ट्रंप समर्थकों ने चलाया था भारतीय H-1B वीजा धारकों के खिलाफ 'ऑपरेशन 'क्लॉग द टॉयलेट', क्या रहा अंजाम?
Operation Clog Toilet America: भारत अमेरिका के बीच टैरिफ विवाद के बाद ट्रंप समर्थकों द्वारा भारतीय H-1B वीजा धारकों को निशाना बनाने के लिए चलाया गया ‘ऑपरेशन क्लॉग द टॉयलेट’ चलाया गया था. इसका मकसद प्रवासी भारतीयों को अमेरिका वापस आने देने से रोकना था. यह कितना सफल रहा और इसका क्या अंजाम निकला, जानिए पूरी रिपोर्ट.

Operation Clog Toilet America: डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति कार्यकाल में अमेरिकी इमिग्रेशन नीति कड़े कदमों और विवादों से घिरी रही. अब भी इसको लेकर विवाद जारी ही है. इस बीच ट्रंप के कुछ समर्थकों ने भारतीय H-1B वीजा धारकों को नुकसान पहुंचाने के लिए एक मुहिम चलाई, जिसे नाम दिया गया, 'ऑपरेशन क्लॉग द टॉयलेट'. इस मुहिम का उद्देश्य था कि भारतीय पेशेवरों के लिए वीजा प्रक्रियाओं में मुश्किलें खड़ी की जाएं. क्या यह अभियान सफल रहा या फिर सिर्फ एक असफल राजनीतिक स्टंट बनकर रह गया?
क्या था ‘ऑपरेशन क्लॉग द टॉयलेट'?
डोनाल्ड ट्रंप समर्थकों ने इस अभियान के तहत अमेरिकी इमिग्रेशन सिस्टम को फर्जी और बेबुनियाद शिकायतों से भरने की रणनीति अपनाई. इसका मकसद था H-1B वीजा धारकों, खासकर भारतीय आईटी प्रोफेशनल्स, पर दबाव बनाना और वीजा प्रक्रिया को धीमा करना. साथ ही भारतीयों की अमेरिका में वापसी को रोकना था.
एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक 'ऑपरेशन क्लॉग द टॉयलेट' एक ऑनलाइन अभियान था जिसे अमेरिकी दाहिने विचारधारा वाले समूहों ने भारतीय H-1B वीजा धारकों को अमेरिका लौटने से रोकने के लिए चलाया. यह अभियान 21 सितंबर 2025 को शुरू हुआ, जब पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने H-1B वीजा के लिए $100,000 शुल्क लगाने की घोषणा की.
मकसद क्या था?
'ऑपरेशन क्लॉग द टॉयलेट' अभियान का मुख्य उद्देश्य भारतीय H-1B वीजा धारकों को अमेरिका लौटने से रोकना और उन्हें भ्रमित करना था. इसके लिए, 4chan जैसे ऑनलाइन मंचों पर उपयोगकर्ताओं ने जानबूझकर उड़ान बुकिंग सिस्टम को ओवरलोड किया, जिससे टिकट की कीमतें बढ़ गईं और वास्तविक यात्रियों के लिए सीटें उपलब्ध नहीं हो पाईं.
भारतीय क्यों बने निशाना?
अमेरिका में टेक सेक्टर में सबसे ज्यादा H-1B वीजा भारतीयों को ही मिलते हैं. गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, अमेजन और अन्य बड़ी कंपनियों में भारतीय कर्मचारियों की संख्या लाखों में है. ट्रंप प्रशासन के ‘अमेरिका फर्स्ट’ एजेंडे के बीच यह धारणा बनाई गई कि भारतीय नौकरियां छीन रहे हैं. इसी सोच से यह अभियान भारतीयों पर केंद्रित रहा.
कितना सफल रहा अभियान?
‘ऑपरेशन क्लॉग द टॉयलेट’ से वीजा प्रक्रिया में कुछ समय के लिए अड़चनें जरूर आईं, लेकिन इसका कोई बड़ा असर लंबे समय तक नहीं दिखा. अमेरिकी कंपनियों ने साफ किया कि भारतीय प्रोफेशनल्स उनकी टेक्नोलॉजी ग्रोथ के लिए जरूरी हैं. कोर्ट में कई नीतियों को चुनौती दी गई और उन्हें पलट भी दिया गया. कई फर्जी शिकायतों का पर्दाफाश हुआ और उन्हें खारिज कर दिया गया.
द इकोनॉमिक्स टाइम्स के अनुसार अमेरिका में अवैध रूप से रह रहे भारतीय नागरिकों के खिलाफ अमेरिकी सरकार की ओर से चलाए गए अभियान के तहत लगभग 1,100 भारतीय नागरिकों को भारत वापस भेजा गया. यह आंकड़ा अमेरिकी गृह सुरक्षा विभाग (DHS) द्वारा पुष्ट किया गया है. इनमें से अधिकांश को चार्टर्ड और वाणिज्यिक उड़ानों के माध्यम से भेजा गया.
नस्लीय अपशब्दों का प्रयोग
कई पोस्टों में नस्लीय अपशब्दों का उपयोग किया गया, जैसे 'jeet' (जो दक्षिण एशियाई मूल के लोगों के लिए एक अपमानजनक शब्द है), और भारतीयों को अमेरिका में प्रवेश से रोकने की बात की गई. ट्रम्प सरकार की घोषणा से पहले ही अफरा-तफरी फैल गई कि अगर समय पर वापस न लौटे तो वीजा शुल्क बहुत बड़ा हो जाएगा. इस पैनिक भावना को यह अभियान और बढ़ा गया.
श्वेत गृह की स्पष्टीकरण भूमिका काफी बाद में व्हाइट हाउस ने स्पष्ट किया कि नया $100,000 शुल्क नए वीजा आवेदनों पर लागू होगा, न कि मौजूदा वीजा धारकों पर. यानी मौजूदा वीजा धारकों को पुनप्रवेश (re-entry) के लिए उस भारी शुल्क को देना नहीं पड़ेगा.
कुल मिलाकर ‘ऑपरेशन क्लॉग द टॉयलेट’ एक शॉर्ट-टर्म राजनीतिक हथकंडा भर साबित हुआ, जिसका वास्तविक असर सीमित रहा. भारतीय H-1B वीजा धारकों ने चुनौतियों का सामना जरूर किया, लेकिन उनकी भूमिका अमेरिकी अर्थव्यवस्था और टेक सेक्टर में इतनी अहम है कि ऐसे अभियान उन्हें हिला नहीं सके.