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गृहयुद्ध की राख से उठा नेता, कभी था आतंकवादी आज है देश का राष्ट्रपति; जानें कौन हैं अहमद अल-शरा

कभी अल कायदा से जुड़े और अमेरिका द्वारा वांछित रहे अहमद अल शरा आज सीरिया के राष्ट्रपति हैं. उन्होंने असद शासन को उखाड़ फेंका, कट्टरपंथ से दूरी बनाई और अब बहुलवाद की बात कर रहे हैं. लेकिन क्या उनका बदलाव असली है या सिर्फ छवि सुधारने की कोशिश?

गृहयुद्ध की राख से उठा नेता, कभी था आतंकवादी आज है देश का राष्ट्रपति; जानें कौन हैं अहमद अल-शरा
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नवनीत कुमार
Curated By: नवनीत कुमार

Published on: 15 May 2025 2:56 PM

सीरिया दशकों की तानाशाही, खून-खराबे और बर्बादी से जूझता एक ऐसा देश है, जहां अब एक नई राजनीतिक सुबह की उम्मीद की जा रही है. इसकी अगुवाई कर रहे हैं अहमद अल शराआ, एक ऐसे नेता जिन्होंने कभी खुद विद्रोह की अगुवाई की थी.

वे अब उन संस्थानों की कमान संभाल रहे हैं जिन्हें उन्होंने कभी उखाड़ फेंकने की कसम खाई थी. दमिश्क की सड़कों पर अब उनके नाम की चर्चा है, और उनके कंधों पर युद्ध-वितरित राष्ट्र के पुनर्निर्माण की जिम्मेदारी है.

कौन हैं अहमद अल शरा?

1982 में जन्मे अहमद अल शराआ का परिवार गोलान हाइट्स से विस्थापित होकर सीरिया आया था. मध्यम वर्गीय पृष्ठभूमि से आने वाले शराआ की सोच 2000 की फिलिस्तीनी इंतिफादा और 9/11 जैसे वैश्विक घटनाक्रमों से प्रभावित हुई. 2003 में उन्होंने अमेरिकी आक्रमण के खिलाफ लड़ने के लिए इराक का रुख किया, जहां वे अल कायदा से जुड़े और अबू ग़रीब जेल में भी बंद रहे. यहीं से उनके चरमपंथ की यात्रा शुरू हुई थी, जो बाद में उन्हें HTS तक ले गई.

विद्रोह की राह और अल कायदा से संबंध

2011 में सीरिया में जब असद शासन के खिलाफ जनविद्रोह भड़का, तो अहमद अल शराआ ने नुसरा फ्रंट नामक संगठन की स्थापना की, जिसे अमेरिका ने आतंकी संगठन घोषित किया। उन्होंने आईएसआईएस के साथ असहमति जताते हुए अपने गुट को स्वतंत्र रखा और फिर उसका नाम बदलकर 'जबात फतेह अल-शाम' तथा बाद में 'हयात तहरीर अल-शाम' (HTS) रखा. इस संगठन ने इदलिब जैसे क्षेत्रों में सत्ता का नियंत्रण हासिल किया और एक मजबूत सैन्य ताकत के रूप में उभरा.

एक नई छवि की तलाश

2016 के बाद शराआ ने कट्टरपंथ से दूरी बनानी शुरू की. उन्होंने अपना नाम अबू मोहम्मद अल जोलानी से बदलकर असली नाम अपना लिया. उन्होंने सैन्य वर्दी छोड़ सूट पहनना शुरू किया और धार्मिक सहिष्णुता, बहुलवाद की बात करने लगे. यह एक नया राजनीतिक चेहरा था, जो खुद को विश्व समुदाय के लिए स्वीकार्य बनाने की कोशिश कर रहा था. उन्होंने सऊदी अरब की तरह 'नरम इस्लामीकरण' का रास्ता अपनाने की बात की.

अंतरराष्ट्रीय छवि और अमेरिकी संबंधों की पहल

2021 में उन्होंने पहली बार अमेरिकी पत्रकार को इंटरव्यू दिया, जिसमें उन्होंने खुद को आतंकवाद के खतरे से मुक्त बताने की कोशिश की. उन्होंने पश्चिमी देशों से प्रतिबंध हटाने की मांग की और कहा कि उनका संगठन अब अंतरराष्ट्रीय हिंसा से परहेज करता है. मई 2025 में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प से मुलाकात में, शराआ ने खुद को एक कूटनीतिक खिलाड़ी के रूप में प्रस्तुत किया. वही व्यक्ति, जिसके सिर पर कभी अमेरिका ने $10 मिलियन का इनाम रखा था.

सत्ता की चढ़ाई और असद का पतन

दिसंबर 2024 में शराआ के नेतृत्व में उत्तरी सीरिया से शुरू हुआ आक्रमण दमिश्क तक पहुंचा. बशर अल असद की सत्ता ढह गई और उमय्यद मस्जिद से दिए गए भाषण में शराआ ने खुद को "इस्लामी राष्ट्र की जीत" का प्रतीक बताया. एक अंतरिम सरकार बनाई गई, जिसकी बागडोर अब उनके हाथों में है. लेकिन सत्ता में आने के बाद असल परीक्षा शुरू हुई. क्या वह लोकतांत्रिक मूल्यों को अपनाएंगे या सिर्फ एक और मुखौटा पहनेंगे?

चुनौतियां और विरोधाभास

शराआ की सरकार अभी भी इजरायली हमलों, सांप्रदायिक संघर्षों और आंतरिक अस्थिरता से जूझ रही है. उनकी नीतियों को लेकर मिश्रित प्रतिक्रियाएं हैं. कुछ उन्हें देश का उद्धारक मानते हैं, तो कुछ उन्हें एक बदले हुए चरमपंथी के रूप में ही देखते हैं. उनके अतीत की छाया अभी भी उनके वर्तमान को प्रभावित करती है. अब सवाल यह है कि क्या वे सचमुच बदल चुके हैं या यह सब सिर्फ अंतरराष्ट्रीय वैधता हासिल करने की एक रणनीति है?

अमेरिका की पांच शर्तें

राष्ट्रपति ट्रम्प ने उनसे इजरायल के साथ अब्राहम समझौते पर हस्ताक्षर, विदेशी आतंकियों को निष्कासन, फिलिस्तीनी उग्रवादियों को निर्वासन, आईएसआईएस के पुनरुत्थान को रोकने और जेलों की जिम्मेदारी संभालने जैसे पांच प्रमुख वादे मांगे हैं. इन शर्तों को मानना या ठुकराना शराआ के भविष्य की दिशा तय करेगा. आज शराआ सिर्फ एक नेता नहीं, बल्कि एक प्रतीक हैं, सीरिया के नए युग का, जिसमें संघर्ष, सत्ता और पुनरुत्थान की गाथा लिखी जा रही है.

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