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कौन हैं भारतीय मूल के US रणनीतिकार Ashley Tellis? सीक्रेट डॉक्यूमेंट ले जाने और चीन के अधिकारियों से मिलने का है आरोप

भारतीय मूल के अमेरिकी रणनीतिकार और इंडिया एक्सपर्ट एश्ले टेलिस को अमेरिका में चीन के अधिकारियों से संपर्क और गोपनीय राष्ट्रीय सुरक्षा दस्तावेज़ रखने के आरोप में गिरफ्तार किया गया. अमेरिकी न्याय विभाग ने इसे “राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा” बताया. टेलिस, जिन्होंने भारत-अमेरिका परमाणु समझौते में अहम भूमिका निभाई थी, पर 10 साल की कैद और भारी जुर्माने का भी मामला बन सकता है. मामला अमेरिकी-भारतीय रणनीतिक संबंधों और चीन नीति पर असर डाल सकता है.

कौन हैं भारतीय मूल के US रणनीतिकार Ashley Tellis? सीक्रेट डॉक्यूमेंट ले जाने और चीन के अधिकारियों से मिलने का है आरोप
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( Image Source:  X/AdityaRajKaul )
नवनीत कुमार
Edited By: नवनीत कुमार

Updated on: 15 Oct 2025 8:25 AM IST

अमेरिका में भारतीय मूल के शीर्ष रक्षा रणनीतिकार एश्ले जे. टेलिस (Ashley Tellis) की गिरफ्तारी ने वॉशिंगटन से लेकर नई दिल्ली तक खलबली मचा दी है. अमेरिकी न्याय विभाग ने उन पर चीन से संपर्क रखने और गोपनीय रक्षा दस्तावेज़ अपने पास रखने का गंभीर आरोप लगाया है. अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि यह मामला राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा हुआ है और देश की संवेदनशील जानकारियों के लीक होने की आशंका को जन्म देता है.

न्यूज़ 18 की रिपोर्ट के अनुसार, वर्जीनिया के ईस्टर्न डिस्ट्रिक्ट की अटॉर्नी लिंडसे हॉलिगन ने बताया कि 64 वर्षीय टेलिस को राष्ट्रीय रक्षा सूचना (National Defense Information) की अवैध रूप से ‘रिटेंशन’ यानी अपने पास रखने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है. अमेरिकी कानून 18 U.S.C. § 793(e) के तहत यह अपराध है. अगर टेलिस दोषी पाए जाते हैं, तो उन्हें 10 साल की जेल, $2.5 लाख डॉलर जुर्माना और संपत्ति की जब्ती जैसी सजा हो सकती है. अदालत ने स्पष्ट किया है कि यह मामला अमेरिकी सुरक्षा के लिए “गंभीर खतरे” जैसा है.

कौन हैं एश्ले टेलिस?

भारत के मुंबई में जन्मे एश्ले टेलिस अमेरिकी कूटनीति और रणनीति जगत का एक बड़ा नाम रहे हैं. उन्होंने दो दशकों से अधिक समय तक अमेरिकी विदेश विभाग (US State Department) में बतौर वरिष्ठ सलाहकार काम किया. वे भारत-अमेरिका सिविल न्यूक्लियर डील (2008) के आर्किटेक्ट माने जाते हैं, जिसने दोनों देशों के रिश्तों को नई ऊंचाई दी थी. टेलिस ने जॉर्ज डब्ल्यू. बुश और डोनाल्ड ट्रंप दोनों प्रशासन में रणनीतिक सलाहकार के तौर पर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

क्या है पूरा मामला?

अमेरिकी अदालत में दाखिल शपथपत्र (affidavit) के मुताबिक, टेलिस ने सितंबर 2022 से सितंबर 2025 के बीच चीन के सरकारी अधिकारियों से कई बार मुलाकात की. यह मीटिंग्स फेयरफैक्स, वर्जीनिया के एक रेस्टोरेंट में हुईं. दस्तावेज़ों के अनुसार, उन्हें आखिरी बार एक लाल रंग का गिफ्ट बैग लेते देखा गया था और वे एक मनीला फाइल लेकर आए थे, जो वापसी में उनके पास नहीं थी. यह भी दावा किया गया है कि उन बैठकों में ईरान-चीन रिश्ते और अमेरिका-पाकिस्तान संबंधों पर चर्चा हुई थी.

एक समय अमेरिकी नीतियों के प्रमुख सलाहकार

टेलिस सिर्फ एक अकादमिक नहीं थे, बल्कि यूएस थिंक टैंक ‘कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस’ से भी जुड़े रहे हैं. उन्होंने कई बार भारत-अमेरिका संबंधों पर महत्वपूर्ण लेख लिखे और रक्षा सहयोग को मजबूत करने की वकालत की. 2025 में उन्होंने ट्रंप प्रशासन की भारत नीति पर भी सलाह दी थी, जब अमेरिका ने भारत पर 50% टैरिफ लगाया था. टेलिस ने तब कहा था कि राष्ट्रपति ट्रंप “खुद को भारत-पाक विवाद के सुलझाने वाले” के रूप में दिखाना चाहते थे, लेकिन उन्हें उस श्रेय से वंचित रखा गया.

मिले एन्क्रिप्टेड चैट रिकॉर्ड

अमेरिकी न्याय विभाग (DoJ) ने स्पष्ट किया है कि फिलहाल यह सिर्फ शुरुआती गिरफ्तारी है. अब एफबीआई और रक्षा खुफिया एजेंसी (DIA) यह जांच करेगी कि क्या टेलिस ने वास्तव में क्लासिफाइड फाइल्स चीन को सौंपीं या केवल संपर्क रखा. उनकी लैपटॉप, ईमेल कम्युनिकेशन और फंडिंग सोर्सेस की भी जांच की जा रही है. सूत्रों का कहना है कि उनके और एक चीनी राजनयिक के बीच लगातार एन्क्रिप्टेड चैट रिकॉर्ड मिले हैं.

भारत के लिए क्यों मायने रखता है यह मामला

भारत के दृष्टिकोण से यह गिरफ्तारी बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि एश्ले टेलिस भारत-अमेरिका रणनीतिक साझेदारी के प्रमुख चेहरों में से एक थे. उन्होंने न केवल सिविल न्यूक्लियर डील में अहम भूमिका निभाई, बल्कि भारत को अमेरिकी रक्षा नीति के “विश्वसनीय सहयोगी” के रूप में पेश करने में भी योगदान दिया. ऐसे में उनका नाम जासूसी से जुड़ना भारत के लिए भी असहज स्थिति पैदा करता है.

गिरफ़्तारी को लेकर छिड़ी बहस

अमेरिकी मीडिया में इस गिरफ्तारी को लेकर बहस छिड़ गई है. कुछ विश्लेषक इसे “राजनीतिक प्रेरित कार्रवाई” बता रहे हैं, जबकि कई विशेषज्ञ मानते हैं कि यह मामला वाकई चीनी जासूसी नेटवर्क के विस्तार से जुड़ा है. अगर आरोप साबित होते हैं, तो यह अमेरिका-चीन संबंधों में एक और झटका साबित होगा और साथ ही भारत-अमेरिका रक्षा सहयोग पर भी इसका असर पड़ सकता है.

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