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Prasat Ta Muen Thom: कंबोडिया का शिव मंदिर क्यों बना थाईलैंड से जंग की वजह? आस्था से सीमा विवाद तक की जानें कहानी!

कंबोडिया का शिव मंदिर (Prasat Ta Muen Thom) कंबोडिया और थाईलैंड की सीमा पर स्थित है. शिव मंदिर को 9वीं से 11वीं सदी के दौरान बनाया गया था. शुरुआती समय में यहां पर भगवान महादेव की पूजा होती थी, लेकिन बाद में यह बौद्ध धार्मिक परिसर में तब्दील हो गया. यह मंदिर दोनों देशों के लिए सिर्फ आस्था का केंद्र ही नहीं बल्कि अब युद्ध की वजह भी बन गया है. जानिए कैसे एक शिव मंदिर बना अंतरराष्ट्रीय तनातनी की वजह.

Prasat Ta Muen Thom: कंबोडिया का शिव मंदिर क्यों बना थाईलैंड से जंग की वजह? आस्था से सीमा विवाद तक की जानें कहानी!
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( Image Source:  Prabhakar Singh Parihar/ @IPrabhakarSP )

कंबोडिया और थाईलैंड की सीमा पर स्थित प्राचीन शिव मंदिर एक बार फिर दोनों देशों के बीच तनाव का कारण बन गया है. नए सिरे से विवाद उस सयम शुरू हुई जब थाईलैंड ने कंबोडिया के सैन्य ठिकानों पर हवाई हमले शुरू कर दिए. इससे पहले दोनों देशों के सैनिकों ने गुरुवार सुबह सीमा के पास एक-दूसरे पर फायरिंग की. कंबोडिया के विदेश मंत्रालय ने आरोप लगाया है कि थाई सैनिकों ने पहले गोली चलाई. जबकि थाईलैंड की सेना ने कहा कि कंबोडिया ने सेना भेजने से पहले एक ड्रोन तैनात किया और लंबी दूरी के BM21 रॉकेटों से गोलीबारी शुरू कर दी.

कैसे भड़का विवाद?

मई 2025 में शिव मंदिर को लेकर एक बार फिर कंबोडिया और थाईलैंड के बीच हालात बिगड़ गए. थाईलैंड ने दावा किया कि कंबोडिया की एक ड्रोन निगरानी गतिविधि को उसकी सीमा में देखा गया, जो उकसावे की कार्रवाई थी. इसके बाद दोनों देशों के बीच रॉकेट फायरिंग और हवाई हमलों की खबरें सामने आईं. थाईलैंड ने F-16 लड़ाकू विमानों का इस्तेमाल भी किया. वहीं कंबोडिया का आरोप है कि थाई सेना ने बिना उकसावे के हमला किया और उनकी सेना ने सिर्फ आत्मरक्षा में कार्रवाई की.

मंदिर का ऐतिहासिक महत्व

Prasat Ta Muen Thom मंदिर दक्षिण कंबोडिया के ओडार मींचेई प्रांत में स्थित है, लेकिन यह बिल्कुल थाईलैंड सीमा के पास है. इसे 11वीं सदी में खमेर साम्राज्य के दौर में भगवान शिव को समर्पित कर बनाया गया था. मंदिर अंगकोर शैली में बना है और इसके अवशेष आज भी भव्यता की कहानी बयां करते हैं.

आस्था बनाम नियंत्रण

शिव मंदिर कंबोडिया की सीमा के अंदर है, लेकिन थाईलैंड की ओर से मंदिर तक पहुंचने का सीधा रास्ता है. थाई सेना ने कई बार यहां अपना नियंत्रण स्थापित करने की कोशिश की और कई बार कंबोडियन फौज ने विरोध किया. साल 2008 के आसपास यह विवाद इतना गहरा हो गया कि दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने आ गईं. मंदिर आस्था का केंद्र है, लेकिन भूगोल और नियंत्रण की लड़ाई इसे एक विवादित जोन बना चुकी है.

वर्तमान स्थिति क्या है?

आज के समय में यह मंदिर कंबोडिया के नियंत्रण में है, लेकिन थाईलैंड ने आसपास की सीमा पर अपनी सैन्य गतिविधियां तेज कर दी है. पर्यटक यहां आने से पहले विशेष इजाजत लेते हैं और सीमा विवाद के कारण यहां कई बार आवाजाही भी रोक दी जाती है.

मंदिर विवाद का इतिहास

यह मंदिर डांगरेक पर्वत श्रृंखला पर स्थित है, जिसे 9वीं से 11वीं सदी के दौरान बनाया गया था. शुरूआती समय में यहां पर भगवान महादेव की पूजा होती थी, लेकिन बाद में यह बौद्ध धार्मिक परिसर में तब्दील हो गया. यह मंदिर उस ऐतिहासिक खमेर साम्राज्य के समय का हिस्सा है, जिसकी सीमाएं आधुनिक कंबोडिया के अलावा थाईलैंड के कुछ हिस्सों तक फैली थीं. इसी आधार पर कंबोडिया दावा करता है कि यह मंदिर उसके क्षेत्र का हिस्सा है. जबकि थाईलैंड का दावा है कि यह उसके सुरीन प्रांत का हिस्सा है और मंदिर पर उसका हक है.

1962 में ICJ ने मंदिर को माना था कंबोडिया का हिस्सा

साल 1962 में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) ने मंदिर को कंबोडिया का हिस्सा माना था, लेकिन थाईलैंड की सेना अब भी आस-पास के क्षेत्र में तैनात है और जमीन के स्वामित्व को लेकर दोनों देशों के बीच विवाद बना हुआ है.

इस समझौते में छिपा है विवाद की जड़

शिव मंदिर को लेकर कंबोडिया और थाईलैंड के बीच की विवाद की जड़ 1904 और 1907 में हुए समझौतों में भी छिपा है. उस समय दोनों देशों पर फ्रांस का नियंत्रण था. 1904 के हुए समझौते में तय किया गया कि दोनों देशों की सीमा, प्राकृतिक वाटरशेड यानी पहाड़ी ढाल के मुताबिक तय होगी लेकिन 1907 में बना नक्शा उस दिशा से हट गया और मंदिर को कंबोडिया का हिस्सा मान लिया गया.

थाईलैंड ने पहले उस नक्शे को स्वीकार कर लिया था, लेकिन 1930 के दशक में थाईलैंड पर इस पर फिर से राजनीति शुरू हो गई और मंदिर को लेकर विरोध तेज होने लगी. ICJ ने 1962 में मंदिर कंबोडिया को सौंप दिया. साल 2013 में ICJ ने यह भी फैसला सुनाया कि मंदिर के आसपास की जमीन भी कंबोडिया की है.

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