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क्‍या है Abraham Accord? अरब-इज़राइल दुश्मनी को खत्म करने की अमेरिका की सबसे बड़ी डिप्लोमैटिक चाल

अब्राहम अकॉर्ड के ज़रिए अमेरिका ने दशकों पुरानी अरब-इज़राइल दुश्मनी को खत्म करने की कोशिश की. UAE, बहरीन, मोरक्को और सूडान पहले ही जुड़ चुके हैं. सऊदी अरब की भागीदारी से यह समझौता पूरी मुस्लिम दुनिया की नीति बदल सकता है. यह सिर्फ कूटनीति नहीं, बल्कि मध्य पूर्व की राजनीति और इज़राइल की वैश्विक स्थिति को बदलने वाला प्रयोग है.

क्‍या है Abraham Accord? अरब-इज़राइल दुश्मनी को खत्म करने की अमेरिका की सबसे बड़ी डिप्लोमैटिक चाल
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नवनीत कुमार
Edited By: नवनीत कुमार

Published on: 14 May 2025 11:55 AM

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर मध्य पूर्व (West Asia) की राजनीति में हलचल लाने की कोशिश कर रहे हैं. इस बार उनकी नजर सऊदी अरब और इज़राइल के बीच 'अब्राहम अकॉर्ड' के ज़रिए शांति और दोस्ती का पुल बनाने पर है. अगर यह हो गया, तो यह पूरे मुस्लिम विश्व की राजनीति को हिला सकता है.

अब्राहम अकॉर्ड सिर्फ एक शांति समझौता नहीं, बल्कि एक भूराजनीतिक प्रयोग है जो अरब-यहूदी संबंधों को नई दिशा दे रहा है. ट्रंप अगर इसमें सऊदी को भी शामिल करवा लेते हैं, तो यह न सिर्फ उनकी बड़ी कूटनीतिक जीत होगी, बल्कि इज़राइल और मुस्लिम वर्ल्ड के रिश्तों का नया अध्याय भी होगा.

क्या है अब्राहम अकॉर्ड?

अब्राहम अकॉर्ड (Abraham Accord) 21वीं सदी के अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक इतिहास का एक ऐसा समझौता है जिसने दशकों पुराने अरब-इज़राइल तनाव की परिभाषा बदल दी. यह समझौता अमेरिका की मध्यस्थता में सितंबर 2020 में हुआ था, जिसका उद्देश्य था इज़राइल और प्रमुख अरब देशों के बीच औपचारिक और शांतिपूर्ण संबंध स्थापित करना. दशकों तक इज़राइल को अरब दुनिया में बहिष्कृत कर रखा गया था. अरब लीग के कई देशों ने 1948 में इज़राइल की स्थापना के बाद से ही उससे किसी भी तरह के संबंधों से इनकार कर रखा था.

लेकिन अब्राहम अकॉर्ड ने इस दशकों पुराने बायकॉट को तोड़ दिया. इसकी शुरुआत संयुक्त अरब अमीरात (UAE) और बहरीन से हुई, जिन्होंने इज़राइल के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किए और अमेरिका में व्हाइट हाउस में एक ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किए. इसके बाद मोरक्को और सूडान जैसे देश भी इस पहल में शामिल हुए. यह समझौता सिर्फ एक राजनीतिक कागज़ी दस्तावेज नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक मोड़ है जहां आर्थिक सहयोग, तकनीकी साझेदारी, सैन्य सहयोग और सांस्कृतिक संपर्कों के ज़रिए मध्य पूर्व की तस्वीर बदली जा रही है.

इस समझौते को 'अब्राहम' नाम इसलिए दिया गया क्योंकि अब्राहम तीनों अब्राहमिक धर्मों यहूदी, ईसाई और इस्लाम में एक साझा पैगंबर माने जाते हैं. यानी यह समझौता धर्म, इतिहास और राजनीति की उस खाई को भरने की कोशिश है जो दशकों से अरब और यहूदी दुनिया के बीच खिंची हुई थी.

कुछ खास बातें

  • शुरुआत: 15 सितंबर 2020 को व्हाइट हाउस में इज़राइल, संयुक्त अरब अमीरात (UAE) और बहरीन ने समझौता किया
  • बाद में जुड़े देश: इसके बाद मोरक्को और सूडान ने भी इज़राइल को मान्यता दी
  • नाम क्यों 'अब्राहम'? अब्राहम यहूदी, ईसाई और इस्लाम—तीनों धर्मों में माने जाते हैं, इसलिए यह नाम शांति और साझी विरासत का प्रतीक माना गया

ट्रंप क्यों चाहते हैं सऊदी अरब को भी इसमें शामिल करना?

डोनाल्ड ट्रंप की योजना है कि अगर सऊदी अरब इस समझौते में शामिल हो जाए, तो यह अब्राहम अकॉर्ड की ‘पूर्ण सफलता’ होगी. सऊदी अरब मुस्लिम दुनिया का नेतृत्वकर्ता देश है और उसके बाद पाकिस्तान, इंडोनेशिया, बांग्लादेश जैसे देश भी इज़राइल को मान्यता दे सकते हैं. इससे इज़राइल की वैश्विक वैधता और सुरक्षा दोनों मजबूत होंगी. ट्रंप इसे अपनी विदेश नीति की सबसे बड़ी जीत के रूप में देखना चाहते हैं, खासकर अगर वे दोबारा राष्ट्रपति बनते हैं.

क्यों नहीं जुड़ा अभी तक सऊदी अरब?

हालांकि UAE और बहरीन जैसे देशों ने इज़राइल से संबंध बनाए, लेकिन सऊदी अरब अब तक इससे दूर रहा है. सऊदी की साफ शर्त है, "जब तक फिलिस्तीन को स्वतंत्र राज्य नहीं मिलेगा, तब तक इज़राइल को मान्यता नहीं मिलेगी." 2023 में जब इज़राइल और सऊदी के बीच संबंध बनने की संभावना थी, तभी हमास का हमला हुआ और गाज़ा युद्ध शुरू हो गया. फिलिस्तीनी नागरिकों पर हो रहे बमबारी के बीच सऊदी अरब पीछे हट गया.

क्यों अहम है सऊदी का शामिल होना?

सऊदी अरब अगर इज़राइल को मान्यता देता है, तो इसका सीधा असर मुस्लिम देशों की नीति पर पड़ेगा. पाकिस्तान, मलेशिया, इंडोनेशिया, बांग्लादेश, अल्जीरिया और लीबिया जैसे देशों पर दबाव बनेगा कि वे भी इज़राइल को मान्यता दें. यह अमेरिका के लिए भी रणनीतिक जीत होगी, जिससे पश्चिम एशिया में शांति की संभावना बनेगी. इज़राइल के लिए सऊदी की मान्यता मतलब तेल, सुरक्षा और भू-राजनीतिक समर्थन का एक बड़ा स्रोत.

अभी की स्थिति क्या है?

गाज़ा युद्ध के चलते सऊदी फिलहाल सतर्क है. लेकिन अगर गाज़ा में सीज़फायर हो जाता है और अमेरिका कोई 'मध्य रास्ता' निकालता है (जैसे फिलिस्तीन को कुछ विशेष अधिकार देना), तो अब्राहम अकॉर्ड की दूसरी किस्त में सऊदी की एंट्री संभव है. ट्रंप इसे अपने चुनावी एजेंडे में शामिल कर सकते हैं, "मैंने अरब-इज़राइल दुश्मनी को दोस्ती में बदला."

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