नोटिस जारी किया गया है.
'अगले 10 साल तक कुछ नहीं होगा'
जस्टिस गवई ने कहा कि यदि आप याचिका यहां लंबित रखते हैं तो अगले 10 साल तक कुछ नहीं होगा. वहीं, अगर आप मुकदमा दायर करते हैं तो आपको त्वरित राहत मिलेगी.
याचिकाकर्ता की मांगें:
- वैक्सीन के बाद हुई दिव्यांगता के लिए गरिमापूर्ण जीवन सुनिश्चित करना
- अब तक और भविष्य में होने वाले चिकित्सा खर्च की प्रतिपूर्ति
- यदि दिव्यांगता स्थायी है, तो उचित मुआवजा प्रदान करना
- AEFI (टीकाकरण के बाद प्रतिकूल प्रभाव) के मामलों के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी करना
इसके अतिरिक्त याचिकाकर्ता ने मांग की है कि भारत में COVID-19 टीकाकरण के दौरान अडवर्स इफेक्ट्स फॉलोइंग इम्यूनाइजेशन (AEFI) के मामलों के निपटारे के लिए स्पष्ट एवं सुदृढ़ दिशानिर्देश जारी किए जाएं, क्योंकि टीकाकरण से पूर्व एवं पश्चात मानक प्रक्रियाएं पूरी नहीं की गईं. याचिका में संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत ‘पेरेन्स पैट्रिए’ (Parens Patriae), ‘एब्सोल्यूट लायबिलिटी’ व ‘रेस्टिट्यूटियो इन इंटेग्रम’ जैसे सिद्धांतों का आधार भी प्रस्तुत किया गया है.
न्यायालय ने याचिकाकर्ता के वकील को निर्देश दिया कि वे अपने मुवक्किल से आगे की सलाह लेकर क्षतिपूर्ति याचिका दाखिल करने पर विचार करें. इसके साथ ही अगली सुनवाई के लिए इस मामले को स्थगित कर दिया गया.