भुज एयरबेस का वो इतिहास जो पाकिस्तान कभी नहीं भूलेगा, राजनाथ सिंह के दौरे से फिर चर्चा में
1971 की जंग में भुज एयरबेस की मरम्मत करने वाली 300 महिलाओं का इतिहास आज फिर चर्चा में है. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के दौरे ने उस नारीशक्ति को श्रद्धांजलि दी, जिसने साड़ी पहनकर बमबारी के बीच दुश्मन को जवाब दिया. भुज अब फिर से सामरिक केंद्र बना है, और पाकिस्तान के लिए यह संदेश साफ है. भारत की आत्मा आज भी अडिग है.

जब धरती कांपी थी, आसमान से आग बरसी थी और भुज की धरती पर सन्नाटा पसरा था, साड़ी पहने 300 महिलाओं ने वो इतिहास रचा था जिसे आज भी राष्ट्र गर्व से याद करता है. गुरुवार को, जब रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह 1971 की जंग के उसी वीरगाथा स्थल भुज एयरबेस का दौरा कर रहे हैं, तो यह सिर्फ एक सैन्य समीक्षा नहीं, बल्कि उन 300 गुमनाम वीरांगनाओं को भी श्रद्धांजलि है जिन्होंने अपने हाथों से भारत को फिर से उड़ने का हौसला दिया था. भुज आज फिर चर्चा में है, न सिर्फ अपनी सामरिक ताकत के लिए, बल्कि उस ‘अदम्य नारीशक्ति’ की याद में, जिसने बिना बंदूक थामे ही दुश्मन को हरा दिया था.
साल था 1971, तारीख 8 दिसंबर. जगह थी गुजरात का भुज एयरबेस और आसमान से बरस रही थी आग. पाकिस्तान के सबरे जेट्स ने लगातार 14 बार बमबारी कर भारतीय वायुसेना के भुज एयरबेस को तबाह कर दिया था. रनवे जल चुका था. लड़ाकू विमान ज़मीन पर फंसे थे. और पाकिस्तान की सेना हर तरफ से नजदीक आ रही थी. चारों ओर सिर्फ धुआं, डर और सन्नाटा था. मगर इस सन्नाटे में गूंज रही थी एक चुपचाप प्रतिज्ञा - "देश नहीं झुकेगा."
वह दिन जब साड़ी बनी थी शस्त्र, और महिलाएं बनी थीं सैनिक
भुज के स्क्वाड्रन लीडर विजय कार्णिक के सामने सबसे बड़ा सवाल था - अब क्या करें? इंजीनियर नहीं थे, संसाधन नहीं थे, सैनिक कम थे, और समय बिल्कुल नहीं था. तभी आया एक चमत्कार, जो इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया, मधापुर गांव की 300 महिलाएं खुद आगे आईं. किसी ने उन्हें नहीं बुलाया, न कोई वेतन, न कोई सुरक्षा गारंटी. बस एक भावना - "मां भारती पुकार रही है."
‘हर ईंट में था विश्वास, हर हाथ में था पराक्रम’
इन महिलाओं ने साड़ी पहनी, हरे रंग की, ताकि वो पाकिस्तानी विमानों से छिप सकें. जब अलार्म बजता, वो झाड़ियों में छिप जातीं, और फिर बाहर निकल कर फिर काम पर लग जातीं. नंगे हाथों से ईंटें उठाईं, गोबर से दरारें भरीं, सीमेंट-रेत मिलाया, पत्थर जमाए. किसी ने अपने पल्लू से साथी के पसीने को पोंछा, तो किसी ने भूख में भी सीना चौड़ा रखा. 72 घंटे, बस 3 दिन और उन्होंने वो कर दिखाया जो पूरी सेना भी कभी न कर पाती, एक तबाह रनवे को फिर से जिंदा कर दिया.
‘वो रनवे नहीं, भारत की आत्मा थी जिसे हमने फिर से उड़ान दी’
इन महिलाओं की वजह से भारत के मिग-21 और हंटर फाइटर जेट्स दोबारा उड़ान भर सके. और 16 दिसंबर, 1971 को पाकिस्तान ने आत्मसमर्पण कर दिया. इतिहास का एक असली मोड़, जहां बंदूकें नहीं, बल्कि साड़ियों में लिपटी वीरांगनाएं थीं.
विजय कार्णिक ने क्या कहा था?
"उन 300 महिलाओं ने जो किया, वो भारतीय इतिहास की सबसे अद्भुत सैन्य-सहायता थी. उन्होंने देश को सिर उठाकर लड़ने का हौसला दिया."
भुज आज फिर से सामरिक दृष्टि से अहम है. हाल ही में पाकिस्तान द्वारा किए गए ड्रोन हमले भी यहीं हुए थे, जिन्हें भारतीय बलों ने सफलतापूर्वक नाकाम कर दिया.
क्या अब पाकिस्तान को सबक मिलेगा?
1971 की उस नारी शक्ति की एक सिपाही कनाबाई शिवजी हिराणी आज भी कहती हैं, "मोदी जी को पाकिस्तान का पानी-बिजली बंद कर देना चाहिए. वो बात तभी समझेगा." ये शब्द नफरत से नहीं, अनुभव से निकले हैं.