Inside Story: तहव्वुर राणा से पूछताछ को कुछ बचा ही नहीं है...तो फिर?

26/11 आतंकी हमले का मास्‍टरमाइंड तहव्‍वुर राणा भारत लाया जा चुका है और एनआईए की हिरासत में है. उससे पूछताछ चल रही है और मीडिया में इससे जुड़ी तमाम तरह की खबरें आ रही हैं. लेकिन उन खबरों में कितनी सच्‍चाई है और वो आ कहां से रही हैं?;

By :  संजीव चौहान
Updated On : 16 April 2025 5:26 PM IST

“26/11 मुंबई आतकंवादी हमलों (26/11Mumbai Terror Attack) के मास्टरमाइंड मोस्ट वॉन्टेड आतंकवादी (Most Wanted Terrorist) और, हाल ही में अमेरिका (America) से प्रत्यर्पित (Extradition) करके भारत लाए गए तहव्वुर राणा (Terrorist Tahawwur Rana) से पूछताछ के लिए कुछ भी बाकी नहीं बचा है!

मीडिया में जो भी खबरें छप रही हैं या दिखाई जा रही हैं उनमें से कुछ को छोड़कर, अधिकांश खबरें मनगढ़ंत हैं. क्योंकि इस वक्त जब तहव्वुर राणा जैसा खतरनाक आतंकवादी भारतीय एजेंसियों (NIA) के कब्जे हैं, तो भला ऐसे में किसी भी एजेंसी के अधिकारी या छोटे कारिंदे को इतनी फुर्सत नहीं होती है कि, इनमें से कोई भी कस्टडी में मौजूद संबंधित मुलजिम से हुई जांच-पड़ताल की खबरें मीडिया को लीक कर सके. सब पर पैनी खुफिया नजरें रखी जाती है. सब जानते हैं कि इतने बड़े मामलों की तफ्तीश से जुड़ी खबरें लीक करने का अंजाम महकमे से कैसा मिलेगा?”

बुधवार को अंदर की यह तमाम बेहद अहम जानकारियां ‘स्टेट मिरर’ को, भारतीय खुफिया एजेंसी “रॉ” (RAW-IB), केंद्रीय जांच ब्यूरो यानी सीबीआई और, एनआईए (जो तहव्वुर राणा को अमेरिका से भारत लाई है, और मुंबई अटैक मामले की जांच कर रही है), के कुछ मौजूदा और पूर्व अधिकारियों से बातचीत में निकल कर बाहर आई हैं.

'सब बकवास और बे-सिर पैर की खबरें हैं'

अफगानिस्तान और बेल्जियम में करीब 3 साल तक ‘रॉ’ ऑफिसर के रूप में कार्य कर चुके पूर्व अधिकारी के मुताबिक, ‘मैं जिस तरह से तहव्वुर राणा से हो रही पूछताछ से संबंधित खबरों की जानकारियां या खबरें मीडिया में पढ़ रहा हूं. उन्हें देख पढ़कर हंसी भी आती है और गुस्सा भी. कोफ्त इसलिए होती है कि, मीडिया इन खबरों को टीवी चैनलों और अखबारों में ऐसे परोस रहा हो, जैसे कि मानो रिपोर्टर खुद ही रॉ, आईबी, सीबीआई या फिर उस एनआईए की टीम का बेहद अहम पड़ताली अफसर हो, जिन एजेंसियों की कस्टडी में तहव्वुर राणा है. सब बकवास और बे-सिर पैर की खबरें हैं. इन खबरों में सच्चाई तो रत्ती भर भी और दूर-दूर तक नहीं है.’

 

हंसने लायक है तहव्‍वुर राणा पर मीडिया कवरेज

खुफिया एजेंसी ‘रॉ’ (RAW) के इन पूर्व अधिकारी की इस खरी-खरी दो टूक को ही आगे बढ़ाते हुए सीबीआई के पूर्व विशेष निदेशक और वरिष्ठ रिटायर्ड आईपीएस कहते हैं, ‘प्रैक्टिकल होकर सोचिए जरा कि, जिस तहव्वुर राणा को 16 साल बाद जैसे-तैसे प्रत्यार्पित कराके भारत लाया जा सका है. उस तहव्वुर राणा के तमाम कानूनी दस्तावेज पहले जांच एजेंसियां पूरे कराने में जुटी होंगी. ताकि कोर्ट में राणा के खिलाफ चार्जशीट को मजबूती से पेश किया जा सके और मुकदमे में पड़ताल की नजर से कहीं कोई वो झोल या ऐसा झोल बाकी न रह जाए, जिसका फायदा आतंकवादी तहव्वुर राणा को कानूनी रूप से मिल सके. या इन भारतीय एजेंसियों के अधिकारियों के लिए, यह प्राथमिकता होगी कि तहव्वुर राणा ने पूछताछ में क्या कुछ बताया है, वो सब मीडिया को लीक करके पहले छपवा लिया जाए. सच पूछिए तो मैं तहव्वुर राणा से संबंधित खबरों की घर बैठे समीक्षा के लिए न्यूज चैनल और अखबारों में ठूंसी जा रही खबरों को गंभीरता से देख-पढ़ कर हंस रहा हूं.’

किसी भी एजेंसी के पास इतना वक्त नहीं है कि वो...

करीब 9 साल तक भारतीय खुफिया एजेंसी (भारत की आंतरिक खुफिया एजेंसी) में रहते हुए कश्मीर घाटी, मणिपुर, असम, छत्तीसगढ़-झारखंड पर पैनी नजर रखने की नौकरी कर चुके रिटायर्ड वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी कहते हैं, ‘भारत में मीडिया स्वंत्रत है. जो चाहे लिखे या दिखाए. अब हम लोगों पर (भारतीय खुफिया और जांच एजेंसियों पर) मीडिया को कोई फर्क नहीं पड़ता है. अब से 20 साल पहले हां, मीडिया जितना गंभीर था. और उस जमाने में जो खबरें मीडिया दिखाता-छापता था, उनमें दमखम और विश्वसनीयता होती थी. अब मीडिया की भीड़ है. रॉ, आईबी, सीबीआई या फिर एनआईए ही क्यों न हो, किसी भी एजेंसी के पास इतना वक्त नहीं है कि वो मीडिया को खबरें दे.’

 

यूं ही हवा में हाथ नहीं डालती हैं जांच एजेंसियां

इन्हीं अधिकारी ने अपनी बात की पुष्टि में आगे कहा, “सच तो यह है कि तहव्वुर राणा से अब (प्रत्यर्पित होकर अमेरिका से भारत आने के बाद) पूछताछ के लिए कुछ बचा ही नहीं है. भारतीय खुफिया और जांच एजेंसियां 16 साल तक उसके खिलाफ एवीडेंस (सबूत) ही तो जुटाती रही हैं. जब उसके खिलाफ सबूतों से अमेरिका संतुष्ट हुआ तभी तो तहव्वुर को भारत के हवाले किया गया है. और फिर इतने बड़े मामलों में वैसे भी कभी कोई इंटेलीजेंस या इन्वेस्टीगेटिव एजेंसी हवा में ही हाथ नहीं डालती है. पहले हेडली हो दाउद इब्राहिम, हाफिज सईद या फिर तहव्वुर राणा. इन जैसे अपराधियों को खिलाफ भारतीय जांच-खुफिया एजेंसियां भी, ब्रिटिश-अमेरिकी एजेंसियों की तर्ज पर पहले मजबूत सबूत जुटाती हैं. फिर फरार मुलजिम को भारत प्रत्यर्पित कराने की प्रक्रिया शुरू करती हैं.”

वाहियात खबरें दिखा-पढ़वा रहा है अधिकांश मीडिया

भारत की आंतरिक खुफिया एजेंसी के इन पूर्व अफसर से बातचीत में सामने निकल कर आई बेहद अंदर की और, अहम तथ्यों की पुष्टि 1974 बैच के पूर्व दबंग आईपीएस और उत्तर प्रदेश के रिटायर्ड पुलिस महानिदेशक डॉ. विक्रम सिंह भी करते हैं. ‘स्टेट मिरर’ से विशेष बातचीत में यूपी के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह कहते हैं, “आईबी अफसर ने आपको 100 फीसदी सच बताया है. वो सच जो देश की शायद ही किसी बड़ी इंटेलीजेंस विंग या इनवेस्टीगेटिव एजेंसी का कोई पूर्व अफसर भी इतना खुलकर बताएगा. मैं खुद हैरत में हूं तहुव्वुर राणा से एनआईए कस्टडी में हो रही पूछताछ से संबंधित बे-सिर पैर की खबरों को, भारत के न्यूज चैनलों और अखबारों में देख पढ़कर. अरे भई यह देश की आंतरिक और बाहरी सुरक्षा से जुड़ा मामला है. भारत का अधिकांश मीडिया (कुछ को छोड़कर) तो तहव्वुर राणा जैसे खूंखार आंतकवादी को लेकर, ऐसी-ऐसी वाहियात खबरें दिखा-पढ़वा रहा है देशवासियों को कि, एनआईए, रॉ और आईबी से भी ज्यादा मानो भारत सरकार ने, हमारे पत्रकार बंधुओं को ही तहव्वुर राणा से पूछताछ का अधिकार दे दिया हो!”

 

ये है अंदर का सच...

उत्तर प्रदेश के (UP DGP) रिटायर्ड डीजीपी विक्रम सिंह (IPS Vikram Singh) आगे कहते हैं, ‘अंदर का सच तो यह है कि तहव्वुर राणा से पूछताछ के लिए कुछ बाकी बचा ही नहीं होगा. आतंकवादी तहव्वुर राणा के खिलाफ 15-16 साल में भारतीय एजेंसियों ने जो सबूत इकट्ठे किए हैं, बस उन्हीं पर उसका अंगूठा लगवाने या दस्तखत (सहमति में) कराने का काम चल रहा होगा. कुछ बयान थोड़े बहुत अगर एनआईए को लगेगा तो वो अलग से अब रिकॉर्ड कर लेगी. ताकि कोर्ट में तहव्वुर राणा के खिलाफ कोई सबूत हल्का न रह जाए. क्योंकि तहव्वुर राणा जैसे खूंखार अपराधियों की नजरें कानून में झोल का लाभ लेने के लिए जांच एजेंसियों से भी ज्यादा पैनी होती हैं.’

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