दोस्ती नहीं, डील चाहिए ट्रंप को... इजराइल को किनारे कर ईरान और सीरिया से क्यों मिलाया हाथ?
डोनाल्ड ट्रंप की नीतियां अब सहयोग नहीं, सौदे पर केंद्रित हैं. उन्होंने यूक्रेन से मदद रोकी, यूरोप को नजरअंदाज किया, कनाडा पर टैरिफ लगाया और अब इजराइल को दरकिनार कर ईरान से डील कर रहे हैं. उनके इस 'अमेरिका फर्स्ट' एजेंडे ने पुराने मित्र देशों को असहज कर दिया है. ट्रंप के लिए दोस्ती अब फायदे की शर्त पर ही टिकेगी.

डोनाल्ड ट्रंप की वापसी ने वैश्विक कूटनीति में भूचाल ला दिया है, लेकिन यह भूचाल उनके विरोधियों से ज्यादा उनके पुराने सहयोगियों को झेलना पड़ रहा है. अमेरिका की पारंपरिक नीतियों को पलटते हुए ट्रंप उन देशों पर सख्त होते दिख रहे हैं, जिन्हें कभी वॉशिंगटन के सबसे करीबी मित्र माना जाता था. यह ट्रंप का नया अमेरिका है जहां दोस्ती की कसौटी सहयोग नहीं, बल्कि मुनाफा है.
यूक्रेन से सैन्य सहायता रोकने के बाद ट्रंप ने यूरोपीय देशों को भी आत्मनिर्भरता की सीख देते हुए उनके संकटों में दखल देने से इनकार कर दिया. इसके बाद कनाडा को भारी टैरिफ की मार झेलनी पड़ी. लेकिन सबसे बड़ा झटका अब इजराइल को मिला है. ट्रंप प्रशासन ने नेतन्याहू की ईरान विरोधी नीति को दरकिनार करते हुए तेहरान से सीधा समझौता कर डाला है.
नेतन्याहू का दबाव ट्रंप को नहीं आया रास
ट्रंप और नेतन्याहू के रिश्ते अब तल्ख मोड़ पर हैं. एक तरफ नेतन्याहू ईरान पर सैन्य कार्रवाई चाहते हैं, तो दूसरी ओर ट्रंप आर्थिक व रणनीतिक डील के जरिए नया अध्याय खोलने में लगे हैं. नेतन्याहू का दबाव ट्रंप को रास नहीं आया और उन्होंने कांग्रेस की चेतावनी को नजरअंदाज करते हुए ईरान के साथ समझौते की घोषणा कर दी. यह कदम ट्रंप के आत्मनिर्भर और स्वार्थ केंद्रित अमेरिका की छवि को और पुष्ट करता है.
सौदे पर है ट्रंप की रणनीति
ट्रंप की रणनीति अब केवल दोस्ती पर नहीं, सौदे पर आधारित है. यही वजह है कि वो कतर से एक ट्रिलियन डॉलर की डील करने में सफल रहे. तुर्की को 2 हजार 600 करोड़ रुपए की मिसाइलें भेजने की योजना भी इसी दिशा में है. अमेरिका की यह नई नीति अपने परंपरागत सहयोगियों के लिए झटका है क्योंकि अब ट्रंप वही करेंगे, जिससे अमेरिका को आर्थिक फायदा हो.
क़तर में मिला उपहार
इस कूटनीतिक बदलाव के बीच एक और चर्चा में है ट्रंप को मिलने वाला 'उपहार' कतर का अल्ट्रा-लक्जरी बोइंग 747-8 वीवीआईपी जेट. इस गिफ्ट ने अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियों की चिंता बढ़ा दी है. यह विमान दिखने में भले शानदार हो, लेकिन ट्रंप की सुरक्षा के लिहाज से इसमें कई तकनीकी फेरबदल जरूरी हैं.
बम-प्रूफ बनाने में लगेगा समय
एयरफोर्स वन के मानकों के अनुसार, इस जेट को बम-प्रूफ बनाने से लेकर हाई-टेक कम्युनिकेशन और फ्यूलिंग सिस्टम से लैस करने में लंबा वक्त लगेगा. सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि ऐसे किसी विदेशी तोहफे में ट्रैकिंग डिवाइसेज छिपे हो सकते हैं, जो अमेरिका के लिए जोखिम भरा हो सकता है.
पुराने दोस्तों से धोना पड़ सकता है हाथ
फिर भी ट्रंप इस प्लेन को फिलहाल इस्तेमाल में लाने के पक्ष में हैं. उनका तर्क है कि नया एयरफोर्स वन तैयार होने तक इससे सरकारी खर्च बचाया जा सकता है. लेकिन यह सवाल अब भी बना हुआ है. क्या ट्रंप के 'बिजनेस फर्स्ट' दृष्टिकोण से अमेरिका की सुरक्षा और उसकी पुरानी दोस्तियों की कीमत चुकानी पड़ेगी?