$1000 लो और अमेरिका छोड़ दो! इमिग्रेंट्स के सेल्फ डिपोर्ट के लिए ट्रंप सरकार की नई चाल
अमेरिका में ट्रंप प्रशासन ने अवैध प्रवासियों के लिए नई नीति लागू की है. यदि वे स्वेच्छा से देश छोड़ते हैं तो उन्हें $1000 और यात्रा सहायता दी जाएगी. यह नीति निर्वासन पर होने वाले खर्च को कम करने के उद्देश्य से शुरू की गई है. इसके साथ ही ग्वांतानामो बे में नया प्रवासी केंद्र भी बनाया गया है जो सख्ती का संकेत देता है.

अमेरिका में अवैध रूप से रह रहे अप्रवासियों को अब जबरन नहीं निकाला जाएगा, बल्कि ट्रंप प्रशासन उन्हें पैसों का प्रलोभन देकर खुद ही देश छोड़ने को कह रहा है. $1,000 की रकम और यात्रा सहायता के साथ 'CBP One' ऐप के जरिए यह सेल्फ डिपोर्ट योजना शुरू की गई है. इसे मानवीय दिखने वाली नीति के तौर पर पेश किया जा रहा है, लेकिन इसके पीछे पैसे बचाने और डेपोर्टेशन की 'छवि' को सौम्य बनाने की स्ट्रैटजी है.
होमलैंड सिक्योरिटी के मुताबिक, एक व्यक्ति को जबरन निकालने की औसत लागत $17,000 से ऊपर जाती है, वहीं स्व-निर्वासन की योजना में कुछ ही हज़ार डॉलर खर्च होते हैं. यह तर्क दिया जा रहा है कि इससे करदाताओं के पैसे की बड़ी बचत होगी. लेकिन असल मुद्दा यह है कि इस 'सेल्फ-डिपॉर्ट' अभियान के ज़रिए प्रशासन एक ऐसा सिस्टम बना रहा है जो कानूनी प्रक्रिया और अपील की संभावना को दरकिनार करता है.
डर और लालच का पैकेज
इस योजना को 'सबसे सुरक्षित और किफायती रास्ता' कहा जा रहा है, लेकिन आलोचकों के अनुसार, यह डर और लालच का मिला-जुला पैकेज है. अप्रवासियों को हिरासत और निर्वासन के डर से इस स्कीम में धकेला जा रहा है. यह नीतिगत बदलाव है या सिर्फ आंकड़ों को बेहतर दिखाने का तरीका? इसका जवाब ट्रंप प्रशासन के बयान और इरादों में छिपा है.
आंकड़ों की लड़ाई
जनवरी 2025 में ट्रंप के दोबारा सत्ता में आने के बाद 1.52 लाख लोग निर्वासित किए जा चुके हैं, जो बाइडेन के दौर के मुकाबले थोड़ा कम है. मगर आंकड़ों की यह होड़ असल में प्रवासियों के जीवन से जुड़े संकट को नजरअंदाज करती है. इसमें सवाल यह है कि नीति का उद्देश्य प्रवासियों को सम्मानजनक ढंग से वापस भेजना है या प्रशासन की ‘कड़ी’ छवि बनाना?
ग्वांतानामो से नया संदेश
ट्रंप सरकार ने ग्वांतानामो बे में 30,000 क्षमता वाले प्रवासी केंद्र की घोषणा की है, जो संकेत देता है कि स्व-निर्वासन योजना के समानांतर, कठोर उपाय भी पूरी ताकत से बनाए जा रहे हैं. यह स्पष्ट करता है कि सरकार एक ही साथ 'दंड और प्रलोभन' दोनों हथियारों का इस्तेमाल कर रही है जो इमिग्रेशन नीति को महज प्रशासनिक मुद्दा नहीं, बल्कि चुनावी रणनीति में बदल देता है.