क्या किसी की बददुआ झेल रहा ईरान? इजरायल से जंग के बीच Atefeh Rajabi Sahaaleh की दर्दनाक कहानी फिर हो रही वायरल
अतेफ़ेह राजाबी सहालेह की ज़िंदगी एक ऐसी क्रूर नाइंसाफ़ी की मिसाल है, जिसने सिर्फ मानवाधिकारों को ही नहीं, बल्कि पूरे अंतरराष्ट्रीय समुदाय को झकझोर कर रख दिया. उसकी दुखद मौत ने यह सवाल उठाने पर मजबूर किया कि क्या आज जो त्रासदी ईरान झेल रहा है, वह उस मासूम बच्ची पर हुए अत्याचार की गूंज है?

पश्चिम एशिया इस समय इतिहास के सबसे खतरनाक मोड़ों में से एक से गुजर रहा है. ईरान और इजरायल के बीच छिड़ा युद्ध अब पूरे क्षेत्र को अपनी चपेट में लेता जा रहा है. शनिवार को ईरान ने इजरायल के उत्तरी इलाकों पर एक साथ कई मिसाइलें दागीं, जिससे वहां सायरन गूंज उठे और अफरा-तफरी मच गई. इजरायली डिफेंस फोर्स (IDF) के अनुसार, वायुसेना लगातार मिसाइलों को इंटरसेप्ट कर रही है और ज़रूरत पड़ने पर जवाबी कार्रवाई भी कर रही है.
इस बीच, खबर यह भी है कि इजरायल के हमलों में ईरान ने अब तक 430 से ज्यादा लोगों को खो दिया है और 3,500 से अधिक घायल हुए हैं. वहीं, एक ईरानी परमाणु वैज्ञानिक इसार तबाताबाई-कमशेह और उनकी पत्नी की मौत ने तनाव को और बढ़ा दिया है. वहीं अमेरिकी हमले के बाद से हालात और बिगड़ते जा रहे हैं. दूसरी ओर, रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने भी अपनी चुप्पी तोड़ी है, लेकिन इजरायल में रह रहे रूसी नागरिकों के चलते तटस्थ रुख अपनाया है. स्थिति हर घंटे भयावह होती जा रही है.
युद्ध जैसे तनावपूर्ण माहौल के बीच सोशल मीडिया पर एक बार फिर 16 वर्षीय अतेफ़ेह राजाबी सहालेह की हृदयविदारक कहानी सुर्खियों में है. यह मासूम लड़की वर्षों पहले ईरान की कठोर और अन्यायपूर्ण न्याय प्रणाली का शिकार बनी थी और उसे बेहद अमानवीय ढंग से फांसी दे दी गई. उसकी दर्दनाक मौत ने उस समय पूरी दुनिया को झकझोर कर रख दिया था. आज, जब ईरान एक बार फिर संकट के दौर से गुजर रहा है, कई लोग इसे उस निर्दोष बच्ची की करुण पुकार और बददुआ का दुष्परिणाम मान रहे हैं.
एक मासूम पर हुए ज़ुल्म ने पूरी दुनिया को झकझोरा
अतेफ़ेह राजाबी सहालेह की ज़िंदगी एक ऐसी क्रूर नाइंसाफ़ी की मिसाल है, जिसने सिर्फ मानवाधिकारों को ही नहीं, बल्कि पूरे अंतरराष्ट्रीय समुदाय को झकझोर कर रख दिया. उसकी दुखद मौत ने यह सवाल उठाने पर मजबूर किया कि क्या आज जो त्रासदी ईरान झेल रहा है, वह उस मासूम बच्ची पर हुए अत्याचार की गूंज है? आइए, उसकी पूरी कहानी को विश्वसनीय स्रोतों के आधार पर समझते हैं.
बचपन में ही टूटी दुनिया: अतीफ़ा की दर्दनाक शुरुआत
बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री के अनुसार, अतेफ़ेह सहालेह का जन्म ईरान के नेका शहर में हुआ था. महज़ पांच साल की उम्र में उसने अपनी मां को एक कार दुर्घटना में खो दिया. कुछ ही समय बाद उसका छोटा भाई नदी में डूबकर चल बसा. इन हादसों के बाद वह अपने वृद्ध दादा-दादी के साथ रहने लगी. उसका पिता नशे की लत से ग्रस्त था और बच्ची की देखभाल करने में असमर्थ था. अतेफ़ेह का बचपन दुःख, अकेलेपन और संघर्षों में बीता - और यही उसकी ज़िंदगी की सबसे दुखद बुनियाद बन गई.
दरिंदगी की शिकार बनी मासूम अतीफ़ा
ईरान की एक शांत सी बस्ती में रहने वाली मासूम अतेफ़ेह की ज़िंदगी एक डरावने दौर में तब बदली, जब उस पर 51 वर्षीय रिटायर्ड रिवॉल्यूशनरी गार्ड अली दराबी की बुरी नज़र पड़ी. बच्ची महज 13-14 साल की थी, जब अली ने उसे बार-बार शिकार बनाना शुरू किया. 'किसी को बताया तो जान से मार दूंगा' जैसी दराबी की धमकियों ने अतेफ़ेह की ज़ुबान सिल दी. डर, शर्म और सामाजिक कलंक के खौफ में डूबी अतेफ़ेह यह दर्द अकेले सहती रही. हालांकि, अत्याचार की एक सीमा होती है. जब दरिंदगी की हदें पार होने लगीं और अतेफ़ेह की हालत बदतर होने लगी, तब उसने अपने पिता को इशारों में कुछ बताने की कोशिश की. शुरुआत में समाज ने, और यहां तक कि उसके अपने लोगों ने भी, उसे चुप करवा दिया. लेकिन आखिरकार, अतेफ़ेह के पिता ने साहस दिखाया और पुलिस में अली दराबी के खिलाफ शिकायत दर्ज कर दी. यह वो पल था जब डर की चुप्पी टूटी और न्याय की उम्मीद जगी.
पुलिस और शरिया व्यवस्था: पीड़िता बनी अपराधी
एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट बताती है कि जिस समय अली दराबी जैसे अपराधी को जेल जाना चाहिए था, उस समय ईरान की शरिया व्यवस्था ने उल्टा अतेफ़ेह को ही कटघरे में खड़ा कर दिया. ईरानी शरिया कानून के तहत, उसे "सतीत्व के खिलाफ अपराध" (Crimes Against Chastity) का दोषी ठहराया गया - यानी वह लड़की जिसने शोषण सहा, उसी पर आरोप लगाया गया कि वह खुद इस जुर्म की वजह बनी. इस कठोर कानून के अनुसार, यदि कोई महिला किसी गैर-मर्द के साथ संबंध में पाई जाती है, तो तब तक दोषी मानी जाती है जब तक वह यह साबित न कर दे कि उसने पुरुष को ललचाया नहीं. नतीजतन, अतेफ़ेह को हिरासत में डाल दिया गया और वहीं उसकी असली यातनाओं की शुरुआत हुई. बीबीसी समेत कई अंतरराष्ट्रीय मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, जेल में अतेफ़ेह पर शारीरिक और यौन उत्पीड़न का सिलसिला जारी रहा. जब उसकी दादी उससे मिलने आईं, तो उन्होंने एक टूटी हुई, सहमी और दर्द से कराहती लड़की को देखा, जिसे इंसाफ की नहीं, बल्कि दरिंदगी की सज़ा मिल रही थी.
कोर्ट की बेरहमी: एक मासूम को फांसी की ओर धकेलना
बीबीसी डॉक्यूमेंट्री के मुताबिक, अतेफ़ेह को जिस न्यायालय में राहत की उम्मीद थी, वहीं उसकी ज़िंदगी का सबसे बड़ा अन्याय हुआ. जज हाजी रेजाई ने अली दराबी को मामूली सज़ा दी, लेकिन अतेफ़ेह को दोषी करार दे दिया. जब अतेफ़ेह ने विरोध जताते हुए अदालत में अपना हिजाब उतारा और चीखते हुए कहा कि असली अपराधी को सज़ा मिलनी चाहिए, तो जज ने इसे अदालत की अवमानना मानकर उसे उम्रकैद की सज़ा सुना दी. गुस्से और बेबसी में अतीफ़ा ने अपनी चप्पल जज की ओर फेंकी - यह प्रतीक था उस न्याय तंत्र के खिलाफ़ विद्रोह का जिसने उसे सुरक्षा देने की बजाय मौत की ओर धकेल दिया. इसी एक हरकत को आधार बनाकर जज ने उसकी सज़ा उम्रकैद से बदलकर फांसी कर दी. और फिर, 15 अगस्त 2004 को, नेका शहर के मुख्य चौक पर सैकड़ों लोगों की मौजूदगी में एक मोबाइल क्रेन से 16 साल की मासूम अतीफ़ा को लटका दिया गया.
जानबूझकर की गई उम्र की अनदेखी?
अतेफ़ेह की असल उम्र 16 साल थी, लेकिन कोर्ट के दस्तावेज़ों में उसे 22 वर्ष का बताया गया. बीबीसी की रिपोर्ट में एक गवाह ने कहा कि जज ने बस उसके शरीर की बनावट देखकर यह मान लिया कि वह बालिग है - बिना किसी प्रमाण-पत्र की जांच किए. अतेफ़ेह के पिता का दावा था कि कोर्ट ने न तो उसकी जन्मतिथि की पुष्टि की और न ही कोई न्यायिक मानक अपनाया. यह एक जानबूझकर की गई लापरवाही थी, जो अंततः उसकी मौत का कारण बनी.
एक श्राप जो आज भी सता रहा है?
आज जब ईरान इजरायल के युद्ध की चपेट में है, देश के कई हिस्सों में तबाही मची हुई है और निर्दोष नागरिक मारे जा रहे हैं, ऐसे में सोशल मीडिया पर एक बार फिर अतेफ़ेह की कहानी सामने आई है. लोग सवाल कर रहे हैं कि क्या ईरान को आज जो संकट झेलना पड़ रहा है, वह उसी मासूम की आत्मा की तड़प और अन्याय का दंड है? अतेफ़ेह की कहानी सिर्फ एक लड़की की नहीं है, यह कहानी है उस व्यवस्था की, जिसने पीड़िता को अपराधी बना दिया. और आज, शायद उसका दर्द किसी अदृश्य श्राप की तरह ईरान पर मंडरा रहा है.
मेहसा अमीनी की यादें अब भी ताजा
साल 2022 में जब ईरान हिजाब विरोधी आंदोलनों की आग में जल रहा था, तब अतेफ़ेह रजाबी की दर्दनाक कहानी ने युवाओं को प्रेरणा दी. छात्रों ने महिला अधिकारों की लड़ाई में आगे आकर ईरान के दमनकारी शासन और कट्टर शरिया कानूनों को खुली चुनौती दी. इन्हीं प्रदर्शनों के बीच एक नाम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विद्रोह और साहस का प्रतीक बनकर उभरा - मेहसा अमीनी. मेहसा एक आम लड़की थी जो बिना हिजाब के बाजार में घूम रही थी. कथित 'मोरल पुलिस' ने उसे गिरफ़्तार किया और हिरासत में उसके साथ बर्बरता की. कुछ ही घंटों बाद उसकी मौत हो गई. ईरानी सरकार ने दावा किया कि उसे दिल का दौरा पड़ा, लेकिन पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट ने बताया कि उसकी मौत सिर पर गंभीर चोट से हुई थी. मेहसा की मौत ने एक शांत समाज को झकझोर दिया और एक क्रांति को जन्म दिया.