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तीन भाई तीनों तबाही! अमेरिका के 'दुश्‍मनों' संग चीन की विक्‍ट्री डे परेड में क्या है ग्लोबल मैसेज?

बीजिंग में चीन ने बुधवार को विक्ट्री डे परेड का आयोजन किया, जो जापान पर जीत की 80वीं वर्षगांठ को समर्पित थी. इस परेड में 40 हजार सैनिकों, 100 से अधिक लड़ाकू विमानों और हाइपरसोनिक मिसाइलों समेत अत्याधुनिक हथियारों का प्रदर्शन हुआ. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, उत्तर कोरिया के किम जोंग उन और ईरान के मसूद पेजेश्कियान सहित 25 से अधिक देशों के नेता इसमें शामिल हुए. चीन इस आयोजन के जरिए अमेरिका और पश्चिम को यह संदेश देना चाहता है कि अब वह सिर्फ आर्थिक शक्ति नहीं बल्कि सैन्य ताकत के रूप में भी वैश्विक मंच पर खड़ा है. साथ ही, इतिहास की याद दिलाते हुए चीन ने दिखाया कि कैसे जापान पर विजय उसके "राष्ट्रीय पुनर्निर्माण" की नींव बनी.

तीन भाई तीनों तबाही! अमेरिका के दुश्‍मनों संग चीन की विक्‍ट्री डे परेड में क्या है ग्लोबल मैसेज?
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( Image Source:  X/thabanglethoko )
नवनीत कुमार
Curated By: नवनीत कुमार

Published on: 3 Sept 2025 1:39 PM

बीजिंग बुधवार को वैश्विक सुर्खियों का केंद्र बन गया, जब चीन ने विक्ट्री डे परेड 2025 का आयोजन किया. यह परेड द्वितीय विश्व युद्ध में जापान पर जीत की 80वीं वर्षगांठ पर की गई. इसमें 40 हजार सैनिक, 100 से अधिक युद्धक विमान और कई अत्याधुनिक हथियार शामिल हुए. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने परेड का नेतृत्व किया, वहीं मंच पर रूस के व्लादिमीर पुतिन, उत्तर कोरिया के किम जोंग उन और ईरान के मसूद पेजेश्कियान समेत 25 से अधिक देशों के नेता मौजूद थे.

चीन का "विजय दिवस" दरअसल जापान पर उसकी लंबी और कठिन जीत का प्रतीक है. 1931 में जापान ने मंचूरिया पर कब्ज़ा कर लिया था, जिसे चीन अपना पहला अपमान मानता है. इसके बाद 1937 में द्वितीय सिनो-जापानी युद्ध शुरू हुआ, जिसमें चीन ने जापानी आक्रमण का लगभग 14 साल तक मुकाबला किया. इस दौरान नानजिंग नरसंहार जैसी त्रासदी हुई, जिसमें लाखों चीनी नागरिक और सैनिक मारे गए.

जापान का आत्मसमर्पण और चीन की जीत

द्वितीय विश्व युद्ध के अंतिम चरण में जापान को भारी नुकसान झेलना पड़ा. 2 सितंबर 1945 को जापान ने औपचारिक रूप से आत्मसमर्पण कर दिया. इसके अगले दिन, 3 सितंबर को चीन ने अपनी जीत को "विक्ट्री ओवर जापान डे" के रूप में घोषित किया. चीन के लिए यह सिर्फ सैन्य जीत नहीं थी, बल्कि राष्ट्रीय सम्मान और अस्तित्व की लड़ाई में हासिल बड़ी सफलता थी.

इतिहास से सीख और गौरव

चीन की कम्युनिस्ट पार्टी इस जीत को अपने राष्ट्रीय पुनर्निर्माण का टर्निंग पॉइंट मानती है. पार्टी इतिहासकार वांग जुनवेई कहते हैं कि जापान पर विजय ने चीन को "गहरे संकट से निकालकर महान कायाकल्प की ओर मोड़ा." बीजिंग और शेनयांग में बने युद्ध संग्रहालय आज भी उस दौर की तस्वीरों, हथियारों और दस्तावेज़ों के जरिए लोगों को याद दिलाते हैं कि आज की सैन्य ताकत किस बलिदान की नींव पर खड़ी है.

credit- X/SCMPNews

परेड क्यों है अहम?

2014 में चीन सरकार ने आधिकारिक तौर पर 3 सितंबर को राष्ट्रीय विजय दिवस घोषित किया. इसके बाद 2015 में पहली बार विक्ट्री डे पर सैन्य परेड आयोजित हुई. तब से हर बड़ी वर्षगांठ पर यह आयोजन चीन की शक्ति और ऐतिहासिक गौरव का प्रतीक बन गया है.

आधुनिक हथियारों का पावर शो

इस बार की परेड में चीन ने दुनिया के सामने अपनी नई तकनीकों का प्रदर्शन किया. इसमें DF-5C इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल केंद्र बिंदु रही, जो 20,000 किमी की रेंज और एक साथ 10 वारहेड्स ले जाने की क्षमता रखती है. इसके अलावा, हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल, हाइपरसोनिक मिसाइलें, मिसाइल डिफेंस सिस्टम, JL-3 सबमरीन लॉन्च बैलिस्टिक मिसाइल और YJ-21 एंटी-शिप क्रूज मिसाइल और आधुनिक टैंक भी दिखाई गईं.

अमेरिका और पश्चिमी देशों को संदेश

चीन इस परेड के जरिए यह जताना चाहता है कि वह किसी धमकी से डरने वाला नहीं है. रूस, उत्तर कोरिया और ईरान जैसे देशों की मौजूदगी ने यह संदेश और स्पष्ट कर दिया कि चीन अब अमेरिका के नेतृत्व वाले पश्चिमी मोर्चे को चुनौती देने में सक्षम है. विश्लेषकों का कहना है कि यह आयोजन एशिया-प्रशांत में शक्ति संतुलन बदलने का संकेत है.

किम जोंग उन की मौजूदगी

उत्तर कोरिया के शासक किम जोंग उन 2019 के बाद पहली बार चीन पहुंचे. छह साल बाद उनकी मौजूदगी ने दुनिया का ध्यान खींचा. किम का यह दौरा अमेरिका के लिए सीधा संदेश माना जा रहा है कि चीन-रूस-उत्तर कोरिया का सहयोग अब और मजबूत हो रहा है.

परेड में शामिल प्रमुख नेता

रूस, ईरान, बेलारूस, पाकिस्तान और नेपाल जैसे देशों के शीर्ष नेता भी इस आयोजन में शामिल हुए. वहीं भारत, तुर्की, मिस्र, श्रीलंका और अफगानिस्तान जैसे देश इसमें शामिल नहीं हुए. यह भी स्पष्ट संकेत है कि चीन किन देशों के साथ मिलकर भविष्य की वैश्विक राजनीति में भूमिका निभाना चाहता है.

हमने दर्दनाक कीमत चुकाई

बीजिंग और शेनयांग के युद्ध संग्रहालयों में इस अवसर पर विशेष प्रदर्शन लगाए गए. हजारों लोग यहां पहुंचे और युद्ध की तस्वीरों व वस्तुओं को देखकर भावुक हुए. बीजिंग की एक शिक्षिका यान होंगजिया ने कहा, "हमने बहुत दर्दनाक कीमत चुकाई है. यह इतिहास हमें सिखाता है कि हमारी आने वाली पीढ़ियां कभी कमजोर न पड़ें."

सैन्य शक्ति और राजनीतिक महत्व

शी जिनपिंग के कार्यकाल में इस तरह के आयोजनों का महत्व और बढ़ गया है. वे इसे चीन की "महान कायाकल्प" की कहानी से जोड़ते हैं. विक्ट्री डे परेड न सिर्फ इतिहास की याद दिलाती है बल्कि यह दुनिया को बताने का माध्यम भी है कि चीन अब सिर्फ आर्थिक ताकत नहीं, बल्कि सैन्य शक्ति के रूप में भी सामने खड़ा है.

वैश्विक भू-राजनीति पर असर

स्पष्ट है कि विक्ट्री डे परेड चीन की ऐतिहासिक स्मृति और वर्तमान रणनीति दोनों का संगम है. एक तरफ यह जापान पर जीत की याद दिलाती है, वहीं दूसरी ओर यह अमेरिका और पश्चिमी देशों को यह संकेत देती है कि चीन अब अपनी शक्ति छिपाने के दौर से बाहर निकल चुका है और वह दुनिया का नेतृत्व करने के लिए तैयार है.

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