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'घर के पीछे सांप पाल कर...', PAK के लिए कैसे भस्‍मासुर बनता जा रहा TTP? सच साबित हो रही क्लिंटन की बात

बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय... यह कहावत पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान पर बिल्कुल सटीक बैठती है. जिस तालिबान को उसने अपने हाथों से खाना खिलाया, वही तालिबान अब उसका हाथ काटने पर उतारू हो गया है. अमेरिका की पूर्व विदेश मंत्री ने भी एक बार कहा था कि अपने घर के पीछे सांप पालकर यह नहीं सोचना चाहिए कि वह केवल पड़ोसी को ही डंसेगा. वह पालने वाले को भी डंसेगा.

घर के पीछे सांप पाल कर..., PAK के लिए कैसे भस्‍मासुर बनता जा रहा TTP? सच साबित हो रही क्लिंटन की  बात
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( Image Source:  X )

'आप अपने घर के पीछे सांप नहीं पाल सकते और यह उम्मीद नहीं कर सकते कि वे सांप केवल आपके पड़ोसियों को ही काटेंगे... वे सांप उसे भी नुकसान पहुंचाएंगे, जिसने उन्हें पाला है...; यह बात अमेरिका की विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने 2011 में पाकिस्तान के बारे में कहा था. उनकी इस कहावत का जिक्र इसलिए आज किया जा रहा है क्योंकि जिस तालिबान को पाकिस्तान ने अपने हाथों से खिलाया था, वही तालिबान अब उसका हाथ काटने की तैयारी कर रहा है.

दरअसल, अफगानिस्तान से तालिबान के 15 हजार लड़ाके पाकिस्तान की ओर बढ़ रहे हैं. दोनों देशों के बीच यह तनाव तब आया है, जब पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) पर एयर स्ट्राइक की. इसकी तालिबान ने कड़ी निंदा की और जवाब कार्रवाई की कसम खाई है.

पाकिस्तान पर डबल अटैक

गौर करने वाली बात यह है कि जिस तालिबान के अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज होने को पाकिस्तान के तत्कालीन पीएम इमरान खान ने अफगानों द्वारा गुलामी की बेडियां तोड़ना बताया था, वही तालिबान अब पाकिस्तान के खिलाफ हो गया है और उस पर हमला कर रहा है. पाकिस्तान को अब TTP के साथ ही अफगान तालिबान की चुनौती का भी सामना करना पड़ रहा है.

पाकिस्तान की एयरस्ट्राइक में 16 लोगों की हुई थी मौत

बता दें कि पूर्वी अफगानिस्तान के पंक्तिका प्रांत में पाकिस्तान के एयर स्ट्राइक से मौजूदा तनाव की शुरुआत हुई. तालिबान के अधिकारियों ने बताया कि इस हमले में 46 लोग मारे गए, जिनमें ज्यादातर महिलाएं और बच्चे हैं. इस हमले का मकसद टीटीपी के ट्रेनिंग सेंटर को नष्ट करने और उसे निशाना बनाने के मकसद से किया गया था. इस हमले में जेट और ड्रोन विमानों का इस्तेमाल किया गया. अफगान क्षेत्र पर पाकिस्तानी सैन्य हमला टीटीपी द्वारा उत्तर-पश्चिम में एक चौकी पर हमला करने के कुछ ही दिनों बाद हुआ है, जिसमें 16 पाकिस्तानी सैनिक मारे गए थे.

काबुल में तालिबान के प्रवक्ता ने कहा कि रक्षा मंत्रालय ने हमले का बदला लेने की कसम खाई है. काबुल में अफगानिस्तान के विदेश मंत्रालय ने भी पाकिस्तानी दूत को तलब किया और हमलों पर कड़ा विरोध दर्ज कराया. यही कारण है कि लगभग 15,000 तालिबान लड़ाके कथित तौर पर काबुल, कंधार और हेरात से पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत से सटे मीर अली सीमा की ओर कूच कर रहे हैं.

पाकिस्तान में आतंकवादी हमले बढ़े

अफ़गानिस्तान में तालिबान की सत्ता में वापसी के बाद पाकिस्तान में आतंकी हमलों में तेज़ी देखी गई है, क्योंकि नई सरकार ने टीटीपी को बढ़ावा दिया है और उसे मज़बूत किया है. टीटीपी का लक्ष्य पाकिस्तान में एक इस्लामी अमीरात स्थापित करना है, ठीक वैसे ही जैसे उसके तालिबान ने अफगानिस्तान में किया है.

अफगान तालिबान ने किया हमला

पाकिस्तानी मीडिया जियो न्यूज के मुताबिक, खवारिज ग्रुप के साथ अफगान तालिबान ने शनिवार की सुबह पाकिस्तानी चौकियों पर हमला कर दिया. इस दौरान पाकिस्तानी सेना की ओर से जवाबी कार्रवाई में 15 से ज्यादा आतंकी मारे गए और अफगान तालिबान को सीमा पर छह चौकियों को छोड़कर जाना पड़ा. अफगानिस्तान की तरफ काफी नुकसान हुआ है. टीटीपी अफगानिस्तान की सीमा पर से सटे खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान प्रांत में बड़े पैमाने पर हमला करता है.

इस्लामाबाद स्थित सेंटर फॉर रिसर्च एंड सिक्योरिटी स्टडीज की एक रिपोर्ट से पता चला है कि 2022 की तुलना में 2023 में पाकिस्तान में आतंकवादी हमलों में होने वाली मौतों में 56 फीसदी का इजाफा हुआ है. इसमें 500 सुरक्षाकर्मियों सहित 1500 से अधिक लोग मारे गए.

अफगान तालिबान पर पाकिस्तान ने लगाए बड़े आरोप

अफगान तालिबान और पाकिस्तान सरकार के बीच संबंध तब और भी तनावपूर्ण हो गए, जब पाकिस्तान ने तालिबान सरकार पर सीमा पार से आतंकवाद का आरोप लगाया और व्यापार प्रतिबंध लगाते हुए 5 लाख अफ़गान प्रवासियों को देश से बाहर निकाल दिया. उसने सख्त वीज़ा नीति लागू की और टीटीपी पर सैन्य कार्रवाई करना जारी रखा.

पाकिस्तान ने तालिबान की कैसे मदद की?

पाकिस्तान और अफगान तालिबान के बीच बिगड़ते रिश्ते की जड़ में लगातार बदलते भू-राजनीतिक समीकरण हैं, जिसे विदेशी विशेषज्ञ अफगानिस्तान-पाकिस्तान क्षेत्र कहते हैं. 1990 के दशक के मध्य में अपनी स्थापना के बाद से तालिबान, जिसे तब सोवियत समर्थित शासन को अस्थिर करने के लिए पाला गया था, को पाकिस्तान से महत्वपूर्ण समर्थन और सहायता मिली. पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI ने दशकों तक तालिबान के गठन और उसे बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

1996 में पाकिस्तान उन तीन देशों में से एक था, जिसने तालिबान के इस्लामिक अमीरात ऑफ अफगानिस्तान को वैध सरकार के रूप में मान्यता दी थी. कई विशेषज्ञों के अनुसार, पाकिस्तान ने तालिबान को सैन्य सलाहकार, विशेषज्ञ और यहां तक ​​कि अपने विशेष सेवा समूह के कमांडो सहित लड़ाकू सैनिक भी मुहैया कराए हैं. हालांकि, पाकिस्तान ने बार-बार इन दावों का खंडन किया है. यह समर्थन अंतरराष्ट्रीय दबाव और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों के बावजूद जारी रहा.

पाकिस्तान ने अपनी सीमाओं पर आतंकियों को पनपने दिया

पाकिस्तान ने दशकों तक कट्टरपंथी आतंकवादियों को अपनी उत्तर-पश्चिमी सीमाओं पर पनपने दिया, जिनमें से कई ने बाद में तालिबान और अन्य आतंकवादी समूहों से हाथ मिला लिया. पाकिस्तान पर यह भी आरोप लगाया गया है कि वह गुप्त रूप से कश्मीर मुद्दे से निपटने के लिए तालिबान को भारत के खिलाफ रणनीतिक उपकरण के रूप में इस्तेमाल कर रहा है. जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) जैसे आतंकी समूह 1990 और 2000 के दशक में तालिबान-नियंत्रित क्षेत्रों में ट्रेनिंग हासिल करते हुए काम करते थे. हालांकि, पाकिस्तान की यह चाल उल्टी साबित हुई. अब पाकिस्तान को लगता है कि अफगान तालिबान ने सीमा पार आतंकवादी गतिविधियों से निपटने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाए हैं.

तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) अफगानिस्तान में मौजूद तालिबान से अलग है, लेकिन यह अफगान तालिबान के साथ मौन सहमति रखने के लिए जाना जाता है. पाकिस्तान का दावा है कि अफगान तालिबान अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा पर कार्रवाई करने के लिए तैयार नहीं है, जिससे स्थिति जटिल हो रही है. पाकिस्तान का तालिबान के साथ लंबा खेल अब उसे नुकसान पहुंचा रहा है, जिससे हिलेरी की टिप्पणी सही साबित होती है. पाकिस्तान ने जिसे कभी पनपने दिया था, वही अब उसकी स्थिरता के लिए खतरा बन रहा है.

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