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व्हाइट हाउस में थमी 37 साल की जंग! ट्रंप की मौजूदगी में अजरबैजान-आर्मेनिया ने थामा शांति का हाथ, सुलह में कितनी सच्चाई?

अजरबैजान और आर्मेनिया के बीच 37 साल पुराना संघर्ष खत्म हो गया है. व्हाइट हाउस में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मौजूदगी में दोनों देशों के नेताओं ने ऐतिहासिक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए. नागोर्नो–काराबाख विवाद को पीछे छोड़ते हुए अब आर्थिक और कूटनीतिक रिश्ते मजबूत करने का संकल्प लिया गया है. दोनों नेताओं ने ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित करने की घोषणा की.

व्हाइट हाउस में थमी 37 साल की जंग! ट्रंप की मौजूदगी में अजरबैजान-आर्मेनिया ने थामा शांति का हाथ, सुलह में कितनी सच्चाई?
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( Image Source:  X/POTUS )
नवनीत कुमार
Edited By: नवनीत कुमार

Published on: 9 Aug 2025 8:18 AM

शुक्रवार को व्हाइट हाउस में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मौजूदगी में अजरबैजान और आर्मेनिया के बीच दशकों से चली आ रही दुश्मनी पर विराम लगा. आर्मेनिया के प्रधानमंत्री निकोल पशिनयान और अजरबैजान के राष्ट्रपति इल्हाम अलीयेव ने आधिकारिक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए. ट्रंप लंबे समय से इस समझौते के लिए प्रयासरत थे और इसे अपनी बड़ी कूटनीतिक जीत मान रहे हैं.

ट्रंप ने सत्ता में आने से पहले रूस-यूक्रेन युद्ध खत्म कराने का वादा किया था, हालांकि वे इसमें अब तक सफल नहीं हो पाए. इसके बावजूद उन्होंने आर्मेनिया-अजरबैजान के 37 साल पुराने संघर्ष को खत्म करने का श्रेय अपने नाम कर लिया. उनका दावा है कि उन्होंने इससे पहले भी छह अंतरराष्ट्रीय संघर्ष रुकवाए हैं.

संघर्ष की जड़ नागोर्नो–काराबाख

दोनों देशों के बीच विवाद का केंद्र नागोर्नो–काराबाख क्षेत्र रहा है. यह अजरबैजान का हिस्सा होते हुए भी जातीय रूप से आर्मेनियाई बहुल इलाका था. 1980 के दशक के अंत में यह आर्मेनिया के समर्थन से अलग हो गया था. 2023 में अजरबैजान ने इस पर पूरा नियंत्रण वापस ले लिया, जिसके बाद लगभग एक लाख आर्मेनियाई लोग विस्थापित होकर आर्मेनिया चले गए.

समझौते की शर्तें और अमेरिकी हित

समझौते में दोनों देशों ने युद्ध बंद करने, राजनयिक संबंध बहाल करने और एक-दूसरे की क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करने का वादा किया. इसके साथ ही दक्षिण काकेशस से होकर जाने वाले एक रणनीतिक ट्रांजिट कॉरिडोर के विकास का अधिकार अमेरिका को दिया गया, जिससे ऊर्जा और संसाधनों के निर्यात में तेजी आएगी.

नोबेल पुरस्कार की चर्चा

हस्ताक्षर समारोह में अलीयेव और पशिनयान दोनों ने ट्रंप की मध्यस्थता की तारीफ की. अलीयेव ने कहा, “अगर राष्ट्रपति ट्रंप को नहीं, तो नोबेल शांति पुरस्कार किसे मिलना चाहिए?” दोनों नेताओं ने उन्हें औपचारिक रूप से नोबेल के लिए नामांकित करने की बात भी कही.

क्षेत्रीय समीकरणों में बदलाव

विशेषज्ञों के अनुसार यह समझौता दक्षिण काकेशस के भू-राजनीतिक नक्शे को बदल सकता है. यह इलाका रूस, यूरोप, तुर्की और ईरान से जुड़ा है तथा यहां से तेल और गैस की पाइपलाइन गुजरती है. लंबे समय से जातीय विवादों और बंद सीमाओं के कारण यह क्षेत्र अस्थिर रहा है.

ट्रंप की ‘वैश्विक शांतिदूत’ छवि

ट्रंप अपने दूसरे कार्यकाल के शुरुआती महीनों में खुद को वैश्विक शांतिदूत के रूप में पेश कर रहे हैं. व्हाइट हाउस का दावा है कि उन्होंने कंबोडिया-थाईलैंड, रवांडा-कांगो और पाकिस्तान-भारत के बीच भी समझौते करवाए हैं. हालांकि इन दावों को लेकर कई देशों की प्रतिक्रिया संदेहपूर्ण रही है.

धार्मिक और सांस्कृतिक पहलू

आर्मेनिया-अजरबैजान विवाद में धर्म और संस्कृति की भूमिका भी अहम रही. आर्मेनियाई ईसाई हैं, जबकि अजरबैजानी तुर्क मूल के मुस्लिम. दोनों पर एक-दूसरे की धार्मिक स्थलों और सांस्कृतिक विरासत को नुकसान पहुंचाने के आरोप लगे हैं. यही वजह रही कि यह संघर्ष पीढ़ियों तक चला और अब जाकर थमा है.

डोनाल्ड ट्रंप
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