दोस्त दोस्त न रहा! फिलिस्तीन के सपोर्ट में भारत ने UN में किया वोट, इजरायल को लेकर बदल गई विदेश नीति की तस्वीर?
संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत ने फिलिस्तीन मुद्दे पर न्यूयॉर्क डिक्लेरेशन का समर्थन किया. इस प्रस्ताव के पक्ष में 142 देशों ने वोट दिया, जबकि अमेरिका और इजराइल समेत 10 देशों ने विरोध किया. प्रस्ताव में 7 अक्टूबर के हमास हमले की निंदा और गाजा में इजराइल की सैन्य कार्रवाई पर चिंता जताई गई है. इसमें दो-राज्य समाधान का समर्थन करते हुए कहा गया है कि एक स्वतंत्र और सक्षम फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना होनी चाहिए. भारत का यह वोटिंग रुख उसके पिछले रुख से बदलाव दिखाता है, क्योंकि हाल के वर्षों में भारत युद्धविराम प्रस्तावों से दूरी बनाए हुए था.

भारत और इजरायल पिछले एक दशक में रणनीतिक साझेदारी को मजबूत कर चुके हैं. रक्षा, तकनीक और कृषि से लेकर अंतरिक्ष तक, दोनों देशों के रिश्ते गहरे हुए हैं. लेकिन इसके बावजूद भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में न्यूयॉर्क डिक्लेरेशन के पक्ष में मतदान कर सबको चौंका दिया. इस प्रस्ताव का मकसद फिलिस्तीन मुद्दे का शांतिपूर्ण समाधान और दो-राज्य (टू-स्टेट) समाधान को समर्थन देना है. भारत समेत 142 देशों ने इसका समर्थन किया, जबकि अमेरिका और इजरायल सहित 10 देशों ने विरोध किया.
पिछले कुछ सालों में भारत ने गाजा संघर्ष से जुड़े प्रस्तावों पर मतदान से दूरी बनाई थी. खासकर 3 साल में 4 बार भारत ने युद्धविराम मांगने वाले प्रस्तावों से खुद को अलग रखा. लेकिन इस बार भारत का समर्थन एक स्पष्ट संकेत देता है कि नई दिल्ली अब फिलिस्तीन-इजरायल संघर्ष के शांतिपूर्ण और स्थायी समाधान पर जोर देना चाहती है.
न्यूयॉर्क डिक्लेरेशन में क्या है खास?
फ्रांस की पहल पर आया यह सात पन्नों का प्रस्ताव जुलाई में आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस का नतीजा है, जिसकी सह-मेजबानी सऊदी अरब और फ्रांस ने की थी. इसका मकसद दशकों पुराने इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष के समाधान के लिए बातचीत को फिर से पटरी पर लाना था. भारत समेत 142 देशों ने समर्थन, 10 देशों ने विरोध और 12 ने दूरी बनाकर इस प्रस्ताव पर दुनिया के सामने अपने रुख स्पष्ट कर दिए.
इजरायल पर हमले की हुई निंदा
इस घोषणापत्र में 7 अक्टूबर को इजराइल पर हमास के हमले की निंदा की गई है, जिसमें 1200 लोग मारे गए और 250 से ज्यादा बंधक बनाए गए थे. साथ ही गाज़ा में इजराइली सैन्य कार्रवाई की भी आलोचना की गई, जिससे फिलिस्तीनियों की जानें जा रही हैं और वे भुखमरी झेल रहे हैं. प्रस्ताव में साफ कहा गया है कि भविष्य में शांति के लिए दो-राज्य समाधान जरूरी है, जिसमें एक स्वतंत्र और सक्षम फिलिस्तीनी देश की स्थापना हो.
अमेरिका और इजराइल ने किया विरोध
इजराइल ने इस प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया. इजराइली विदेश मंत्रालय ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र फिर से साबित कर रहा है कि वह हकीकत से कटा हुआ राजनीतिक मंच है. वहीं अमेरिका ने भी प्रस्ताव का कड़ा विरोध किया. अमेरिकी राजनयिकों का कहना है कि यह कदम हमास के लिए तोहफा है और इससे वास्तविक शांति की राह मुश्किल हो जाएगी.
फ्रांस और सऊदी अरब ने की अगुवाई
फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने प्रस्ताव का स्वागत करते हुए कहा कि 142 देशों का समर्थन यह साबित करता है कि दुनिया स्थायी शांति के लिए तैयार है. उन्होंने घोषणा की कि फ्रांस और सऊदी अरब 22 सितंबर को न्यूयॉर्क में उच्च-स्तरीय सम्मेलन की सह-अध्यक्षता करेंगे, जिसका उद्देश्य दो-राज्य समाधान के लिए वैश्विक समर्थन जुटाना है.
इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष की दिशा बदलेगा?
अब बड़ा सवाल यह है कि क्या यह प्रस्ताव सिर्फ एक औपचारिक घोषणा बनकर रह जाएगा या सच में इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष की दिशा बदलेगा? भारत जैसे देशों का समर्थन इस बात का संकेत है कि विश्व समुदाय इस मुद्दे को हल करने के लिए दबाव बना रहा है. अगर यह डिक्लेरेशन ठोस कदमों में बदलता है, तो यह मध्य-पूर्व की राजनीति और वैश्विक शांति प्रयासों का अहम मोड़ साबित हो सकता है.
क्या यह रास्ता शांति तक ले जाएगा?
भारत का यह कदम अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक नई बहस छेड़ता है. क्या दो-राज्य समाधान सच में संभव है, जबकि जमीन पर हालात बेहद जटिल और तनावपूर्ण हैं? क्या इजरायल और फिलिस्तीन दोनों अपने-अपने कट्टरपंथी दबावों से निकलकर शांति वार्ता में आगे बढ़ पाएंगे? और सबसे बड़ा सवाल- क्या संयुक्त राष्ट्र जैसे मंच सिर्फ प्रस्ताव पारित कर दुनिया को संदेश देने तक सीमित रह जाएंगे, या फिर वाकई जमीनी स्तर पर बदलाव भी देखने को मिलेगा?