हर सेकेंड और हर शब्द की रिकॉर्डिंग, हादसे की असली वजह का कैसे खुलासा करता है ब्लैक बॉक्स?
एयर इंडिया का प्लेन अहमदाबाद में क्रैश हुआ. अब इस हादसे की असली वजह जानने के लिए ब्लैक बॉक्स की तलाश की जा रही है. यह एयर प्लेन में वह डिवाइस होता है, जो हर पल की खबर रिकॉर्ड करता है. इसे फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर भी कहा जाता है.;
गुजरात के अहमदाबाद से लंदन जा रहा एयर इंडिया का एक पैसेंजर फ्लाइट Boeing 737-8 Dreamliner भयानक हादसे का शिकार हो गया. इस दर्दनाक क्रैश में अब तक 265 लोगों की जान जा चुकी है. जैसे-जैसे राहत और बचाव कार्य तेज़ी से जारी है. हवाई सुरक्षा और जांच एजेंसियों ने मलबे से सुराग जुटाने की कोशिशें शुरू कर दी हैं.
इस वक्त जिस चीज़ की सबसे ज़्यादा तलाश की जा रही है, वो है फ्लाइट का ‘ब्लैक बॉक्स’, जिसे तकनीकी भाषा में फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर कहा जाता है. ब्लैक बॉक्स ही वह डिवाइस है, जो हादसे की असली वजह बताने में मदद करता है. चलिए पॉइंट्स में जानते हैं क्या है ब्लैक बॉक्स और यह कैसे काम करता है?
कैसे काम करता है ब्लैक बॉक्स?
- नाम भले ब्लैक बॉक्स हो, लेकिन यह आमतौर पर ऑरेंज कलर का होता है, ताकि हादसे के बाद मलबे में आसानी से देखा जा सके.
- यह एक रिकॉर्डिंग डिवाइस है जो स्टील या टाइटेनियम से बनी होती है और बेहद मजबूत होती है. इसमें फ्लाइट से जुड़ी बातचीत, तकनीकी डेटा और सिग्नल्स रिकॉर्ड किए जाते हैं.
- इसमें दो मुख्य हिस्से होते हैं. इनमें डिजिटल फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर (DFDR) कॉकपिट वॉइस रिकॉर्डर (CVR) शामिल है.
- कॉकपिट वॉइस रिकॉर्डर कॉकपिट में होने वाली बातचीत और आवाज़ों को रिकॉर्ड करता है, इसमें पायलट, को-पायलट और एयर ट्रैफिक कंट्रोल (ATC) के बीच रेडियो पर होने वाली बातचीत भी शामिल होती है. इसका मकसद यह जानना होता है कि उड़ान के दौरान कॉकपिट में क्या हुआ.
- डिजिटल फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर विमान की स्पीड, ऊंचाई, मूवमेंट, इंजन डेटा और उड़ान का ट्रैक रिकॉर्ड करता है. यह लगभग 90 प्रकार के तकनीकी आंकड़े रिकॉर्ड करता है और 24 घंटे से अधिक की जानकारी स्टोर कर सकता है. इसमें फ्यूल की खपत, थ्रस्ट और दबाव जैसे अहम मापदंड भी शामिल होते हैं.
- शुरू में डेटा को तार या फॉइल पर रिकॉर्ड किया जाता था. बाद में मैग्नेटिक टेप का प्रयोग हुआ. अब आधुनिक विमानों में सॉलिड स्टेट मेमोरी चिप्स का इस्तेमाल होता है, जो ज्यादा टिकाऊ होती हैं.
- हर ब्लैक बॉक्स का वजन लगभग 4.5 किलोग्राम होता है. यह गर्मी, ठंड और नमी जैसे कठोर हालातों में भी सुरक्षित रहता है.
- यह आमतौर पर विमान के पिछले हिस्से में लगाया जाता है, जहां क्रैश का प्रभाव कम होता है. अगर फ्लाइट पानी में गिरती है, तो यह 30 दिनों तक अल्ट्रासोनिक सिग्नल भेजता है ताकि खोजा जा सके.
- हेलीकॉप्टर्स में भी ब्लैक बॉक्स मौजूद होते हैं, जो समय, ऊंचाई, पावर, रोटर स्पीड और तापमान जैसे डेटा रिकॉर्ड करते हैं.
- भारी हेलीकॉप्टरों का ब्लैक बॉक्स 1100°C तापमान को 1 घंटे तक झेल सकता है. हल्के हेलीकॉप्टरों का ब्लैक बॉक्स 15 मिनट तक इतनी गर्मी सहने में सक्षम होता है.