मरने से पहले Meena Kumari का एक आख़िरी सौदा! Mumtaz को फीस के बदले देना पड़ा था अपना आलीशान बंगला

काफी समय से अफवाहें थी कि मीना कुमारी को दिवालिया होने की वजह से अपना बांद्रा वाला बंगला मुमताज को बेचना पड़ा. हालांकि अब मुमताज ने इन अफवाहों पर विराम लगा दिया है. एक इंटरव्यू में मुमताज ने बताया है कि वह दिवालिया नहीं हुईं थी बल्कि उनके पास उनकी फीस चुकाने के पैसे नहीं थे मजबूरन उन्होंने अपना बंगला ऑफर कर दिया.;

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Edited By :  रूपाली राय
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साल 1972, हिंदी सिनेमा की ट्रेजेडी क्वीन मीना कुमारी ज़िंदगी की सबसे मुश्किल लड़ाई लड़ रही थी. शराब की लत, बिगड़ता स्वास्थ्य, और एक अधूरी फिल्म ‘गोमती के किनारे’. फिल्म के निर्माता सावन कुमार टाक, जो मीना के क़रीबी दोस्त भी थे, इस प्रोजेक्ट को किसी भी हाल में पूरा करना चाहते थे. लेकिन जैसे-जैसे मीना की तबीयत बिगड़ती गई, फिल्म की शूटिंग भी टलती रही और सावन कुमार के पास पैसे खत्म होने लगे. सावन ने एक दिन मीना से कहा, 'शूटिंग में देरी की वजह से सारे पैसे खत्म हो गए हैं.' मीना ने बड़ी शांति से जवाब दिया, 'चिंता मत करो... कुछ दिनों बाद उन्होंने सावन को डेढ़ लाख रुपये दे दिए  न सिर्फ दान के तौर पर बल्कि मदद के नाम पर, यह कहकर कि "वापस दे सकते हो.' लेकिन इस रकम के पीछे एक कहानी छुपी थी.

पैसों के बदले बंगले का सौदा 

इस कहानी का दूसरा सिरा जुड़ता है मुमताज़ से उस दौर की सबसे हाई पेड एक्ट्रेस। रेडियो नशा के साथ एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा, 'मैं एक फिल्म के लिए 7.5 लाख लेती थी और 'गोमती के किनारे' के लिए मुझे अभी 5 लाख बाकी थे. मीना कुमारी, जिन्हें अंदाजा था कि उनकी ज़िंदगी अब गिनती के दिनों की मेहमान है, ने मुमताज़ से एक अनोखी पेशकश की. उन्होंने कहा, 'मुमताज़, क्या तुम्हें बुरा लगेगा अगर मैं तुम्हें तुम्हारी बाकी की फीस की जगह अपना बंगला दे दूं?.' मुमताज़ झिझक गईं, वो जानती थीं कि ये वही बंगला है जिसे मीना ने बड़े अरमानों से बनवाया था एक अकेली औरत का अपना छोटा-सा संसार था, लेकिन मीना पैसो के बदले मुमताज को बंगला देने में अड़ी रही. उन्होंने मुमताज से कहा, 'मुझे पता है, मैं ज्यादा दिन नहीं रहूंगी.' यह सुनते ही मुमताज ने उनका ऑफर स्वीकार कर लिया क्योंकि मुमताज खुद भी जानती थी कि मीना कुमारी बस चंद दिनों की मेहमान है.

मीना हो गई थी दीवालिया

हालांकि जैसे ही ये ख़बर बाहर आई, लोगों ने कहना शुरू कर दिया कि मीना कुमारी दिवालिया हो गई थी और उनकी मदद के लिए मुमताज को आगे आना पड़ा था. लेकिन मुमताज़ ने इन अफवाहों पर साफ़-साफ़ कहा, 'वो झूठ है... मीना जानती थीं कि उनका कोई नहीं है. उन्होंने सोच-समझकर वह बंगला मुझे दिया।' मुमताज़ मानती हैं कि वो बंगला उनके लिए शुभ साबित हुआ। उन्होंने कहा कि वह बंगला उनके लिए काफी लकी साबित हुआ और उनका करियर तेजी से आगे बढ़ा.

एक अधूरी फिल्म, एक अधूरी ज़िंदगी

मार्च 1972 में मीना कुमारी इस दुनिया से रुख़्सत हो गईं, ‘गोमती के किनारे’ उनकी आख़िरी रिलीज़ फिल्म बनी, जो बॉक्स ऑफिस पर कोई कमाल नहीं दिखा पाई. लेकिन पर्दे के पीछे की ये कहानी एक बीमार एक्ट्रेस की ज़िद, एक दोस्त की मदद और एक प्रॉपर्टी सौदे में छुपा भावनाओं का सागर हमेशा के लिए सिनेमा की यादों में दर्ज हो गया.

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