खालिदा जिया के बाद बांग्लादेश: Sympathy Wave, तारिक रहमान की घर वापसी... इन वजहों से BNP का सत्ता में आना तय?
khaleda Zia Death : खालिदा जिया के संभावित निधन के बाद क्या बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) सत्ता में लौट सकती है? राजनीतिक विश्लेषकों की राय में इसके पीछे 3 बड़ी वजहें हैं, लेकिन चुनौतियां भी कम नहीं. राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार किसी भी बड़े नेता के निधन के बाद सहानुभूति की लहर बनना स्वाभाविक है, लेकिन सत्ता में वापसी केवल भावनाओं से नहीं, बल्कि संगठन, नेतृत्व और अंतरराष्ट्रीय माहौल से तय होती है, जिस पर बीएनपी (BNP) को काम करना होगा.
Khaleda Zia Death : बांग्लादेश की राजनीति दशकों तक जिन दो चेहरों के इर्द-गिर्द घूमती रही, उनमें खालिदा जिया एक केंद्रीय नाम रही हैं. उनका निधन बांग्लादेश की राजनीति में न केवल एक युग का अंत माना जा रहा है, बल्कि देश की सत्ता-संतुलन की राजनीति में बड़ा मोड़ भी साबित हो सकता है. सवाल यह है कि क्या खालिदा जिया के जाने से BNP को वह सहानुभूति और राजनीतिक ताकत मिल जाएगी, जिससे उसकी सत्ता में वापसी तय मानी जाए? एक्सपर्ट्स का मानना है, 'अब सहानुभूति लहर अहम पहलू बन गया है, उनके निधन से बीएनपी (BNP) की सत्ता में वापसी लगभग तय माना जा रहा है.
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विदेश मामलों के जानकार डॉ. ब्रह्मदीप अलूने का बांग्लादेश की राजनीति सरगर्मी के बीच पूर्व पीएम और खालिदा जिया के निधन पर कहा है कि अब बांग्लादेश में सहानुभूति की लहर फैलना तय है. अभी तक संकेत मिल रहे थे कि बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी सत्ता में आएगी, लेकिन खालिदा जिया का बांग्लादेश में निधन से करीब-करीब यह तय कर दिया है कि बीएनपी सत्ता में वापसी करेगी. ब्रह्मदीप अलूने ने सहानुभूति की वजह पूछने पर बताया इसके तीन कारण हो सकते हैं.
1. खालिदा जिया पीड़ित नेता
पहला, बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया देश की पहली महिला थीं, जो पीएम बनीं. उन्होंने अपने कार्यकाल में बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने वाला काम किया था, जिसे अवामी लीग की प्रमुख और पूर्व पीएम शेख हसीना ने आगे बढ़ाने का काम किया था. खालिदा जिया को बांग्लादेश में एक पीड़ित नेता के रूप में भी देखा जाता है. जेल, बीमारी और राजनीतिक अलगाव के कारण उनका निधन माना जाएगा. BNP समर्थकों को भावनात्मक रूप से एकजुट कर सकता है. सरकार विरोधी वोटरों में एंटी-इंकम्बेंसी और मजबूत हो सकती है.
2. BNP के प्रति जनता का लगाव
दूसरा यह कि शेख हसीना के कार्यकाल में देश भर में फैले बीएनपी के कार्यकर्ताओं को प्रताड़ित किया गया था. उसी की नतीजा है कि बांग्लादेश में साल 2024 में छात्र आंदोलन हुआ और शेख हसीना को वतन छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा. शेख हसीना के विरोधी दलों के प्रति जरूरत से ज्यादा सख्त रवैये की वजह से वहां की जनता में बीएनपी के प्रति फिर लगाव बढ़ा, जो अभी चरम पर है. देश भर में फैले उनके कार्यकर्ता लोगों के बीच इस बात को रखेंगे कि लोगों की बेहतरी की वजह से वह सत्ता के आंखों का किरकिरी बनी, जो उनके निधन का कारण बना. ऐसे में चुनाव प्रक्रिया के बीच खालिदा जिया का निधन सहानुभूति की लहर पैदा कर सकती. बस, इसे, लोगों तक पहुंचाने काम बीएनपी नेताओं को करना होगा.
3. तारिक रहमान ने जगाई उम्मीदें
तीसरी बात ये है कि खालिदा जिया और शेख हसीना के बाद लोगों की नजर में अगर कोई देश को संभाल सकता है, तो वो तारिक रहमान ही हैं. वहां के लोग मानते हैं कि रहमान शिक्षित व्यक्ति हैं, उनके खून में राजनीति विरासत से मिली है. ऐसे में वो बांग्लादेश के बिगड़े हालात को पटरी लाने का काम कर सकते हैं. अभी रहमान लोगों के बीच इस उम्मीद को बनाए रखने में कामयाब हुए हैं. फिर, उन्होंने वक्त की नजाकत को देखते हुए पार्टी की नीतियों में बदलाव के भी संकेत दिए हैं.
फिर, जिया उर रहमान और खालिदा जिया की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी तारिक रहमान पर मानी जाती है. BNP के भीतर संगठनात्मक फैसलों और चुनावी रणनीति में तारिक रहमान की भूमिका निर्णायक है. खालिदा जिया की स्वास्थ्य और कानूनी सीमाओं के कारण, पार्टी की दैनिक राजनीति और भविष्य की दिशा तारिक के नेतृत्व से जुड़ी मानी जाती है.
4. इंटरनेशनल प्रेशर
बांग्लादेश की राजनीति अब सिर्फ घरेलू स्तर तक सीमित नहीं है. पश्चिमी देश निष्पक्ष चुनाव पर जोर दे रहे हैं. अगर सहानुभूति लहर के साथ फेयर इलेक्शन का माहौल बनता है, तो BNP को फायदा मिल सकता है. पश्चिमी देश भी अवामी लीग के चुनाव में न होने के बाद यही सोच रहे हैं कि जमात के बजाय अगर बीएनपी सत्ता में आ जाए तो बेहतर रहेगा.
5. बंग्लादेश में दो पार्टी कैडर बेस्ड
बांग्लादेश में दो ही पार्टी कैडर बेस्ड पार्टी है. उनमें एक बीएनपी और दूसरी पार्टी का नाम है शेख हसीना की अवामी लीग. जमात ए इस्लामी और एनसीपी कैडर बेस्ड पार्टी नहीं है. यहीं, वजह है कि दोनों पार्टियां चाहती हैं कि चुनाव आगे के लिए खिसक जाए. दोनों पार्टियां बीएनपी को रोकने के लिए ही गठबंधन के तहत चुनाव लड़ने का एलान किया है. जहां तक इंकलाब मंच की बात है तो, उसे छात्र आंदोलनों की वजह से अस्थायी उभार माना जा रहा है, लेकिन उसकी सरकार बनने की दूर-दूर तक कोई संभावना नहीं है.





