CPEC की हर ईंट हमारी बर्बादी की कहानी है... बलूच विद्रोही बोले- पाक सेना से नहीं डरते हम, ग्वादर में ही टूटेगा चीन का सपना
बलूचिस्तान में आज़ादी की मांग अब महज नारा नहीं, बल्कि ज़मीन पर दिखती हकीकत बनती जा रही है. बलूच विद्रोही न सिर्फ़ पाकिस्तान सेना पर लगातार हमले तेज कर रहे हैं, बल्कि खुलेआम आज़ादी की घोषणा करने लगे हैं. अगर यह क्षेत्र अलग हो गया, तो पाकिस्तान का भूगोल ही नहीं, उसकी आर्थिक रीढ़ भी टूट जाएगी. चीन का बहुचर्चित CPEC प्रोजेक्ट सीधा बलूचिस्तान से होकर गुजरता है. ऐसे में बलूचिस्तान की अस्थिरता चीन के पूरे 'वन बेल्ट वन रोड' सपने पर पानी फेर सकती है.

Balochistan freedom movement, China OBOR Gwadar under threat : चीन ने ग्वादर में सड़कें नहीं बनाई, उसने हमारे क़ब्रिस्तान के रास्ते बनाए! CPEC हमारे संसाधनों की लूटमार है. हमारा कोयला, हमारी जमीन, हमारी बंदरगाह… सब कुछ हथियाने की साज़िश है... लेकिन अब हर कन्वॉय, हर पाइपलाइन, हमारे गुस्से से गुज़रेगी. 75 साल से हमें सिर्फ़ गोलियां मिलीं… पानी, स्कूल, अस्पताल नहीं, सिर्फ़ जुल्म मिला. हम पाकिस्तानी नहीं थे… और ना कभी बनेंगे. हम बलूच हैं… और हम अपनी ज़मीन की आजादी लेकर रहेंगे... ये शब्द हमारे नहीं, बलूच लोगों के हैं, जो पाकिस्तान और चीन के जुल्मोसितम से परेशान हैं और अपनी आजादी के लिए लड़ रहे हैं... इसमें बड़ा घटनाक्रम तब सामने आया, जब बलूचों ने पाकिस्तान से अपनी आजादी की घोषणा की और कहा कि बलूचिस्तान अब एक अलग मुल्क है. यही नहीं, उन्होंने संयुक्त राष्ट्र और भारत से बलूचिस्तान को मान्यता देने की भी अपील की.
ऐसे में सवाल उठता है कि अगर बलूचिस्तान पाकिस्तान से अलग हो गया...तो क्या बचेगा पाकिस्तान में? और क्या चीन का अरबों डॉलर का सपना CPEC चकनाचूर हो जाएगा? बलूचिस्तान, वो इलाका है, जो पाकिस्तान का 44% हिस्सा है, लेकिन खुद को पाकिस्तानी नहीं मानता. यहां अब सिर्फ़ नारे नहीं, AK-47 और बमों से पाकिस्तानी सेना को जवाब दिया जा रहा है... बलूच लिबरेशन आर्मी और अन्य संगठनों ने खुलेआम आज़ादी की घोषणा कर दी है.
CPEC में चीन ने लगाए 60 अरब डॉलर
यही बलूचिस्तान है, जहां से गुजरता है चीन का CPEC (China–Pakistan Economic Corridor)... एक ऐसा प्रोजेक्ट, जिसमें चीन ने करीब 60 अरब डॉलर लगाए हैं. इस प्रोजेक्ट से उसकी अरब सागर तक सीधी पहुंच हो गई है. ग्वादर पोर्ट, चीन का व्यापारिक गेटवे बन गया है. अब बलूच विद्रोही CPEC को 'कब्जे का रास्ता' मानते हैं. उन्होंने चीनी प्रोजेक्ट्स पर हमले तेज कर दिए हैं.
बलूच विद्रोहियों ने बढ़ाई चीन की टेंशन
बलूच विद्रोहियों के हमले से चीन की चिंता बढ़ गई है और पाकिस्तान की कमर भी टूटती दिख रही है. अंतरराष्ट्रीय मंच पर बलूचिस्तान की मांग अब और मुखर हो गई है. अगर बलूचिस्तान अलग हुआ तो पाकिस्तान न सिर्फ़ एक भूगोल, बल्कि आर्थिक और रणनीतिक पहचान भी खो देगा... और चीन का 'वन बेल्ट वन रोड' सपना भी बलूच सरज़मीं पर बिखर जाएगा.
बलूच विद्रोह को कवर कर रहा अंतरराष्ट्रीय मीडिया
बलूचिस्तान की आजादी सिर्फ पाकिस्तान की नहीं, अब चीन, अमेरिका और अरब देशों की टेंशन भी बन चुकी है. अंतरराष्ट्रीय मंच पर बदलाव शुरू हो चुका है. यूरोपीय संसद और अमेरिकी थिंक टैंक्स अब बलूच मुद्दे को मानवाधिकार और आत्मनिर्णय के अधिकार से जोड़कर देख रहे हैं. अंतरराष्ट्रीय मीडिया बलूच विद्रोह को अब एक ‘स्वतंत्रता संग्राम’ की तरह कवर कर रहा है.
चीन का CPEC दांव पर
चीन का CPEC दांव पर है. ग्वादर पोर्ट के ज़रिए चीन चाहता है कि वह अरब सागर तक सीधी पहुंच बना ले, लेकिन अब बलूच विद्रोही CPEC को 'कॉलोनियल प्रोजेक्ट' करार देकर लगातार हमला कर रहे हैं. चीनी इंजीनियरों और काफिलों पर आत्मघाती हमले CPEC को डगमगाने लगे हैं. चीन अब दोहरे दबाव में है- अपने निवेश की सुरक्षा और पाकिस्तान पर निर्भरता की अस्थिरता...
पाकिस्तान पर छाया तिहरा संकट
पाकिस्तान के लिए यह संकट तिहरा है. सेना की साख गिर रही है. बलूचिस्तान में हार की खबरें आम होती जा रही हैं. राजनीतिक नेतृत्व बिखरा हुआ है. इस्लामाबाद में स्थिरता नहीं है. आर्थिक स्थिति चरमराई हुई है. IMF की रिपोर्टें दिखा रही हैं कि पाकिस्तान घाटे और महंगाई के जाल में फंसा है.
कमजोर पड़ जाएगा पाकिस्तान का कश्मीर रुख
अगर दुनिया बलूचिस्तान को 'अधिकृत क्षेत्र' मानने लगी, तो पाकिस्तान का कश्मीर रुख भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कमजोर पड़ जाएगा... और अगर चीन को लगा कि पाकिस्तान असफल हो रहा है तो CPEC, और शायद खुद चीन की OBOR रणनीति, दम तोड़ देगी.
जियोपॉलिटिकल अखाड़ा बनता जा रहा बलूचिस्तान
बलूचिस्तान अब सिर्फ पाकिस्तान की घरेलू समस्या नहीं, बल्कि ये बनता जा रहा है दुनिया की बड़ी ताकतों का अगला जियोपॉलिटिकल अखाड़ा... बलूचिस्तान की भौगोलिक स्थिति इसे बेहद रणनीतिक बनाती है. यह ईरान, अफगानिस्तान और अरब सागर से सटा हुआ है. अगर यह स्वतंत्र हो गया, तो एक नया मुक्त समुद्री देश बन सकता है, जिससे भारत, अमेरिका और अरब देश व्यापारिक और सैन्य सहयोग बढ़ा सकते हैं.
आक्रामक होती दिख रही भारत की नीति
भारत की नीति अब धीरे-धीरे आक्रामक होती दिख रही है. भारत में बलूच एक्टिविस्ट्स को मंच मिल रहा है. संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बलूच मुद्दा उठाने की मांग तेज हो रही है. CPEC और ग्वादर को लेकर भारत पहले ही आपत्ति जता चुका है. अमेरिका भी चीन के OBOR के मुकाबले नए विकल्प ढूंढ़ रहा है. बलूचिस्तान अगर अलग होता है, तो वहां नौसैनिक अड्डा, लॉजिस्टिक बेस, और ऊर्जा पाइपलाइन कनेक्शन जैसे विकल्प खुले होंगे. पश्चिमी दुनिया बलूच विद्रोह को चीन पर कूटनीतिक प्रहार के रूप में देख सकती है. चीन की नई सुरक्षा रणनीति में अब दो चीज़ें उभर रही हैं- चीन अब अपने इंजीनियरों और परियोजनाओं की सुरक्षा निजी सैन्य बलों से करवा रहा है... और दूसरा, वह पाकिस्तान से अलग अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क तैयार करने की कोशिश कर रहा है.
टूट जाएगा पाकिस्तान
बलूचिस्तान की आजादी का सपना अब क्षेत्रीय नहीं, वैश्विक रणनीतिक संतुलन को चुनौती बनता जा रहा है. अगर बलूचों की जीत हुई, तो पाकिस्तान टूटेगा... चीन का CPEC डूबेगा...और दक्षिण एशिया में नई राजनीतिक सीमा रेखाएं खिंच जाएंगी.
आज हर बलूच के मुंह से सिर्फ यही शब्द निकल रहे हैं...
हम गोली से नहीं, हक से लड़ रहे हैं... हम आतंकवादी नहीं, अपनी मिट्टी के रक्षक हैं. पाकिस्तानी सेना हमें दबा नहीं सकती... अब हम हर चौकी पर, हर गाड़ी पर, बलूचिस्तान की आज़ादी की मोहर लगा रहे हैं. हमारी आवाज़ अब सिर्फ़ पहाड़ों में नहीं गूंज रही, अब यह जिनेवा, दिल्ली, वाशिंगटन और लंदन तक पहुंच गई है. बलूचिस्तान आजाद होगा, क्योंकि यह लड़ाई अब सिर्फ़ हमारे लिए नहीं, यह हर उस कौम की है, जो दहशत के झंडे के नीचे नहीं जीना चाहती.
पाकिस्तान का भूगोल ही नहीं, उसकी आर्थिक रीढ़ भी टूट जाएगी
कुल मिलाकर, बलूचिस्तान में आज़ादी की मांग अब महज नारा नहीं, बल्कि ज़मीन पर दिखती हकीकत बनती जा रही है. बलूच विद्रोही न सिर्फ़ पाकिस्तान सेना पर लगातार हमले तेज कर रहे हैं, बल्कि खुलेआम आज़ादी की घोषणा करने लगे हैं. अगर यह क्षेत्र अलग हो गया, तो पाकिस्तान का भूगोल ही नहीं, उसकी आर्थिक रीढ़ भी टूट जाएगी. चीन का बहुचर्चित CPEC प्रोजेक्ट, जो ग्वादर पोर्ट के जरिए अरब सागर तक पहुंच बनाना चाहता है, सीधा बलूचिस्तान से होकर गुजरता है. ऐसे में बलूचिस्तान की अस्थिरता चीन के पूरे 'वन बेल्ट वन रोड' सपने पर पानी फेर सकती है.