1971 युद्ध के बाद दोस्ती के सबसे बेहतर मोड़ पर अमेरिका-पाकिस्तान, ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में ऐसे बना खास?
1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद अमेरिका और पाकिस्तान के रिश्तों में कई बार तल्खी आई, तो कई बार नजदीकियां भी बढ़ीं. अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना की मौजूदगी के समय दोनों के बीच साझेदारी में मजबूत हुए. इस बीच भारत से दूरी बढ़ने पर ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में पाकिस्तान ने खुद को वॉशिंगटन का ‘सबसे अहम सहयोगी’ साबित किया, जिसे अंतरराष्ट्रीय जानकार पाकिस्तान-अमेरिका संबंधों का सबसे अच्छा दौर मान रहे हैं. आइए, जानते हैं वॉशिंगटन-इस्लामाबाद का रिश्ता कैसे बदला और ट्रंप के दूसरे दौर में क्यों बन गया खास?

भारत-पाकिस्तान युद्ध 1971 में जब बांग्लादेश अस्तित्व में आया, तब अमेरिका ने पाकिस्तान का साथ दिया था. हालांकि, इस युद्ध में पाकिस्तान की हार हुई थी और भारत ने उसे दो टुकों में बांट दिया था. जबकि यह दौर शीत युद्ध की राजनीति से प्रभावित था. इसके बाद पाकिस्तान को कभी अमेरिकी प्रतिबंधों, तो कभी मदद के जरिए उसके रणनीति का हिस्सा बना. 9/11 के बाद पाकिस्तान ‘आतंक के खिलाफ जंग’ में अमेरिका का सहयोगी बना, मगर भरोसे की खाई गहरी होती रही. ऐसे उतार-चढ़ाव के बीच डोनाल्ड ट्रंप का दूसरा कार्यकाल पाकिस्तान के लिए ‘सबसे दोस्ताना’ साबित हो रहा है.
कल की ही बात करें तो राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने गुरुवार को व्हाइट हाउस के ओवल ऑफिस में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ और सेना प्रमुख असीम मुनीर से मुलाकात की. हालांकि, इस मुलाकात को लेकर कोई बयान किसी ने जारी नहीं किया. प्रेस ब्रीफिंग न होने से पाकिस्तानी बैठक के असली मकसद को लेकर अटकलें तेज हो गईं.
शहबाज और मुनीर महान व्यक्ति - ट्रंप
हां, बैठक से पहले ट्रंप ने प्रेस को बताया, "मैं रूस और राष्ट्रपति पुतिन के कामों से बहुत असंतुष्ट हूं. मुझे यह बिल्कुल पसंद नहीं आया. मैंने सात युद्ध सुलझाए हैं. हमारे पास एक महान नेता आ रहे हैं, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और फील्ड मार्शल असीम मुनीर, जो महान व्यक्ति हैं. अभी वो ओवल दफ्तर में ही कहीं बैठे हैं."
'मूर्ख ही ट्रंप के बयान का जश्न मना सकता है'
टीओआई के रिपोर्ट के मुताबिक ट्रंप के इस बयान पर पाकिस्तानी सेना के रिटायर्ड अधिकारी आदिल राजा तंज कसते हुए एक्स पर कहा, "पाकिस्तान के फासीवादी शासकों को "महान नेता" कहना, उन्हें अपना सफाईकर्मी बनाने की कीमत चुकाने के बराबर है. केवल मूर्ख ही इस बयान का जश्न मना सकता है!" आदिल राजा अब पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान और उनकी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) पार्टी के कट्टर समर्थक और एक सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर हैं.
ठहाका लगाते नजर आए मार्को रुबियो
वहीं, पाकिस्तानी सरकार द्वारा जारी की गई कुछ तस्वीरों में शरीफ और मुनीर को सोने से जड़े ओवल ऑफिस में बैठे हुए दिखाया गया है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यह बातचीत 80 मिनट तक चली और बाद में वे मुस्कुराते हुए ट्रंप के साथ उनके विशिष्ट अंगूठा ऊपर करने वाले इशारे के साथ पोज देते हुए दिखाई दिए. एक अन्य तस्वीर में विदेश मंत्री मार्को रुबियो पाकिस्तानी नेताओं के साथ ठहाके लगाते दिख रहे हैं.
बगराम एयर बेस और सऊदी-पाक डील पर बातचीत
बताया जा रहा है कि ट्रंप और शहबाज शरीफ और मुनीर की बातचीत अफगानिस्तान में बगराम एयर बेस पर फिर से कब्जा करने की कोशिश पर केंद्रित रही, अब तालिबान के शासन में है. इसके अलावा, अमेरिका ने सऊदी-पाक रक्षा समझौते को लेकर भी नरम रुख अपनाया है.
पाक के लिए 2025 सफलताओं का साल - ख्वाजा आसिफ
वहीं, पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ जिन्हें बैठक में शामिल नहीं किया गया था, एक पोस्ट में कहा, "भारत पर विजय, सऊदी अरब के साथ रक्षा समझौता और पाक-अमेरिका संबंधों में अभूतपूर्व प्रगति की है. साल 2025 पाकिस्तान के लिहाज से सफलताओं से भरा साल साबित हुआ है."
1971 युद्ध के बाद पाक अमेरिका के लिए मजबूरी क्यों?
भारत पाकिस्तान युद्ध 1971 के बाद अमेरिका ने पाकिस्तान को सैन्य और आर्थिक मदद दी, मगर साथ ही लोकतंत्र और मानवाधिकार को लेकर सवाल भी उठाए. इसके बावजूद भारत की बढ़ती ताकत और सोवियत संघ से करीबी ने अमेरिका को पाकिस्तान के साथ रणनीतिक तालमेल बनाए रखने पर मजबूर किया.
शीत युद्ध और अफगान मोर्चा
1980 के दशक में सोवियत-अफगान युद्ध में पाकिस्तान अमेरिका का ‘फ्रंटलाइन सहयोगी’ बना रहा. हथियार, डॉलर और सीआईए-आईएसआई की साझेदारी ने रिश्तों को मजबूत किया. मगर सोवियत वापसी के बाद प्रतिबंध और F-16 रोक ने रिश्ते बिगाड़े.
9/11 और ‘वार ऑन टेरर’ - कब माफी मांगेगा पाकिस्तान?
ट्रंप ने 5 जुलाई 2012 और 1 जनवरी 2018 को राष्ट्रपति के रूप में अपने पहले कार्यकाल के दौरान एक पोस्ट में लिखा था, जनरल परवेज मुशर्रफ के दौर में पाकिस्तान अमेरिका का बड़ा साझेदार बना. 20 साल तक चली इस जंग में अमेरिका ने पाकिस्तान को अरबों डॉलर की मदद दी, लेकिन पाकिस्तान पर दोहरे खेल (तालिबान को पनाह) देता रहा. पाकिस्तान ने ओसामा बिन लादेन को छह साल तक सुरक्षित पनाहगाह मुहैया कराया. इसके लिए वो कब माफी मांगेगा?
साल 2018 के अपने पोस्ट में राष्ट्रपति के रूप में ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान कहा था, "हम अब पाकिस्तान को अरबों डॉलर नहीं देते क्योंकि वे हमारा पैसा ले लेंगे और हमारे लिए कुछ नहीं करेंगे, बिन लादेन इसका एक प्रमुख उदाहरण है, अफगानिस्तान भी एक और उदाहरण है. वे उन कई देशों में से एक थे जो बदले में कुछ दिए बिना अमेरिका से लेते थे. अब यह अंत है!" इसके उलट एक सच्चाई यह है कि पाकिस्तान अपनी कथित खनिज संपदा का दोहन कर रहा है. मीडिया रिपोर्टों के अनुसार अमेरिकी व्यवसायों के लिए क्रिप्टोकरंसी का भी इस्तेमाल कर रहा है.
ट्रंप का पहला कार्यकाल
शुरुआत में पाकिस्तान पर झूठ और धोखेबाज सहित आतंकवादी होने का आरोप लगाकर अमेरिका ने मदद रोक दी. ट्रंप प्रशासन ने पहले कार्यकाल के दौरान सख्त बयान भी सामने आए, लेकिन बाद में तालिबान वार्ता में पाकिस्तान की भूमिका को अहम मानते हुए फिर नजदीकी बढ़ी.
ट्रंप का दूसरा कार्यकाल - पाक का गोल्डन एरा
अफगानिस्तान से अमेरिकी वापसी में पाकिस्तान को ‘सहयोगी नंबर-1’ का दर्जा मिला. सैन्य सहयोग और आर्थिक मदद फिर बढ़ाई गई. ट्रंप-शहबाज मुलाकात और ट्रंप का ‘पाकिस्तान भरोसेमंद साझेदार’ कहना रिश्तों में नई ऊंचाई दिखाता है. भारत के साथ ट्रंप की टैरिफ व ट्रेड पॉलिसी के विवादों ने भी पाकिस्तान को रणनीतिक फायदा दिया.