भारत-अमेरिका संबंधों में आई दरार! ट्रंप ने 4 बार किया फोन, लेकिन PM मोदी ने नहीं की बात; जर्मन अखबार का बड़ा दावा
जर्मन अख़बार FAZ के मुताबिक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल के हफ्तों में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की चार बार की गई फोन कॉल की कोशिशों को ठुकरा दिया. रिपोर्ट के अनुसार, यह मोदी के गुस्से और सतर्कता दोनों को दिखाता है, खासकर तब जब अमेरिका ने भारत पर 50% टैरिफ लगाए और रूस से तेल खरीदने पर आपत्तियां जताईं. ट्रंप के 'डेड इकॉनमी' बयान और पाकिस्तान के साथ नज़दीकी को लेकर भी भारत में नाराज़गी गहराई.

PM Modi refused Donald Trump Call : जर्मनी के प्रमुख अख़बार Frankfurter Allgemeine Zeitung (FAZ) ने सनसनीखेज़ दावा किया है. अखबार का कहना है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बीते कुछ हफ्तों में कम से कम चार बार भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से फोन पर बात करने की कोशिश की, लेकिन पीएम मोदी ने बातचीत से इनकार कर दिया. रिपोर्ट के अनुसार, यह मोदी के गुस्से की गहराई और उनकी सतर्कता दोनों को दर्शाता है.
ट्रंप प्रशासन ने हाल ही में भारत पर 50% टैरिफ लगाए हैं, जो ब्राज़ील के अलावा किसी भी देश पर सबसे अधिक है. साथ ही, वॉशिंगटन ने रूस से कच्चा तेल खरीदने पर भी भारत को दंडित किया.
पीएम मोदी ने नहीं रिसीव किया ट्रंप का कॉल
जर्मन अख़बार ने लिखा कि ट्रंप का अंदाज़ अक्सर दूसरे देशों की अमेरिकी बाज़ार पर निर्भरता का फ़ायदा उठाने का रहा है, लेकिन पीएम मोदी ने पहले कार्यकाल में भी इसे संतुलित करते हुए सहयोग तो किया, पर भारत के आर्थिक हितों से समझौता नहीं किया. यही वजह है कि जब ट्रंप ने चार बार फोन पर बातचीत करने की कोशिश की, तब उन्होंने कॉल रिसीव नहीं किया.
ट्रंप की 'Dead economy' टिप्पणी पर पीएम मोदी ने क्या कहा?
ट्रंप ने 31 जुलाई को भारत और रूस की साझेदारी पर कटाक्ष करते हुए कहा था, "मुझे परवाह नहीं कि भारत रूस के साथ क्या करता है, वे अपनी ‘मरी हुई अर्थव्यवस्थाओं’ को साथ ले डूब सकते हैं." इसके जवाब में 10 अगस्त को पीएम मोदी ने बिना नाम लिए कहा कि भारत दुनिया की शीर्ष तीन अर्थव्यवस्थाओं में शामिल होने की ओर बढ़ रहा है.
क्यों सतर्क हैं मोदी?
FAZ ने लिखा कि मोदी का सतर्क रहना इसलिए भी स्वाभाविक है क्योंकि ट्रंप पहले वियतनाम के साथ ऐसा कर चुके हैं. एक फोन कॉल में उन्होंने वहां की व्यापार संधि बदल दी और फिर सोशल मीडिया पर खुद ही नई डील की घोषणा कर दी थी. मोदी इस 'जाल' में नहीं फँसना चाहते.
अमेरिका-भारत संबंधों में कड़वाहट
ट्रंप ने हाल ही में पाकिस्तान के आर्मी चीफ जनरल असीम मुनीर को व्हाइट हाउस में वर्किंग डिनर पर बुलाया था, जिसे भारत ने गहरी नाराज़गी के तौर पर देखा. इसके अलावा, ट्रंप का यह दावा कि भारत-पाकिस्तान के बीच हालिया युद्धविराम उनकी मध्यस्थता से हुआ है, भी नई दिल्ली को नागवार गुज़रा. भारत ने इसे बार-बार खारिज करते हुए कहा कि पाकिस्तान की पहल पर हुई सीधी बातचीत के बाद ही संघर्षविराम लागू हुआ था.
भारत-चीन नजदीकी और SCO समिट
रिपोर्ट में कहा गया कि मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाक़ात के बाद से दोनों देशों के बीच तनाव कुछ कम हुआ है. इसी हफ्ते मोदी तियानजिन में होने वाले शंघाई सहयोग संगठन (SCO) सम्मेलन में हिस्सा लेने जा रहे हैं. इससे यह सवाल भी उठ रहा है कि कहीं ट्रंप की नीतियां भारत को चीन की ओर और करीब तो नहीं धकेल रही हैं.
न्यूयॉर्क स्थित India-China Institute के सह-निदेशक मार्क फ़्रेज़ियर के अनुसार, अमेरिका की 'इंडो-पैसिफ़िक स्ट्रैटेजी' विफल हो रही है क्योंकि भारत ने कभी चीन के खिलाफ पूरी तरह अमेरिका का साथ देने का इरादा नहीं किया था. उनका कहना है, “भारत और चीन की रणनीतिक प्राथमिकताएं मिलती हैं. अमेरिका के पीछे हटने से भारत और चीन के साझा हित बढ़ रहे हैं.”
ट्रंप-मोदी के बीच आखिरी कॉल 17 जून को
भारत के विदेश मंत्रालय (MEA) के मुताबिक, मोदी और ट्रंप के बीच आख़िरी बार 17 जून को बातचीत हुई थी, जब ट्रंप ने खुद कॉल का अनुरोध किया था. यह बातचीत करीब 35 मिनट चली. इस दौरान ट्रंप ने पहलगाम आतंकी हमले पर संवेदना व्यक्त की और आतंकवाद के खिलाफ भारत को समर्थन देने की बात कही. हालांकि, भारत ने साफ़ किया कि किसी भी स्तर पर अमेरिका से ट्रेड डील या भारत-पाकिस्तान विवाद में अमेरिकी मध्यस्थता पर बात नहीं हुई. यह पूरा घटनाक्रम दर्शाता है कि मोदी-ट्रंप संबंधों में गहरी दरार आ चुकी है और वॉशिंगटन की रणनीति नई दिल्ली पर असरदार साबित नहीं हो रही.