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ये है यीशु मसीह का असली नाम, लेकिन आपके दिमाग में जो आता है वो नहीं; एक्सपर्ट ने बताई सच्चाई

प्राचीन दुनिया में ज़्यादातर लोगों का कोई सरनेम नहीं होता था जैसा कि हम आज समझते हैं.इसके बजाय उन्हें अन्य तरीकों से पहचाना जाता था, जैसे कि उनके माता-पिता, मूल स्थान या अन्य विशिष्ट विशेषताएं.

ये है यीशु मसीह का असली नाम, लेकिन आपके दिमाग में जो आता है वो नहीं; एक्सपर्ट ने बताई सच्चाई
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( Image Source:  Create By AI )
हेमा पंत
Edited By: हेमा पंत

Updated on: 6 Nov 2025 2:38 PM IST

क्रिश्चियन धर्म में यीशु मसीह की पूजा की जाती है. उन्होंने लोगों के लिए अपनी जान दी थी. न्यूयॉर्क पोस्ट की एक रिपोर्ट ने बताया कि लैंग्वेज और फोनेटिक एक्सपर्ट के अनुसार यीशु मसीह का असली नाम येशु नाजरीन था. ईसाई धर्म में सबसे प्रमुख व्यक्ति होने के नाते यीशु के असली नाम पर सवालिया निशान लगे हुए हैं, जबकि अंग्रेज़ी यहूदिया की भाषा नहीं है.

रोमन साम्राज्य का वह क्षेत्र जहां यीशु और उनके शिष्य रहते थे. इस बात की बहुत संभावना है कि यीशु ने अरामी भाषा में बातचीत की होगी, जो उनके असली नाम के पीछे के कारण को समझा सकता है. चलिए जानते हैं क्या है यीशु मसीह का असली नाम.

गलील क्षेत्र में पले यीशु

यीशु का पालन-पोषण गलील के नाज़रेथ में हुआ था. इस गलील क्षेत्र से बचे हुए पपीरस डॉक्यूमेंट्स से पता चलता है कि यहूदी आबादी के बीच अरामी भाषा आम थी. गोस्पेल के शुरुआती ग्रीक ट्रांसलेशन में भी परमेश्वर के पुत्र द्वारा अरामी भाषा में कुछ वाक्यांश कहे जाने के बारे में बताया है.

क्राइस्ट नहीं था सरनेम

जब यीशु जिंदा थे, तब जीजस के साथ ज नहीं था. ज अक्षर और इसके फोनेटिक केवल यीशु की मौत के 1,500 साल बाद लिखित भाषा में दिखाई देगी. वहीं, क्राइस्ट सरनेम नहीं था, बल्कि एक टाइटल था, जिसका मतलब भगवान का व्यक्ति है. इस सिद्धांत के अनुसार यीशु, प्रभु और सेवियर को येशु कहा जाता होगा, जो उस समय गलील में सबसे आम नामों में से दो थे. उस समय उनका पूरा नाम प्राचीन अरामी के अनुसार येशु नाराज़ीन रहा होगा.

पहले नहीं होते थे सरनेम

चूंकि यीशु को पूरे बाइबल में 'नासरत के यीशु' या 'नाजरीन यीशु' के रूप में दर्शाया गया है. इसलिए संभव है कि उन्होंने इसे येशु नामक अन्य लोगों से खुद को अलग करने के इस्तेमाल किया गया हो. इस पर क्रोएशिया के जाग्रेब विश्वविद्यालय के इतिहासकार डॉ. मार्को मरीना ने कहा कि प्राचीन दुनिया में ज़्यादातर लोगों का कोई सरनेम नहीं होता था जैसा कि हम आज समझते हैं. इसके बजाय उन्हें अन्य तरीकों से पहचाना जाता था, जैसे कि उनके माता-पिता, मूल स्थान या अन्य विशिष्ट विशेषताएं.

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