डॉलर हिला तो हिल जाएगी दुनिया... ट्रंप ने BRICS का उड़ाया मजाक, बार-बार क्यों दोहरा रहे 10% टैरिफ की बात?
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ब्रिक्स देशों पर 10% टैरिफ लगाने की चेतावनी देते हुए कहा कि यह गठबंधन तेजी से कमजोर हो रहा है. उन्होंने डॉलर की वैश्विक स्थिति को चुनौती देने के प्रयासों को नाकाम करने का श्रेय खुद को दिया. ट्रंप ने कहा कि डॉलर का पतन वर्ल्ड वॉर हारने जैसा होगा और वे ऐसा कभी नहीं होने देंगे.

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर वैश्विक मंच पर आक्रामक रुख अपनाते हुए ब्रिक्स समूह को 'तेजी से लुप्त हो रहा छोटा संगठन' करार दिया. उन्होंने न केवल इसकी अहमियत को खारिज किया बल्कि इसके सदस्य देशों पर 10 प्रतिशत टैरिफ लगाने की धमकी भी दोहराई. ट्रंप का ये बयान अमेरिकी डॉलर की वैश्विक स्थिति को बचाए रखने के इरादे से सामने आया.
अपने संबोधन में ट्रंप ने अमेरिकी डॉलर को ‘विश्व युद्ध जीतने का प्रतीक’ बताया. उनका दावा है कि डॉलर अगर वैश्विक आरक्षित मुद्रा का दर्जा खो देता है, तो यह अमेरिका के लिए किसी युद्ध में हार से कम नहीं होगा. इसी कारण वे ब्रिक्स जैसे किसी भी गठबंधन को अमेरिकी आर्थिक प्रभुत्व के लिए खतरा मानते हैं और खुले तौर पर विरोध कर रहे हैं.
टैरिफ के हथियार से आर्थिक मोर्चेबंदी
ट्रंप ने स्पष्ट किया कि 1 अगस्त से ब्रिक्स देशों पर 10 प्रतिशत टैरिफ की नीति लागू हो जाएगी. उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि यदि ब्रिक्स में कोई नया देश शामिल होता है, तो उस पर भी यही शुल्क लागू होगा. उनके अनुसार, इस ऐलान के अगले ही दिन ब्रिक्स की एक महत्वपूर्ण बैठक हुई, जिसमें 'लगभग कोई नहीं आया' यानी अमेरिका की धमकी का असर दिखा.
‘जीनियस एक्ट’ के बहाने डॉलर को मजबूती
ट्रंप ने जिस मंच से ये बयान दिए, वह था उनके ‘जीनियस एक्ट’ पर हस्ताक्षर का अवसर. इस अधिनियम को उन्होंने अमेरिकी अर्थव्यवस्था और डॉलर की स्थिति को और मजबूत करने वाला कदम बताया. ट्रंप का इशारा था कि इस कानून के जरिए वह ब्रिक्स जैसी गठबंधनों की चुनौती को पहले ही निष्क्रिय कर चुके हैं.
ब्रिक्स का विस्तार और ट्रंप की बेचैनी
ब्रिक्स का गठन 2009 में हुआ था, जिसमें ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका जैसे उभरते देश शामिल थे. अब 2024-25 में इसका विस्तार हो रहा है और इसमें मिस्र, सऊदी अरब, ईरान, यूएई, इंडोनेशिया और इथियोपिया जैसे देश भी शामिल होने जा रहे हैं. यह विस्तार ट्रंप की बेचैनी का प्रमुख कारण माना जा रहा है क्योंकि इससे अमेरिका के एकाधिकार को वास्तविक चुनौती मिल सकती है.
ट्रंप की नीतियों से बढ़ी चिंता
जहां एक ओर ट्रंप खुद को अमेरिकी हितों का रक्षक बता रहे हैं, वहीं दूसरी ओर उनकी नीतियों से घरेलू असंतोष भी बढ़ा है. टैरिफ नीति से अमेरिका में महंगाई और स्वास्थ्य सेवाओं में कटौती हो रही है. एक हालिया सर्वे के अनुसार, ट्रंप की आर्थिक नीति के कारण अमेरिका में 1.1 करोड़ लोग हेल्थ इंश्योरेंस से बाहर हो सकते हैं, जिससे उनकी लोकप्रियता को झटका लग सकता है.
वैश्विक मंच पर अमेरिका बनाम ब्रिक्स
ट्रंप का ब्रिक्स विरोध सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि एक राजनीतिक-सामरिक रणनीति भी है. वह अमेरिका को एकमात्र वैश्विक शक्ति के रूप में देखने के पक्षधर हैं, जबकि ब्रिक्स जैसे संगठन बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की वकालत करते हैं. ऐसे में यह टकराव सिर्फ डॉलर बनाम युआन या रूबल का नहीं, बल्कि नेतृत्व बनाम सहयोग की विचारधारा का भी है.
क्या ट्रंप की रणनीति सफल होगी?
अब बड़ा सवाल यह है कि क्या ट्रंप की टैरिफ नीति और आक्रामक बयानबाज़ी ब्रिक्स के विस्तार और असर को रोक पाएगी? फिलहाल तो ब्रिक्स में नई सदस्यता और डॉलर-विरोधी मुद्रा विकल्पों की बात हो रही है. ऐसे में ट्रंप की धमकियों से यह समूह पीछे हटेगा या और संगठित होकर सामने आएगा, इसका फैसला वैश्विक अर्थव्यवस्था के भविष्य को तय करेगा.