जुल्फिकार अली भुट्टो और लियाकत अली जैसा नहीं हो सकता इमरान खान का अंजाम, ऐसा सोच भी नहीं सकते मुनीर-शहबाज, जानें क्यों
पाकिस्तान के इतिहास में कम से कम 3 प्रमुख नेताओं (तीन पूर्व पीएम) जिनकी साफ तौर पर हत्या या साजिशन हत्या हुई. एक सैन्य तानाशाह की मौत भी विवादास्पद है. कुछ ऐसे मामले में जिनकी मौत को लेकर या तो विवाद हैं या फिर रहस्य अब तक बरकरार हैं. ऐसा इसलिए कि वैसे लोगों के सामने ऐसी स्थिति पैदा की गईं कि वो घुट-घुटकर दम तोड़ने के लिए मजबूर हुए.
पाकिस्तान को आजादी मिलने के बाद वहां के राजनीतिक इतिहास में सिर्फ सत्ता-सुधार नहीं, बल्कि हत्या, विवादित मौतों और निष्पक्ष न्याय की कमी भी शामिल के भी कई उदाहरण हैं. पाकिस्तान के कई पूर्व प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और सैन्य शासक इस सूची में शामिल हैं, जिनकी या तो गोली, बम या विमान दुर्घटना में मौत हो गई. एक पूर्व पीएम को मिली फांसी की सजा को वहां ‘न्यायिक हत्या’ कहा गया. इस बात का जिक्र इसलिए पाकिस्तान में जारी है कि पिछले कुछ दिनों से इमरान खान की हत्या को लेकर वहां पर प्रोटेस्ट बड़े पैमाने पर जानी है. जानें, ऐसी घटनाओं के बारे में पूरी जानकारी.
पाकिस्तान के पूर्व पीएम इमरान खान की मौत की अफवाह से पाकिस्तान में हलचल मच गई. ऐसी अफवाह आई थी कि इमरान खान की जेल में हत्या कर दी गई है. हालांकि ये झूठी खबर फैलाई गई थी. इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है. माना जा रहा है कि वे जिंदा हैं और पिछले लंबे वक्त से जेल में हैं.
दरअसल, पाकिस्तान में पीएम की हत्या का भी अपना इतिहास है. हालांकि इस बार इमरान खान की अफवाह भले ही झूठी हो लेकिन इससे पहले पाकिस्तान के कई पीएम की हत्या हो चुकी है. साल 2022 में इमरान खान पर भी जानलेवा हमला हो चुका है, जब वे जनता को संबोधित कर रहे थे. हालांकि उन्हें कुछ हुआ नहीं.
पाकिस्तान में अभी तक जिन प्रधानमंत्री हत्या या फांसी की सजा मिली जिसमें बेनजीर भुट्टो पूर्व पीएम, जुल्फिकार अली भुट्टो पूर्व पीएम और लियाकत अली खान पाकिस्तान के पहले पीएम का नाम आधिकारिक रूप से शामिल है. जिला उल हक सैन्य तानाशाह, अयूब खां, याह्या खान, मोहम्मद अली जिन्ना की मौत कैसे हुई यह विवाद और रहस्य का विषय आज भी बना हुआ है. इन लोगों को लेकर पाकिस्तान में अलग-अलग धारणा है.
Liaquat Ali Khan: पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री थे. 16 अक्टूबर 1951 को रावलपिंडी में एक सार्वजनिक रैली (Company Bagh) के दौरान मंच से बोलते समय उन पर गोली चलाई गई. गोली लगने के बाद उन्हें अस्पताल ले जाया गया, जहां उनकी मौत हो गई. बताया गया कि हमलावर एक अफगान नागरिक था. उसका नाम Sayyid Akbar Babrak था, जिसे पुलिस ने खान पर गोली मारकर भागते समय मार गिराया था. हत्या का असली कारण अब तक पूरी तरह स्पष्ट नहीं हुआ, लेकिन इसे राजनीतिक हत्या माना गया.
Benazir Bhutto : बेनजीर भुट्टो दो बार पाकिस्तान की पीएम बनीं. पहली बार 1988 और दूसरी बार 1993 में. 27 दिसंबर 2007 को रावलपिंडी में चुनावी रैली के बाद कार की सनरूफ से बाहर जनता को हाथ हिलाते समय उन पर गोली चलाई गई और उसके तुरंत बाद आत्मघाती बम धमाका हुआ. उन्हें अस्पताल ले जाया गया. डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया. शुरुआती दावों में कहा गया कि उन्हें गोली लगी थी तो कुछ अन्य कहते हैं कि वे विस्फोट की वजह से मरीं. हत्या किस वजह से (विस्फोट या गोली) से हुई,पर विवाद है. बेनजीर की हत्या स्पष्ट रूप से राजनीतिक हत्या माना गया.
Zulfiqar Ali Bhutto : पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति रहे. 1977 में उन्हें सत्ता से हटाया गया. उसके बाद 1978-79 में एक हत्या के आरोप में मुकदमा चला और उन्हें दोषी पाया गया. 4 अप्रैल 1979 को उन्हें रावलपिंडी की जेल में फांसी दी गई. हालांकि, 2024 में Supreme Court of Pakistan ने कहा कि उन्हें न्यायसंगत मुकदमे (unfair trial) के तहत फांसी दी गई. उनकी फांसी के बाद में न्यायिक हत्या (judicial murder) कहा गया.
विवादास्पद मौत
Muhammad Zia-ul-Haq : सैन्य तानाशाह थे, जिन्होंने 1977 में सत्तारूढ़ शासन बदल कर मिलिट्री शासन लागू किया. 17 अगस्त 1988 को उनका विमान (C-130 विमान) क्रैश हुआ, जिसमे वह सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारी मरे. कई लोग मानते हैं कि यह दुर्घटना साज़िश थी. सैन्य शासक की मौत साजिशन हत्या माना जाता है. मौत आधिकारिक रूप से विमान दुर्घटना बताई गई, लेकिन साजिश व हत्या की अटकलें बनी रहती हैं .
Mohammad Ali Jinnah: पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना की मौत आज भी राज ही है. उनकी मौत को लेकर बहन फातिमा जिन्ना ने एक किताब लिखी. नाम था- माय ब्रदर. ये किताब लंबे समय तक पाकिस्तान में प्रकाशित नहीं हो पाई. इजाजत नहीं मिली. फिर जब इसे पब्लिश किया गया, तब भी इसके कई सारे अहम हिस्से उड़ा दिए गए. ऐसे हिस्से, जिसमें फातिमा पाकिस्तानी हुकूमत की आलोचना कर रही थीं. इस किताब में फातिमा जिन्ना ने लिखा कि उनके करीबी उनके मरने का इंतजार कर रहे थे. जिन्ना अपने जीते-जी ही काफी हद तक अलग-थलग किए जा चुके थे. उनके आखिरी दिनों में कई करीबी बस इसलिए उन्हें देखने जाते थे कि टटोल सकें और कितनी जिंदगी बची है जिन्ना के अंदर. उन्हें जिन्ना के मरने का इंतजार था. कयास लगाने वालों की कमी नहीं कि शायद जिन्ना की मौत की साजिश रची गई. या कम से कम उन्हें मर जाने दिया गया.
इस कयास के कई कारण हैं. जिन्ना की मौत के दो साल बाद तक फातिमा जिन्ना को किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में बोलने की इजाजत नहीं दी गई. 1951 में जिन्ना की तीसरी बरसी आई. तब जाकर फातिमा को इजाजत मिली कि वो पाकिस्तान के नाम एक रेडियो संदेश दें. अपने रेडियो संदेश में जैसे ही फातिमा ने जिन्ना की मौत वाले दिन एम्बुलेंस के रुकने का जिक्र करना शुरू किया, प्रसारण काट दिया गया. फातिमा को ताउम्र शक रहा कि उस दिन यूं ही नहीं एम्बुलेंस का पेट्रोल खत्म हुआ था. बल्कि ये शायद कोई साजिश थी.
Ahsan Iqbal : पाकिस्तान के एक राजनेता और गृह मंत्री (Interior Minister) ?रहे. 6 मई 2018 को पंजाब प्रांत में एक रैली के बाद उन पर हमला हुआ. हमलावर ने उन्हें गोली मारी, उनकी दाहिनी कंधे में गोली लगी. मौके पर उन्हें उन्हें बचा लिया गया. उनकी मृत्यु नहीं हुई.
ये हुए घुट-घुटकर मरने को मजबूर
Ayub Khan : पाकिस्तान का पहला सैन्य शासक बनने का रिकॉर्ड अयूब खान के नाम दर्ज है. उनके शासनकाल में पाकिस्तान में आर्थिक विकास तो हुआ, लेकिन भ्रष्टाचार और असमानता के खिलाफ जनता का गुस्सा भड़क उठा. अयूब खान पाकिस्तानी फौज में सबसे कम आयु के जनरल थे जो पाकिस्तान के सैन्य इतिहास में स्वयंभू फील्ड मार्शल बने. वे पाकिस्तान के इतिहास में पहले सैन्य कमांडर थे, उन्होंने सरकार के विरुद्ध सैन्य विद्रोह कर सत्ता पर कब्जा किया. 1969 तक जन आंदोलन और सियासी अस्थिरता ने उन्हें घेर लिया. बीमार और थके अयूब ने 25 मार्च 1969 को इस्तीफा दे दिया. उन्होंने पाकिस्तान की सत्ता याह्या खान को सौंप दी. कहा जा रहा है उन्होंने दबाव में इस्तीफा दिया. अयूब खान की जिंदगी के आखिरी दिन इस्लामाबाद में एकांत में बीते, उनका अंतिम समय गुमनामी और अपमानजनक अवस्था में गुजरा. 1974 में जब रावलपिंडी में उनकी मृत्यु हुई तब तक पाकिस्तान दो टुकड़ों में बंट चुका था.
Yahya Khan : जनरल याह्या खान ने अयूब से सत्ता हथियाई, लेकिन उनका शासन बांग्लादेश संकट और 1971 के भारत-पाक युद्ध के कारण बदनाम रहा. बांग्लादेश गंवाने, भारत से हार के बाद याह्या खान जनता और सेना का भरोसा खो चुके थे. उन पर इस्तीफे का दबाव बढ़ा. 20 दिसंबर 1971 को उन्होंने सत्ता जुल्फिकार अली भुट्टो को सौंप दी. इसके बाद याह्या खान के बुरे दिन शुरू हो गए. याह्या खान को खारियां के पास बन्नी के एक रेस्ट हाउस में नजरबंद कर दिया गया. 10 अगस्त, 1980 को जनरल याह्या खान का देहावसान हो गया. याह्या का अंत अपमान और गुमनामी में डूबा रहा.
इस लिहाज से देखें तो केवल चुनावी या सार्वजनिक हत्या हत्या-संदिग्ध मौत तीन प्रमुख प्रधानमंत्री व नेता की हुई. इनमें लियाकत अली खान, बेनजीर भुट्टो और जुल्फिकार अली भुट्टो का नाम शामिल हैं. सैन्य तानाशाह Zia-ul-Haq की मौत विवादास्पद विमान क्रैश में हुई.Ahsan Iqbal पर हमले हुए, लेकिन मौत नहीं हुई.
इमरान खान की नहीं हो सकती हत्या, पर क्यों?
पिछले कुछ दिनों से इमरान खान की हत्या को लेकर वहां की सरकार और सैन्य प्रशासन के खिलाफ प्रोटेस्ट चरम पर है. इमरान के समर्थक आशंका जता रहे हैं कि उनकी सैन्य प्रमुख असीम मुनीर ने हत्य करवा दी है. हालांकि, इस बात की अभी पुष्टि नहीं हुई है. वहीं, पाकिस्तान के लोगों का एक बड़ा समूह मानता है कि उनकी हत्या नहीं हो सकती. पर, क्यों, इसके पीछे कई कारण बताए जा रहे हैं. जैसे:
- इमरान खान की इंटरनेशनल लेवल पर बड़ी फैन फॉलोइंग है. क्रिकेट, पॉलिटिक्स और ह्यूमैनिटेरियन कामों की वजह से. ऐसे हाई-प्रोफाइल फिगर की हत्या पर दुनिया में भारी प्रतिक्रिया होगी, जिससे पाकिस्तान बुरी तरह दबाव में आ जाएगा.
- इमरान खान की हत्या से देश में बड़े पैमाने पर दंगे, हिंसा और गृह युद्ध जैसी स्थिति बन सकती है. सत्ता में मौजूद किसी भी इकाई के लिए यह राजनीतिक आत्महत्या जैसा कदम होगा.
- भले ही इमरान और पाकिस्तान आर्मी के रिश्ते खराब हैं, लेकिन उनकी हत्या सेना की अंतरराष्ट्रीय छवि और घरेलू स्थिरता दोनों को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाएगी. सेना ऐसा बड़ा रिस्क नहीं लेती.
- पिछले हमलों के बाद भी पाकिस्तान में उग्र विरोध देखा गया था. अगली बार यह विरोध पूरी तरह नियंत्रण से बाहर हो सकता है. इस वजह से स्टेट-लेवल प्लानिंग की संभावना बहुत कम है.
- इमरान खान पर सरकार और संस्थाएं भारी सुरक्षा लगाए हुए हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि किसी भी घटना की जिम्मेदारी सीधे उनके सिर जाएगी.
- अमेरिका, UK और EU लगातार पाकिस्तान की राजनीतिक स्थिति पर नज़र रखे हुए हैं. इमरान की हत्या से पाकिस्तान वैश्विक स्तर पर अलग-थलग पड़ सकता है.
यूएन ने जताई चिंता
पाकिस्तान के सेना प्रमुख और फील्ड मार्शल असीम मुनीर ( Pakistan Army chief Asim Munir) आधिकारिक रूप से देश के सबसे ताकतवर शख्स बन गए हैं. संविधान में हुए संशोधन के बाद सेना प्रमुख असीम मुनीर अब रक्षा बलों के प्रमुख (सीडीएफ) बन चुके हैं. तीनों सेनाएं असीम मुनीर के कंट्रोल में आ गई हैं. मुनीर को मिली असीमित ताकत से यूनाइटेड नेशन (United Nations) भी परेशान है. हालांकि, संयुक्त के हाई कमिश्नर (मानवाधिकार) वोल्कर टर्क ने उनकी नियुक्ति पर गंभीर चिंता जाहिर की है. वोल्कर टर्क ने एक बयान में कहा है कि पाकिस्तान के जल्दबाजी में अपनाए गए संविधान संशोधन न्यायपालिका की आजादी को गंभीर रूप से कमजोर करते हैं. टर्क के अनुसार इसे पाकिस्तान में सेना का प्रभाव बढ़ने और नागरिक सरकार के कमजोर होने का संकेत मिलता है. इस वजह से इमरान की हत्या किसी सैन्य प्रमुख के लिए मुमकिन नहीं है.





