सिख छात्र ने इस्लामियत और कुरान में 98 नंबर लाकर किया टॉप, लाहौर बोर्ड का रिजल्ट चर्चा में
Lahore Board Result: लौहार में सिख छात्र ने 9वीं कक्षा की परीक्षा में इस्लामियत और कुरान में 100 में से 98 फीसदी नंबर लाकर टॉप किया. कई लोगों ने यह भी टिप्पणी की कि पाकिस्तान में गैर-मुसलमान होने के कारण, उनकी उपलब्धियों के बावजूद, उन्हें उच्च पदों तक पहुंचने में कठिनाई हो सकती है.

Lahore Board Result: भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान में एक सिख समुदाय के लड़के ने कमाल करके दिखा दिया है. दरअसल लाहौर बोर्ड ऑफ इंटरमीडिएट एंड सेकेंडरी एजुकेशन (BISE) 2025 का रिजल्ट जारी कर दिया गया है. इसमें 15 साल के ओंकार सिंह ने 9वीं कक्षा की परीक्षा में शानदार प्रदर्शन किया है.
ओंकार सिंह ने इस्लामियत और कुरान में 100 में से 98 फीसदी नंबर लाकर टॉप किया है. उसके साइंस की परीक्षा में 60 नंबर आए हैं. अब ढोल-नगाड़ों के साथ परिवार ने बच्चे संग खुशी मनाई है. टीचर से लेकर परिवार सभी हैरान हैं कि कैसे सिख होने के बाद भी इस्लामियत और कुरान की इतनी नॉलेज रखना बड़ी बात है.
ओंकार सिंह एग्जाम रिजल्ट
9वीं के छात्र ओंकार सिंह ने परीक्षा में फिजिक्स और केमिस्ट्री में 60-60 नंबर हासिल किए हैं. वहीं बायोलॉजी में 59 अंक हासिल किए. उन्हें सभी विषयों में A+ ग्रेड मिला है. अंग्रेजी में 75, उर्दू में 74 और कुरान शरीफ के अनुवाद में 50 में से 49 अंक प्राप्त किए. सिंह न केवल मेंटली समर्पित हैं बल्कि विविध परंपराओं को समझने और उनका सम्मान करने में भी विश्वास रखते हैं.
इस्लामियत और कुरान में 100 में से 98 अंक आने की बात से सब हैरान हैं. कई लोगों ने यह भी टिप्पणी की कि पाकिस्तान में गैर-मुसलमान होने के कारण, उनकी उपलब्धियों के बावजूद, उन्हें उच्च पदों तक पहुंचने में कठिनाई हो सकती है. कई लोगों ने आलोचना की कि पंजाबी भाषा को पढ़ाया नहीं जाता, बल्कि उर्दू को थोप दिया जाता है.
बता दें कि लाहौर बोर्ड में इस बार 3.8 लाख छात्रों ने परीक्षा दी, जिनमें से 1.38 लाख सफल रहे. वहीं 1.69 लाख फेल हो गए. पासिंग परसेंट केवल 45% रहा. अब एक समारोह में टॉपर्स बच्चों को सम्मानित किया जाएगा.
पंजाबी बोलने पर आपत्ति
पाकिस्तान में पंजाबी बोलने पर विरोध किया जाता है. वहां कि सरकार चाहती है कि सभी उर्दू भाषा का ही बोले और पढ़ें. साल 2015 में कनाडाई-पाकिस्तानी लेखक तारेक फतह ने भी कहा था कि पंजाब विधानसभा में पंजाबी बोलने की अनुमति नहीं है. पाकिस्तान के करोड़ों पंजाबी अपनी ही भाषा पढ़ या लिख नहीं सकते. यह वही नीति थी, जिसने 1971 में बंगालियों पर उर्दू थोपने के कारण पाकिस्तान को बांग्लादेश से अलग करवा दिया.