Khandwa to Mumbai: कंगाल ‘दूधिया’ अरुण गवली के अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद का जिगरी और दुश्मन नंबर-1 बनने की इनसाइड स्टोरी
अंडरवर्ल्ड डॉन और पूर्व विधायक अरुण गवली को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई है. गवली नागपुर सेंट्रल जेल में शिवसेना पार्षद कमलाकर जामसांडेकर की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहा था. बुधवार को सर्वोच्च न्यायालय ने शर्तों के साथ उसे रिहा करने का आदेश दिया. दूध बेचने वाले साधारण युवक से अंडरवर्ल्ड डॉन और फिर विधायक बने गवली का कभी दाऊद इब्राहिम से गहरा रिश्ता था, लेकिन बाद में वही दुश्मन नंबर-1 बन गया. उसकी जिंदगी पर फिल्में ‘डैडी’ और ‘दागड़ी चाल’ भी बन चुकी हैं.;
अमेरिका और भारत का मोस्ट वॉन्टेड अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम जिससे कांपता था, उसका कभी जिगरी ‘यार’ से बाद में दुश्मन नंबर-1 बनने वाला अरुण गवली 17 साल में एक बार फिर जेल से जमानत पर रिहा हो गया. जमानत पर जेल से बाहर भेजने का यह आदेश बुधवार को सर्वोच्च न्यायालय ने किया. गैंगस्टर अरुण गवली अभी तक नागपुर सेंट्रल जेल में कैद था. यह जमानत उसे साल 2017 में मुंबई के शिवसेना पार्षद कमलाकर जामसांदेकर के कत्ल के मामले में मिली है. इस मामले में वह उम्रकैद की सजा काट रहा है. उसकी जमानत का फैसला सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ (जस्टिस एम एम सुंदरेश और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह) ने दिया.
जमानत की तमाम कानूनी खानापूर्तियों के बाद वह बुधवार को दोपहर बाद करीब साढ़े बारह बजे नागपुर सेंट्रल जेल की सलाखों से बाहर खुली हवा में सांस ले सका. उसके खिलाफ महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत द्वारा लगाई गई शर्तों-नियमों को ध्यान में रखकर ही जमानत दी है. आइए जानते हैं कि आखिर कालांतर का एक अदना सा दूध बेचने वाला 'दूधिया' अंडरवर्ल्ड डॉन आखिर कैसे बन बैठा. वही अरुण गवली जिसके बिना कभी दाऊद इब्राहिम को नींद नहीं आती थी. गैंगवार में दुश्मनी हुई तो इसी अरुण गवली के नाम से कालांतर में दाऊद इब्राहिम की 'घिग्घी' भी बंधने लगी थी.
खुद पर बनी फिल्म के प्रीमियर पर जाने के लिए नहीं मिली थी जमानत
अरुण गवली की जिंदगी पर आधारित एक फिल्म 'डैडी' भी कुछ साल पहले बन चुकी है. उस फिल्म के प्रीमियर में भी अरुण गवली शामिल होने को उतावला था. उसे मगर कोर्ट ने जेल से जमानत पर बाहर आने की इजाजत नहीं दी. तब वह मन-मसोस कर जेल के भीतर ही बंद रह गया और उस पर बनी फिल्म ‘डैडी’ का प्रीमियर उसकी अनुपस्थिति में ही हो गया. हालांकि इस दौरान अब से पहले भी अरुण गवली जेल से अक्सर बाहर आता रहा है. विशेषकर गणेश-उत्सव के मौके पर.
पांचवीं के बाद नहीं कर सका पढ़ाई
ऐसे अरुण गवली की क्राइम-कुंडली पर नजर डाली तो पता चला कि अब से करीब 60-65 साल पहले, अरुण गवली के पिता गुलाबराव रोजी-रोटी की तलाश में मध्य प्रदेश के खंडवा से मुंबई पहुंचे थे. अरुण गवली का जन्म महाराष्ट्र के ही अहमद नगर जिले के कोपर गांव में हुआ था. चूंकि घर की माली हालत बदतर थी. सो पांचवीं कक्षा के बाद कालांतर के बालक अरुण गवली की आगे की पढ़ाई नहीं हो सकी. ऊपर से तंगहाली के दौर में मुंबई की बदनाम और गरीबों का आशियाना 'चाल-बस्ती' रहने को नसीब हुई. तो उस माहौल ने अरुण गवली को अपराध और तबाही की दुनिया में धकेलने में 'आग में घी' का सा काम कर डाला.
भाई के कत्ल की वजह से हुई दाऊद से दुश्मनी
पेट-परिवार पालने के लिए पढ़ाई-लिखाई की ही उम्र में अरुण गवली पिता के साथ दूध बेचने के कारोबार में हाथ बंटाने लगा. मतलब वह अब पक्का 'दूधिया' बन गया था. साल 1980 आते-आते अरुण गवली मुंबई में तमाम बदनाम कामों के लिए कुख्यात ‘चाल-बस्तियों’ का बिगड़ैल-दबंग गली का गुंडा बन चुका था. बड़ा बदमाश बनने के लिए उसे बैसाखियां दीं राम नाइक गैंग ने. वहीं से इसकी दोस्ती तब के नौसिखिया गली-कूचे के बदमाश दाऊद इब्राहिम और छोटा राजन से हो गई. उनका विश्वासपात्र बनते ही दाऊद इब्राहिम ने अरुण गवली को काम सौंपा कि वह (अरुण गवली) उसके (दाऊद-छोटा राजन) जितने भी अवैध हथियारों-ड्रग्स की तस्करी की खेपें मुंबई की हद में पहुंचें, गवली उन सबको सुरक्षित अड्डों तक पहुंचाएगा. इसी बीच गैंगवार में एक दिन अरुण गवली का भाई कत्ल कर डाला गया. गवली को शक था कि उसके भाई का कत्ल दाऊद इब्राहिम ने शूटर्स से करवाया है. बस उसी दिन से अपराध की दुनिया के दो जिगरी दोस्त, रातों-रात ‘दुश्मन’ बनकर एक-दूसरे के खून के प्यासे हो गये.
1993 मुंबई सीरियल ब्लास्ट ने दुश्मनी की आग में डाला घी
अभी दोनों के बीच दुश्मनी परवान चढ़ ही रही थी. अचानक साल 1993 में मुंबई में हुए सीरियल बम धमाकों ने तो मानो अरुण गवली के दिल-ओ-जेहन में दाऊद इब्राहिम के खिलाफ तेजाब सा ही उड़ेल दिया हो. अरुण गवली यह सोचकर दाऊद इब्राहिम और उसके गैंग के खून का प्यासा हो गया कि दाऊद भारत और भारत के हिंदुओं का गद्दार है. उसने हिंदुओं के साथ छल करके उन्हें मुंबई सीरियल बम धमाकों में मारा है. कहते तो यह भी हैं कि दाऊद इब्राहिम को जैसे ही भनक लगी कि भारत और हिंदू विरोधी उसके कुत्सित-घिनौने इरादों-मानसिकता की भनक, उसके दुश्मन नंबर-1 अरुण गवली को लग चुकी है तो दाऊद को मुंबई सीरियल बम धमाकों के बाद गवली के रूप में अपनी अकाल मौत हर वक्त सामने खड़ी नाचती नजर आने लगी थी.
गवली के डर से मुंबई से भागा दाऊद
इससे ही अंदाजा लगा लीजिए कि इस कदर अरुण गवली के खौफ से भयभीत दाऊद इब्राहिम भला फिर कैसे मुंबई में जिंदा रह पाता? लिहाजा दाऊद इब्राहिम मुंबई बम धमाकों को अंजाम दिलाने के बाद सिर पर पांव रखकर विदेश (दुबई) भाग गया था. क्योंकि वह बखूबी जानता था कि भारतीय जांच एजेंसियां उस तक भले ही जल्दी न पहुंच पाएं, मगर अरुण गवली उसकी गर्दन कभी भी ‘चाक’ करने की कुव्वत अपने बलबूते रखता था. उस वक्त दाऊद अपने साथी गैंगस्टर और कभी अरुण गवली के दोस्त रहे छोटा राजन को भी साथ भगा ले गया था.
जब मुंबई में अपराध की दुनिया का बेताज बादशाह बन गया गवली
भारत छोड़ने के बाद दाऊद इब्राहिम और छोटा राजन में भी खूनी रंजिश पनप गई. यह बात जैसे ही मुंबई में मौजूद, अरुण गवली को पता चली तो उसने छोटा राजन के साथ हाथ मिला लिया. इसलिए क्योंकि दोनों का निशाना ही अब उनका एक कॉमन-दुश्मन दाऊद इब्राहिम ही था. हां, दाऊद और छोटा राजन के देश से फरार होने के बाद मुंबई में अपराध की दुनिया पर अरुण गवली का एक-छत्र राज जरूर हो गया. इतना ही नहीं बल्कि छोटा राजन और दाऊद इब्राहिम गैंग के शूटर-गुर्गे भी अपनी जान की सलामती के लिए, खुद ही अरुण गवली गैंग में शामिल होकर उसे सलाम बजाने लगे. इस तरह आज के कत्ल के मुकदमे में उम्रकैद के सजायाफ्ता मुजरिम-माफिया डॉन अरुण गवली का 'राज' अपराध के शुरूआती दिनों में मध्य मुंबई के दगड़ी-चाल इलाके में खूब चलने-फलने-फूलने लगा.
यरवदा जेल से मिली डॉन की पहचान
यह जिक्र उसी अरुण गवली का है जो 1980-1990 के दशक में मुंबई में अपराध-अपराधियों की नजर की सबसे खूंखार और बदनाम भायखला स्लम बस्ती का उभरता हुआ ‘दादा डॉन’ था. दरअसल गवली को डॉन के रूप में जो पहचान मिली वह उसे महाराष्ट्र के पुणे शहर से मिली. साल 1990 में उसे टाडा कोर्ट ने जब सजा सुनाई तो उसको पुणे की ही यरवदा जेल में बंद करके रखा गया था. जेल के अंदर से भी वह रंगदारी वसूली करने लगा था. जेल के भीतर रहकर ही उसने बाहर मौजूद अपराधियों के इशारे और मोटी रकम पर, ठेके पर यानी कॉन्ट्रैक्ट-किलिंग कराने के काले-कारोबार की अपनी दुकान सजा ली. जेल में बंद रहने के दौरान साथी अपराधी उसे 'डैडी' और 'डॉन' बुलाने लगे. इससे अरुण गवली को विश्वास हो गया कि अब भगोड़ा डरपोक दाऊद इब्राहिम उसके सामने 'जीरो' हो चुका है.
जब अरुण गवली बन गया सफेदपोश-नेता
साल 2004 तक करीब चार साल वह पुणे की यरवदा जेल में बंद रहा. बाद में उसने पुणे के चिंचवाड़ इलाके में रहते हुए गुंडे से ‘सफेदपोश’ बनने की खतरनाक प्लानिंग कर डाली. उसने अपनी ही 'अखिल भारतीय सेना' नाम की पार्टी खड़ी कर ली. उस पार्टी से चुनाव लड़कर वह चिंचपोकली विधानसभा सीट से विधायक बन बैठा. मतलब, कभी दाऊद और छोटा राजन जैसे बदनाम अंडरवर्ल्ड डॉन का राइटहैंड से उनका दुश्मन नंबर-1 बनने वाला, कल का दुधिया अरुण गवली भी अब सफेदपोश-नेता या कहिए ‘माननीय’ बन चुका था. खबरों की मानें तो यह भी सुनने में आता है कि इस कदर के खतरनाक अरुण गवली को पीछे से, महाराष्ट्र की एक बड़ी राजनीतिक पार्टी भी दबे-पांव समर्थन करती थी. जिसने बाद में अपनी इज्जत बचाने की गरज में धीरे से अरुण गवली की खतरनाक दोस्ती से पांव पीछे खींच लिए.
17 साल बाद जेल से रिहाई
गवली गैंग ने जब उस पार्टी से जुड़े नेता-पार्षद कमलाकर जामसांडेकर को कत्ल कर दिया. तो उस पार्टी को लगने लगा कि न जाने किस दिन गवली गैंग का जी-मिचला उठे और वे सब मिलकर कब उस जानी मानी पार्टी के किस नेता को 'ठोंक' बैठें. अब 17 साल बाद उसी पार्षद कमलाकर जामसांडेकर के कत्ल के मामले में बुधवार को अरुण गवली को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिली है. जिक्र जब अरुण गवली की जिंदगी का हो तब यहां बताना जरूरी है कि कालांतर में उसका विवाह आशा गवली से हुआ था. आशा और अरुण गवली दो संतानों (बेटा महेश गवली और बेटी गीता गवली) के माता-पिता हैं. गीता गवली चिंचपोकली विधानसभा में नगर निगम एबीएस कॉरपोरेटर भी बनीं.
कत्ल के कई मामलों में है आरोपी
जहां तक बात अरुण गवली के ऊपर आपराधिक मामलों की है तो, खबरों के मुताबिक उसके ऊपर 1986 में कोबरा गिरोह के सदस्य पारसनाथ पाण्डेय और सशी राशम के कत्ल का आरोप लगा था. उसके बाद शिवसेना विधायक रमेश मोरे- बाला साहब ठाकरे के विश्वासपात्र रहे जयंत राघव, पूर्व विधायक जौद्दीन बुखारी के कत्ल में भी इसका नाम उछला था. इसके जीवन पर 'डैडी' और 'दागड़ी चाल' दो फिल्में भी बन चुकी हैं. दागड़ी चाल फिल्म में अरुण गवली की भूमिका अभिनेता मकरंद देशपांडे ने निभाई थी. जबकि 'डैडी' में अरुण गवली की भूमिका में अर्जुन रामपाल नजर आए थे.